क्या हम खो देंगे हिमालय का एक तिहाई ग्लेशियर
६ फ़रवरी २०१९हिंदू कुश हिमालय एसेसमेंट नाम की स्डडी में बताया गया है कि इस सदी के अंत तक हम हिमालय पर्वत के ग्लेशियरों का बड़ा हिस्सा गंवा चुके होंगे जो करीब 1.9 अरब लोगों के पीने के पानी का स्रोत है. काठमांडू में स्थित एक संस्था की स्टडी में यह भी बताया गया है कि अगर विश्व भर में जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपाय सफल नहीं होते हैं, तब तो इन ग्लेशियरों पर और भी ज्यादा बुरा असर होगा. अनुमान के मुताबिक, सन 2100 आते आते हम इसका करीब दो-तिहाई हिस्सा खो देंगे.
इस स्टडी का नेतृत्व करने वाले इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवेलपमेंट के फिलिपस वेस्टर का कहना है, "ग्लोबल वॉर्मिंग लगातार इन जमे हुए ग्लेशियर से ढके हिंदू कुश पहाड़ों की चोटी को गलाने में लगी है. एक सदी से भी कम में यह नंगे पहाड़ बन जाएंगे जो कि आठ देशों से होकर गुजरते हैं."
पांच सालों तक चली इस स्टडी में हिंदू कुश क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के असर को समझने की कोशिश की गई. यह इलाका एशिया के आठ देशों, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, चीन, भूटान, बांग्लादेश और म्यांमार से होकर गुजरता है. इसी इलाके में दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटियां भी हैं और वे सारे ग्लेशियर भी जिनसे सिंधू, गंगा, यांग्सी, इरावडी और मेकॉन्ग नदियों में पानी आता है.
अनुमान लगाया गया है कि ग्लेशियरों के पिघलने से इलाके में बाढ़ आने से लेकर, वायु प्रदूषण बढ़ने और ग्लेशियरों में काले कार्बन और धूल के जमने जैसे बदलाव दिखेंगे. बांग्लादेश की राजधानी ढाका की एक पर्यावरण संस्था, इंटरनेशनल सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज एंड डेवलपमेंट के निदेशक सलीमुल हक ने इस रिपोर्ट के नतीजों को "बहुत खतरनाक" बताया है, खासकर बांग्लादेश जैसे देशों के लिए. इस स्टडी को रिव्यू करने वाले विशेषज्ञों में से एक रहे हक ने बताया, "सभी प्रभावित देशों को इस आने वाली परेशानी से निपटने के उपायों को वरीयता देनी चाहिए, इससे पहले कि ये बड़ा संकट बन जाए."
स्टडी में लिखा है कि अगर 2015 के पेरिस जलवायु समझौते के हिसाब से इस सदी के अंत तक 1.5 डिग्री सेल्सियस तक ही बढ़ने देने का लक्ष्य पूरा भी कर लिया जाता है, तो भी इलाके के एक तिहाई ग्लेशियर नहीं बचेंगे. और अगर बढ़ोत्तरी 2 डिग्री सेल्सियस तक होती है, तो भी दो तिहाई ग्लेशियर नहीं रहेंगे. इसलिए अब तक सोचे गए उपायों से भी आगे बढ़कर जलवायु परिवर्तन होने से रोकने के नए और कारगर उपाय खोजने होंगे.
आरपी/एमजे (एपी)