क्यों लगता है मकड़ी से डर
१८ जनवरी २०१४जर्मन मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि डर के पीछे किसी चीज को लेकर लोगों के नजरिए का बहुत बड़ा हाथ होता है. मकड़ी से डरने वाले लोगों की नजर आम तौर पर इस तरह के दूसरे जानवरों पर भी अन्य लोगों से पहले पड़ती है. जर्मनी की मनहाइम यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञैानिक आंत्ये गेर्देस और ग्योग्र आल्पर्स कहते हैं कि जो लोग डरते हैं उनकी कल्पना में ये जानवर ज्यादा देर तक दिखाई देते हैं.
आल्पर्स ने बताया, "हमारी शोध के अनुसार डर से पैदा हुई उत्तेजना ही यह तय करती है कि मस्तिष्क नजर के सामने आने वाली चीज को कैसे देखता है. लोगों में एक दूसरे से भिन्नता होने के कारण वे अपने आस पास के माहौल को अलग अलग तरह देखते हैं." इसीलिए जब मकड़ी से डरने वाले लोग यह बताते हैं कि उनकी तरफ बढ़ रही आठ पैरों वाली मकड़ी उन्हें कैसी दिखती है, तो इसे झूठ या बढ़ा चढ़ा कर दिया गया बयान नहीं समझना चाहिए.
दो तस्वीरों वाला टेस्ट
जिस व्यक्ति पर टेस्ट किया जा रहा था मनोवैज्ञानिकों ने उसे दो तस्वीरें दिखाईं. यह कुछ इस तरह से किया गया कि बाईं तस्वीर केवल बाईं आंख को और दाईं तस्वीर केवल दाईं आंख को ही दिखे. आल्पर्स ने बताया दोनों तस्वीरों को लगातार एक साथ देखना संभव नहीं है. दोनों आंखें एक दूसरे से मुकाबला कर रही हैं और दिमाग इन दोनों में से किसी एक को चुन लेता है. दिमाग के इस चयन में हमारे अपने फैसले का हाथ नहीं होता.
इन दो तस्वरों में एक गहरे और हल्के त्रिभुजों के पैटर्न की है और दूसरी तस्वीर में या तो फूल दिखाया गया या मकड़ी. आठ सेकंड बाद तस्वीर बदल दी गई.
फूल पर मकड़ी की जीत
बटन दबाने पर टेस्ट करवा रहे व्यक्ति को बताना होता है कि उसने क्या देखा. त्रिभुजों का पैटर्न या मकड़ी. वैज्ञानिकों ने वह समय भी रिकॉर्ड किया, जिसमें व्यक्ति तस्वीर देखता है.
डरने वाले लोगों ने सामान्य लोगों के मुकाबले मकड़ी की तस्वीर पर लगभग दोगुनी बार गौर किया. हर बार उन्होंने औसतन चार सेकंड के लिए देखा जबकि दूसरे लोगों ने सिर्फ दो सेकंड के ही लिए देखा.
बिना जाने बूझे
क्या ऐसा भी संभव है कि इन लोगों ने देखा तो दोनों तस्वीरों का मिश्रण, लेकिन बताते समय कहा कि उन्होंने सिर्फ मकड़ी देखी?
वैज्ञानिक इस बात से सहमत नहीं हैं. उनका कहना है कि उन्होंने सच्चाई पता करने के लिए भी कंट्रेल टेस्ट किया और पाया कि अगर डरने वाला कोई व्यक्ति कह रहा है कि उसने मकड़ी देखी, तो वह वही बता रहा है, जो उसने देखा.
इसके बाद सवाल यह उठता है कि ऐसा भी तो हो सकता है कि टेस्ट में शामिल व्यक्ति ने जानबूझ कर ही मकड़ी देखी. गेर्डेस और आल्पर्स इस बात को भी नहीं मानते. उन्होंने कहा, "यह संभव नहीं है कि मकड़ी से डरने वाला कोई इंसान जानबूझ कर देर तक मकड़ी का सामना करे." उन्होंने बताया जब मस्तिष्क यह तय करता है कि उसे क्या देखना है, उस समय भावनाओं, खास कर डर का, इस चयन में अहम किरदार होता है.
क्या करता है दिमाग
व्याकुल प्रवृत्ति के लोग कई बार अपने भय के कारण को समझने में असमर्थ हो सकते हैं. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इसके लिए उनके मस्तिष्क में फैला तंत्रिका तंत्र जिम्मेदार हो सकता है.
मानव मस्तिष्क सबसे जटिल अंगों में शामिल है, जहां अरबों तंत्रिकाएं एक साथ काम करती हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि हो सकता है कि डर का भाव पैदा करने वाला मस्तिष्क का हिस्सा सीधे तौर पर दिमाग के उस हिस्से से जुड़ा हो, जहां किसी चीज को देखने के बाद मस्तिष्क उसकी प्रोसेसिंग करता है, ताकि शरीर इसका अहसास कर सके. इस हिस्से को विजुअल कॉर्टेक्स कहते हैं.
अगर आंख के सामने कोई ऐसी चीज आती है जिससे डर लगे, यह तंत्रिकाओं का तंत्र विजुअल कॉर्टेक्स को खबरदार कर देता है. यानी मानव आंख इसे चूक नहीं सकता. हालांकि तंत्रिकाओं के इस संबंध के बारे में बहुत कुछ पता करना अभी बाकी है.
रिपोर्टः बिरगिटे ओस्टेराथ/एसएफ
संपादनः ए जमाल