क्रिस्टा वोल्फ: दे डिवाइडेड द स्काई
७ जनवरी २०१९"1961 के अगस्त के आखिरी दिनों में रीटा जाइडेल नाम की युवती ने एक अस्पताल के छोटे से कमरे में अपनी आंखें खोलीं. वो सोई हुई नहीं थी, बेहोश थी. शाम के वक्त जैसे ही उसने आंखे खोली, सबसे पहली चीज जिस पर उसकी नजर पड़ी वो सामने एक झक्क सफेद दीवार की छाया थी. पहली बार वो यहां आई थी, लेकिन फौरन जान गई कि उसे हुआ क्या था, आज और पहले."
रीटा जाइडेल, 20 के आसपास की एक युवती है, और क्रिस्टा वोल्फ के 200 पेज के उपन्यास "दे डिवाइडेड द स्काई" की नायिका है. 1962 में आई इस दूसरी पुस्तक ने वोल्फ को पूर्वी जर्मन साहित्य में रातोंरात एक बड़ी हस्ती बना दिया.
1960 में वो पहला ड्राफ्ट लिख चुकी थीं, 1961 की गर्मियों में आगे के ड्राफ्ट लिखे गए लेकिन फिर भी लेखिका को लगा कि जो प्रेम कहानी वो लिख रही हैं वो अभी भी मामूली है. वो एक ऐसी चीज की तलाश में थी जो उनके शब्दों में "उबेरइडे" यानि आला दर्जे का विचार हो. अटपटे अंदाज में इतिहास उनकी मदद को आगे आया जब अगस्त 1961 में बर्लिन दीवार का निर्माण शुरू हुआ.
दो प्रेमियों का रिश्ता टूट रहा है और दोनों को आखिरकार वो दीवार ही अलग करेगी. एक अति महत्वाकांक्षी केमिस्ट मानफ्रेड अपने लिए साम्यवादी जर्मन लोकतांत्रिक गणराज्य (जीडीआर) में कोई भविष्य नहीं देखता और पश्चिम में जाकर बस जाता है. वहां वो "पूर्वी जर्मन शरणार्थी" बन जाता है.
अपने अध्यापक से 10 साल छोटी छात्रा, दीवार बनने से कुछ दिन पहले उसे वापस ले आने की एक व्यर्थ सी कोशिश करती है. वो जीडीआर की राजनीति की प्रशंसक है लिहाजा प्रेमी के पीछे नहीं जाती और पूर्वी जर्मनी में ही रह जाती है.
समकालीन इतिहास को दर्ज करने वाली एक प्रेम कहानी
"साल 1961 के अगस्त के दिनों" से कहानी शुरू होती है. उसके साथ ही कहानी का देशकाल और राजनीतिक संदर्भ भी स्थापित हो जाता है, भले ही खुलकर नाम नहीं लिए गए हैं.
दीवार के निर्माण का उल्लेख क्रिस्टा वोल्फ की पूरी कहानी में कहीं पर भी नहीं है. लेखिका ने 12वीं की पढ़ाई के बाद सत्ताधारी सोशलिस्ट यूनिटी पार्टी (एसईडी) ज्वॉयन कर ली थी. इस तरह वो राजनीतिक सिस्टम का हिस्सा भी बन गईं. अप्रत्यक्ष रूप से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनका आशय क्या होगा जब उन्होंने लिखा:
"हम तब नहीं जानते थे, हममें से कोई भी नहीं जानता था, आने वाला साल कैसा होगा: सबसे ज्यादा कठिन इम्तहानों वाला साल जिसमें जीवित बच पाना आसान न था. बाद में तो वे यही कहेंगे, एक ऐतिहासिक वर्ष."
इस कहानी के केंद्र में जो प्रेमी जोड़ा है वो उस देश में हमेशा के लिए विभाजित हो जाता है, जिसका बंटवारा बाद में नजर आने लगता है और जिसे असंदिग्ध सख्ती से बनाए रखा जाता है. किताब के शीर्षक में आया आसमान पूरब और पश्चिम में दो जर्मन राज्यों के विभाजन का बिंब है. अपनी आखिरी मुलाकात में रीटा और मानफ्रेड एक आखिरी रोमानी प्रतीक की तलाश करते हैं, अपने खोए हुए प्रेम का आकाश, जो इस बंटवारे को नहीं मानता और न ही उसके दायरे में आता है:
"अतीत में जो प्रेमी जोड़े अलग होना चाहते थे वे शामों को भटकती आंखों के साथ आसमान में एक तारे की तलाश करते थे." हम लोग क्या देख सकते हैं? ‘कम से कम वो आसमान को नहीं बांट सकते,' उपहास के स्वर में मानफ्रेड कहता है. आसमान? उम्मीद और तड़प, प्रेम और तकलीफ का ये विराट गुंबद? ‘हां, वे बांट सकते हैं,' उसने कहा, ‘आसमान ही तो है जो सबसे पहले विभाजित होता है.'"
