खाने की पसंद
बॉलीवुड स्टार ऋषि कपूर की खाने को धर्म से न जोड़ने की मांग पर सोशल मीडिया में हंगामा रहा. खाने की पसंद सिर्फ अपनी पसंद नहीं होती, वह बहुत से कारकों पर निर्भर करती है.
कई कारक
खाने की आदत व्यक्तिगत और मौसमी कारकों पर निर्भर करती है. इलाके में पायी जाने वाली चीजें भी लोगों के खाने की आदतों में शामिल होती हैं.
सामुदायिक कारण
खाने की पसंद के मामले में मनोवैज्ञानिक और समाजशास्त्री कारण भी अहम होते हैं. बहुत से लोग धार्मिक कारणों से किसी खास चीज का सेवन करते हैं या फिर नहीं करते हैं.
जीभ की पसंद
सबसे बढ़कर व्यक्तिगत तौर पर खाने का स्वाद और जीभ को मिलने वाली खुशी, इससे तय होता है कि कौन व्यक्ति क्या खाना पसंद करेगा.
इलाके की चीज
खाद्य पदार्थों की कीमत, उसकी उपलब्धता और सांस्कृतिक रूप से उसका परिचित होना भी खाने की पसंद में अहम भूमिका निभाता है.
स्वाद का जलवा
जहां तक खाने के बारे में शोध का सवाल है तो रिसर्चरों का कहना है कि सर्वेक्षणों में उपभोक्ताओं ने स्वाद को खाने की पसंद का सबसे प्रमुख कारक बताया है,
माहौल का असर
खाने के मामले में माहौल भी अहम भूमिका निभाता है. आस पास व्याप्त माहौल का असर खाने की मात्रा पर पड़ता है. अमेरिका में पिछले सालों में खाने की मात्रा बढ़ी है.
प्लेट का असर
कितना खाना चाहिए इसका फैसला प्लेट या थाली के आकार से भी होता है. वे हमें पेट भर जाने या और भूख होने का अहसास कराते हैं.
साथ खाने का मजा
लोग अकेले में कम खाते हैं लेकिन साथ मिलने पर हमेशा ज्यादा खाते हैं. कुछ सर्वेक्षणों में पता चला है कि इंसान दूसरे के साथ होने पर 40 से 50 फीसदी ज्यादा खाता है.
स्वास्थ्य का ख्याल
खाने के मामले में पुरुषों और महिलाओं की आदतों में भी अंतर दिखता है. महिलाएं पुरुषों के मुकाबले स्वस्थ रखने वाले खाने पर ज्यादा ध्यान देती हैं.
अमीरों की पसंद
आय और समृद्धि भी खाने की पसंद को निर्धारित करती है. शिक्षा और पैसे का होना खाने के मामले में लोगों के विकल्प बढ़ा देता है. वे अलग अलग खाने को टेस्ट करना चाहते हैं.