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चीन यात्रा के साथ पूरब की ओर रूस की नज़र

२४ मई २००८

पश्चिम के स्ट्रैटेजिक हलकों में मास्को-पेइचिंग-दिल्ली की एक संभावित धूरी को दुःस्वप्न के रूप में देखा जाता है. ऐसी धूरी के लक्षण नहीं दिख रहे हैं. लेकिन रूस-चीन निकटता इस दिशा में एक संकेत ज़रूर है.

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पेइचिंग में हू जिनताओ के साथ मेदवेदेवतस्वीर: AP

कहा जा सकता है कि रूस की नज़र अब पूरब की ओर है. राष्ट्रपति बनने के बाद मेदवेदेव ने पहली विदेश यात्रा के लिए कज़्ज़ाकस्तान और चीन को चुना. कज़्ज़ाकस्तान अगर उर्जा की दृष्टि से धनी है, तो चीन को अपनी आर्थिक वृद्धि के कारण उर्जा की बेहद भूख है. रूस को टालकर कज़्ज़ाकस्तान से चीन तक गैस पाइपलाईन का निर्माण रूस के लिए चिंता का विषय रहा है. अब राजनयिक माध्यमों से इस मोर्चे पर निपटने की कोशिश की जा रही है.

जहां तक आर्थिक प्रश्नों का सवाल है, तो चीन यात्रा के दौरान यह कम महत्वपूर्ण नहीं रहा. दोनों देशों के बीच परमाणु तकनीक के क्षेत्र में अरबों डालर के बराबर का एक समझौता किया गया है, जिसमें चीन में एक परमाणु बिजलीघर का निर्माण भी शामिल है. चीन की उर्जा की ज़रूरत में रूसी परमाणु तकनीक का योगदान बेशक दीर्घकालीन स्तर पर तेल और गैस के ग्राहक के रूप में चीन की भूमिका को आकर्षक बनाएगा.

लेकिन रूस और चीन के बीच संबंधों को सिर्फ़ आर्थिक कसौटी पर नहीं देखा जा सकता. पहली बात कि यूरोप में राकेटभेदी कवच प्रणाली की अमरीकी योजना पर दोनों देशों ने इस यात्रा के दौरान एक स्पष्ट रुख़ अपनाया है. अमरीकी ह्वाइट हाउस की प्रवक्ता डाना पेरिनो का कहना था कि अमरीका को दोनों देशों की चिंता के बारे में पता है और वह इन्हें दूर करने की कोशिश कर रहा है. पेंटागोन के प्रवक्ता ने कहा कि यह कोई नया रुख़ नहीं है. बेशक इस मामले में दोनों देशों का रुख़ एक रहा है, लेकिन एक संयुक्त घोषणा के ज़रिये इस सवाल को इतना महत्व देना अंतर्राष्ट्रीय शक्ति संतुलन में अवश्य ही एक नया तत्व लाता है.

Blair in Moskau
दोस्ती, जो काम नहीं आई.तस्वीर: AP

मेदवेदेव की यात्रा व उसके दौरान समझौतों और वक्तव्यों को एक दूसरे परिप्रेक्ष्य में देखना भी ज़रूरी है. राष्ट्रपति बनने के बाद व्लादिमीर पूतिन ने प्रधान मंत्री टोनी ब्लेयर के आमंत्रण पर ब्रिटेन की यात्रा की थी. रूस को यूरोप के साथ संबंधों में बेहतरी व गहराई की एक उम्मीद थी. लेकिन पूरब की ओर नाटो के विस्तार और इस सवाल पर यूरोपीय देशों के ढीले-ढाले रुख़ से उसे निराशा ही हुई है.