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गीता पर गंभीर भारत का रूस पर दबाव

२२ दिसम्बर २०११

गीता पर प्रतिबंध लगाने के मामले में भारत सरकार ने रूस से संपर्क किया है. भारत ने भागवत गीता के खिलाफ दायर की गई याचिका को "बेहूदा" करार दिया है और कहा है कि यह कुछ नासमझ लोगों का काम है जिन्हें बहकाया गया है.

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तस्वीर: picture alliance/united archives

रूस में भारत के राजदूत अजय मल्होत्रा ने कहा है कि भागवत गीता केवल एक धार्मिक ग्रन्थ ही नहीं बल्कि एक ऐसी किताब है जो भारत की विचारधारा को निर्धारित करती है. एक बयान में उन्होंने कहा, "भागवत गीता शायद दुनिया का सबसे अहम और सम्मानित ग्रन्थ है. रूसी भाषा में इसका अनुवाद 1788 में हो गया था."

मल्होत्रा ने कहा कि गीता सदियों से दुनिया में पढ़ी जा रही है और अब तक ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया जिसे देख कर ऐसा कहा जा सके कि यह चरमपंथ को बढ़ावा देती है. मल्होत्रा के मुताबिक भारत सरकार ने रूस में उच्च अधिकारियों से संपर्क किया है. मुकदमे के बारे में उन्होंने कहा, "टोम्स्क की आदरणीय अदालत के सामने यह जो मुकदमा पेश हो रहा है, यह बेहूदा है, इसका आधार ही निरर्थक है."

'चरमपंथी' ग्रन्थ

दरअसल रूस के ईसाई ऑर्थोडॉक्स चर्च से जुड़े एक संगठन ने अदालत में याचिका दाखिल कर भागवत गीता को 'चरमपंथी' ग्रन्थ बताया है. रूसी साइबेरिया के टोम्स्क के इस संगठन की शिकायत है कि गीता के कारण रूस में सामाजिक संतुलन बिगड़ रहा है. मामला अदालत तक तब पहुंचा जब रूस में भगवान कृष्ण के श्रद्धालुओं और टोम्स्क में स्थानीय अधिकारियों के बीच मतभेद पैदा हो गए.

अदालत ने फैसला 28 दिसंबर तक के लिए टाल दिया है. इस मामले में फैसला लेने से पहले अदालत ने रूस के लोकपाल की राय मांगी है और रूस में भारत के जानकारों से भी उनके विचारों के बारे में पूछा है. मल्होत्रा का कहना है कि रूस में भारत के जानकारों ने गीता के समर्थन में बयान दिए हैं और वह उम्मीद करते हैं कि अदालत इन पर ध्यान देगी."

बीजेपी नाराज

वहीं बीजेपी की मांग है कि रूस की सरकार जल्द से जल्द ठोस कदम उठाए और मुकदमे को बर्खास्त करे. बीजेपी ने कहा है कि गीता केवल अनुशासन का पाठ पढ़ाती है, चरमपंथ का नहीं. पार्टी के विदेश मामलों के संयोजक विजय जॉली ने एक दल के साथ भारत में रूसी मिशन के उपाध्यक्ष डेनिस एलिपोव से मुलाकात की और इस मामले में अपनी नाराजगी और शोक व्यक्त किया.

मुलाकात के बाद जॉली ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया, "हमने इस बात पर आश्चर्य जताया कि रूस सरकार इस मुकदमे को छह महीनों तक अदालत में कैसे लटकने दे सकती है. भारत और रूस के आपसी संबंध दोनों ही देशों के लिए बहुत मायने रखते हैं. हमने रूसी अधिकारियों को बताया है कि हमें इस से बहुत खेद हुआ है और हम बहुत दुखी हैं."

मेद्वेदेव के लिए गीता का पाठ

इससे पहले भारत में रूस के राजदूत एलेक्जेंडर एम कदाकिन ने कहा था कि यह बात अस्वीकार्य है कि किसी धार्मिक ग्रन्थ को अदालत तक ले जाया जाए. जॉली ने कदाकिन की प्रतिक्रिया पर संतुष्टि जताई, लेकिन साथ ही कहा कि जमीनी स्तर पर कदम उठाने की जरूरत है, "हमने रूस की सरकार से मांग की है कि वह जरूरी कदम उठाएं और मुकदमा खारिज करें." जॉली ने कहा कि दल ने रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेद्वेदेव के लिए गीता का एक संस्करण भी भेजा है. मेद्वेदेव को भेजे गए पत्र में लिखा गया है, "हम यह बताना चाहते हैं कि गीता आत्मानुशासन का पाठ पढ़ाती है. यह उत्तम विचारों वाली, योग, क्रिया और भक्ति पर व्यावहारिक निर्देश देने वाली एक किताब है. यह चरमपंथ को बढ़ावा नहीं देती. यह आध्यात्म को बढ़ावा देती है और मानवता को अपना सांसारिक कर्त्तव्य पूरा करने की जिम्मेदारी सिखाती है."

रिपोर्ट: पीटीआई/ ईशा भाटिया

संपादन:  एम गोपालकृष्णन

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