राजनीतिक तौर पर विस्फोटक
क्रिस्टा वोल्फ का आख्यान सिर्फ कविताई स्तर पर काम नहीं करता, बल्कि इसमें राजनीतिक चिंगारियां भी निहित हैं. लेखिका अपनी किरदार रीटा से पूरी तरह सहानुभूति रखती है: जीडीआर के प्रति उसकी प्रतिबद्धता एक राजनीतिक वक्तव्य है, लेखिका एक पक्की समाजवादी है. लेकिन क्रिस्टा वोल्फ पर, जिनके पति भी एसईडी में सक्रिय थे, प्रचारवादी होने का आरोप नहीं थोपा जा सकता है. वो सत्ता के कट्टरवाद की ज्यादतियों के खिलाफ अपनी आलोचनाओं में स्पष्ट हैं. ऐसे ही एक वाकये से, शिक्षिका की अपनी ट्रेनिंग के दौरान या रेल की बग्घियां बनाने वाली फैक्ट्री में इंटर्नशिप के दौरान, रीटा का भी पाला पड़ा था
"दे डिवाइडेड द स्काई" उपन्यास पर आधिकारिक प्रतिक्रियाएं भी बहुत अलग थीं. एसईडी पार्टी नेतृत्व ने उपन्यास की तीखी निंदा की और वोल्फ पर गैर समाजवादी पतन का आरोप लगाया.
मजबूत सिनेमाई रूपांतरण
इसके बावजूद किताब बहुत सफल हुई. 1962 के अंत में प्री-प्रिटिंग के बाद, क्रिस्टा वोल्फ का आख्यान किताब की शक्ल में मई 1963 में सामने आया और हाथों हाथ बिक गया. एक लाख से ज्यादा प्रतियां सर्कुलेशन में गईं, तत्कालीन पूर्वी जर्मनी में ये बहुत बड़ी संख्या थी. दो दुनियाओं के बंटवारे की प्रेम की त्रासद कथा को युवा पाठकों ने खासतौर पर सराहा.
जिस साल किताब प्रकाशित हुई थी, उसी साल क्रिस्टा वोल्फ ने अपने पति कोनराड वोल्फ के साथ मिलकर उपन्यास के सिनेमाई रूपांतरण के लिए पटकथा भी लिखी थी. उनके पति ने फिल्म का निर्देशन भी किया था.
फिल्म का भी तूफानी स्वागत हुआ. एसोसिएशन ऑफ जर्मन सिनेमाथेक्स ने इस फिल्म को जर्मन फिल्म इतिहास की 100 सबसे महत्त्वपूर्ण फिल्मों में आज तक रखा है.
जर्मन साहित्य में क्लासिक की कसौटी पर भी ये किताब जल्द ही खरी उतर गई. स्कूलों में और जर्मन भाषा की कक्षाओं में पढ़ाई जाने लगी और अब भी व्यापक रूप से पढ़ाई जाती है. इसे राजनीतिक साहित्य के एक उदाहरण की तरह देखा जाता है जिसे पूर्वी और पश्चिम जर्मनी में जाहिरा तौर पर अलग अलग नजरिए से पढ़ा गया.
क्रिस्टा वोल्फ: "दे डिवाइडेड द स्काई," यूनिवर्सिटी ऑफ ओटावा प्रेस (जर्मन शीर्षकः डेर गेटाइल्टेहिम्मेल), 1963
क्रिस्टा वोल्फ का जन्म 18 मार्च 1929 को लांड्सबेर्ग अन डेर वार्थे में हुआ था जो आज पौलेंड में है. 1945 में सोवियत सेना की चढ़ाई के बाद उन्हें अपने परिवार के साथ भागना पड़ा. परिवार जर्मनी के मेकलेनबुर्ग में जा बसा. हाईस्कूल पास करने के बाद वोल्फ एसईडी की सदस्य बन गईं. उन्होंने शुरुआत में स्कॉलर और संपादक के रूप में काम किया. 1962 से वो किताबें लिखने लगीं. "दे डिवाइडेड द स्काई" उनकी दूसरी किताब है. 1989 में बर्लिन दीवार ढहाए जाने के बाद उन्होंने लोकतांत्रिक रूप से परिवर्तित जीडीआर के संरक्षण के लिए मुहिम चलाई. उन पर आरोप था कि उन्होंने अपने समकालीन लेखकों की जासूसी की थी, इसके जवाब में उन्होंने 1993 में अपनी पूरी खुफिया विभाग द्वारा जमा फाइल को प्रकाशित कर दिया. एक दिसंबर 2011 को 82 साल की उम्र में उनका निधन हुआ.