गोएथे के व्यक्तित्व के विविध पहलू
जर्मन भाषा के सबसे बड़े लेखक और कवि माने जाने वाले योहान वोल्फगांग फॉन गोएथे का थिएटर से लेकर विज्ञान तक में दखल था. उनके व्यक्तित्व के तमाम पहलुओं पर एक नजर.
सरकारी अधिकारी
26 साल की उम्र में गोएथे ने वाइमार प्रांत के राजदरबार में काम करना शुरु किया और आगे चलकर ग्रैंड ड्यूक की मिनिस्ट्री में मिनिस्टर बने. वे खनन उद्योग, सड़क निर्माण और युद्ध से जुड़े मामलों के लिए जिम्मेदार थे. खर्च और कर्ज को कम करने के लिए उन्होंने सेना का आकार आधा कर दिया.
वफादार दोस्त
मिनिस्टर बनने से लेकर अपने जीवन की अंतिम सांस तक गोएथे वाइमार के इसी गार्डेन हाउस में रहे. उन्हें मिनिस्टर बनाने वाले ग्रैंड ड्यूक कार्ल-आगुस्ट करीब 53 सालों तक उनके करीबी मित्र भी थे. कार्ल-आगुस्ट ने ही उन्हें 1782 में सम्मानित टाइटिल "फॉन" दिया.
वैज्ञानिक रूचि
वाइमार कोर्ट में अपनी नौकरी में व्यस्त होने के बावजूद गोएथे ने भूविज्ञान, वनस्पति विज्ञान, खनिज और अस्थि विज्ञान के क्षेत्र में अपना ज्ञान बढ़ाया. बाद में उन्होंने पौधों के कई रूपों का काफी गहराई से अध्ययन किया.
इटली के फैन
सन 1786 में मिनिस्टर के पद की जिम्मेदारी निभाते निभाते थक जाने पर गोएथे अचानक इटली चले गए. वहां उन्हें पुरातन काल और खासकर पुनर्जागरण काल में काफी दिलचस्पी जगी. वहां से भेजे पत्रों में गोएथे ने अपने "पुनर्जन्म" की बातें की और इटली का ये प्रभाव उनके नाटकों "इफिजीनिया इन टॉरिस", "एगमॉन्ट" और "टॉरक्वाटो टासो" में दिखा.
बगीचे के कलाकार
गोएथे को फूलों से बड़ा प्यार था. वे इंग्लिश लैंडस्केपिंग के भी बड़े प्रशंसक थे. वाइमार के अपने घर के बाहर बगीचे में उन्होंने इंग्लिश गार्डेन शैली में बागबानी की. उनका रोमन शैली का घर इटली से प्रभावित था तो बगीचा इंग्लैंड से जहां वे कभी गए नहीं थे.
प्रेमी गोएथे
तस्वीर में दिखाई गई महिला क्रिस्टियाने वुल्पियुस पहले गोएथे की मिस्ट्रेस थी और बाद में उनकी पत्नी बनी. माना जाता है कि गोएथे की 24 इरॉटिक कविताओं के संग्रह "रोमन एलेजीस" की प्रेरणा वही थी. उस समय के वाइमार के लिए वह काफी विवादास्पद और क्रांतिकारी कविताएं थीं.
थिएटर डायरेक्टर
अपने जीवन के करीब 20 साल गोएथे ने कला निदेशक के तौर पर बिताए. पहले वाइमार कोर्ट के लीबहाबरथियाटर और फिर नए वाइमार होफथियाटर में काम करते हुए. शुरु में वे मंच पर अभिनय भी किया करते थे और कई बार उनके मित्र कार्ल-आगुस्ट भी साथ होते.
साहित्य रचना
गोएथे और शिलर दोनों आजाद ख्याल लोग थे. शुरू में शिलर ने गोएथे को "एक ठंडा अहंवादी" करार दिया तो वहीं गोएथे ने भी उनके लिए कोई अच्छी टिप्पणी नहीं की. लेकिन साथ काम करते करते आगे चलकर दोनों ने संयुक्त रूप से साहित्य में एक नई विधा स्थापित की, जिसे वाइमार क्लासिसिज्म के तौर पर जाना गया.
कलर थियरिस्ट
गोएथे ने रंगों की तासीर समझने में भी करीब 20 साल का वक्त लगाया. सन 1810 में उन्होंने रंगों के बारे में अपना खुद का सिद्धांत दो मोटी किताबों में लिखा. एक साहित्यकार और कलाकार की ऐेसे वैज्ञानिक विषय पर किताब प्रकाशित करने में लोगों ने दिलचस्पी नहीं दिखाई. हालांकि दार्शनिकों ने इसे काफी महत्व दिया.
पुल बनाने वाले
इटली और एंटीक्विटी से प्रभावित होने के कारण गोएथे ने अरबी और फारसी जबानें सीखीं और कुरान से लेकर फारसी कवियों के शेर पढ़े. इसके बाद सन 1819 में उन्होंने अपना सबसे बड़ा कविता संग्रह "वेस्ट-ईस्टर्न दीवान" प्रकाशित किया.
साधक और अन्वेषक
क्या गोएथे के मास्टरपीस "फाउस्ट" को उनकी आत्मकथा माना जाना चाहिए. इस किताब का मुख्य किरदार भी गोएथे की ही तरह दुनिया को जोड़ने वाले सूत्र की तलाश में हैं. इस तलाश में स्कॉलर फाउस्ट लालच, इच्छा, असफल रिश्ते, जादू, पाप, आस्था और उद्धार से गुजरता है. और गोएथे..? (नदीने वोइचिक/आरपी)