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गुत्थी नाटो के विस्तार की

राम यादव१ अप्रैल २००८

रूमानिया की राजधानी बुखारेस्ट में बुधवार दो अप्रैल से शुक्रवार चार अप्रैल तक उत्तर एटलांटिक संधि संगठन--नाटो-- कहलाने वले पश्चिमी देशों के सैन्य संगठन का वार्षिक शिखर सम्मेलन होने जा रहा है. इस संगठन का एक बार फिर विस्तार और उसमें भूतपूर्व सोवियत संघ के दो गणराज्यों यूक्रेन और जॉर्जिय

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राष्ट्रपति बुश यूक्रेनी राष्ट्रपति के साथ

�� को शामिल करने के प्रयासों से रूस इस समय काफ़ी बौखलाया हुआ है.

नाटो की स्थापना को अगले वर्ष 60 साल पूरे हो जायेंगे. चार अप्रैल 1949 को जब वॉशिंगटन में उसकी स्थापना हुई थी, तब अत्तरी अमरीका और पश्चिमी यूरोप के केवल 12 देश उसके सदस्य थे. उद्देश्य था, तत्कालीन साम्यवादी सोवियत संघ से अपना बचाव करना, उसे उसकी सीमाओं तक ही सीमित रखना. इस बीच न तो सोवियत संघ रहा और न उसके विघटित उत्तराधिकारी रूस में कम्युनिज़्म है. आज स्थिति यह है कि भूतपूर्व सोवियत संघ वाले तीन बाल्टिक गणराज्य लातविया, एस्तोनिया और लिथुआनिया पहले ही नाटो के सदस्य बन चुके हैं, नाटो की सदस्य संख्या 26 हो चुकी है, और अब दो और पुराने सोवियत गणराज्यों, यूक्रेन और जॉर्जिया को भी सदस्य बनाने के लिए अमेरिका डोरे डाल रहा है.

क्योंकि ये दोनो देश स्वयं भी नाटो की सदस्यता पाने के लिए लालायित हैं,अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने मंगलवार को कीयेव पहुँचते ही कहाः

मैं अमरीकी दृष्टिकोण को स्पष्ट करना जारी रखूँगा. हम यूक्रेन और जॉर्जिया की सदस्यता योजना का समर्थन करते हैं. यूक्रेन को सदस्यता की दिशा में आगे बढ़ाना संधि संगठन के हर सदस्य देश के हित में है और इस क्षेत्र तथा विश्व में सुरक्षा और स्वतंत्रता को बढ़ावा देगा.

रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पूतिन शुक्रवार चार अप्रैल को स्वयं नाटो शिखर सम्मेलन के अतिथि होंगे और आशा कर रहे हैं यूक्रेन और जॉर्जिया की सदस्यता पर निर्णय टल जायेगा. उनके प्रवक्ता ने मॉस्को में कहा कि रूस यह नहीं मानता कि नाटो को अकेले ही दुनिया भर में लोकतंत्र की रक्षा का ठेका मिला हुआ है. रूसी विदेशमंत्रा सेर्गेई लावरोव ने सप्ताहांत को कहा था कि नाटो के इस नये विस्तार के गंभीर परिणाम होंगे. नाटो के तीन प्रमुख सदस्य देश जर्मनी, इटली और फ्रांस भी यूक्रेन और जॉर्जिया को इस समय सदस्यता देने के पक्ष में नहीं हैं.

फ्रांस की बात का वज़न इस कारण भी बढ़ जायेगा कि वह 40 वर्षों के आत्मनिर्वासन के बाद एक बार फिर नाटो की सैनिक गतिविधियों में शामिल होने जा रहा है. राष्ट्रपति सार्कोज़ी ने कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में चल रहे नाटो के सैनिक अभियान के लिए उनका देश भी पहली बारअपने एक हज़ार सैनिक भेजेगा. अमरीका भी यही चाहेगा कि फ्रांस नाटो के भीतर एक सक्रिय भूमिका निभाये.