1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

क्या पाकिस्तान को 1971 के युद्ध के लिए माफी मांगनी चाहिए?

हारून जंजुआ (इस्लामाबाद से)
१ अप्रैल २०२१

पाकिस्तान और बांग्लादेश अपने कड़वे अतीत को पीछे छोड़ एक दूसरे के करीब आना चाहते हैं. लेकिन जानकार कहते हैं कि जब तक पाकिस्तान बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के अत्याचारों के लिए माफी नहीं मांगेगा, तब तक बात आगे नहीं बढ़ेगी.

https://p.dw.com/p/3rTvT
BG 50 Jahre Unabhängigkeit Bangladesch
आजादी से पहले बांग्लादेश को पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता थातस्वीर: AP/picture alliance

उस घटना को 50 साल हो गए हैं जब बांग्लादेश ने भारत की मदद से पाकिस्तान से लड़कर आजादी हासिल की थी. पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश बन गया लेकिन इस लड़ाई में लगभग तीस लाख लोग मारे गए और पाकिस्तान की सेना पर गंभीर युद्ध अपराधों के लिए आरोप लगे. इसीलिए बीते पांच दशकों में दोनों देश आपसी कड़वाहट को दूर नहीं कर पाए हैं.

लेकिन पिछले दिनों बांग्लादेश की स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगांठ पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने प्रधानमंत्री शेख हसीना को बधाई दी और उन्हें पाकिस्तान दौरे पर आमंत्रित किया. एक पत्र में इमरान खान ने लिखा, "मैं अपनी तरफ से, सरकार और पाकिस्तान के लोगों की तरफ से बांग्लादेशी गणतंत्र की स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगांठ पर बधाई देता हूं."

इस पत्र को दोनों देशों के बीच दूरी कम करने की कोशिश के तौर पर देखा गया. इससे एक हफ्ते पहले ही बांग्लादेश की प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान के गणतंत्र दिवस पर इमरान खान को बधाई पत्र भेजा था. यह दिवस 'पाकिस्तान प्रस्ताव' की याद में मनाया जाता है जो 23 मार्च 1940 को लाहौर में पारित किया गया था. यह प्रस्ताव अलग देश पाकिस्तान हासिल करने के लिए संघर्ष में एक मील का पत्थर माना जाता है.

ये भी पढ़िए: बांग्लादेश की आजादी के 50 साल

पाकिस्तान माफी मांगेगा?

बांग्लादेश की आजादी की विरासत पाकिस्तान के साथ उसके रिश्तों में बाधा रही है. लेखक अनाम जकारिया पाकिस्तान और बांग्लादेश की सरकारों की तरफ से एक दूसरे के करीब आने की कोशिशों को सराहती हैं, लेकिन वह कहती हैं कि इस मोर्चे पर तभी प्रगति होगी जब पाकिस्तान "1971 में हुई हिंसा को स्वीकार करे और बांग्लादेश के जन्म से पहले वहां के लोगों के साथ हुए राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक भेदभाव को भी माने."

जकारिया के अनुसार अतीत की जिम्मेदारी लेने और 1971 में युद्ध अपराधों के लिए औपचारिक तौर पर माफी मांगने से ही राजनयिक और आर्थिक संबंधों को बेहतर बनाया जा सकता है. वह कहती हैं, "आधी सदी के बाद भी पाकिस्तान ने अपने अतीत को नहीं अपनाया है. स्कूली किताबों, प्रदर्शनियों और मुख्यधारा के विमर्श में इतिहास को या तो गलत तरीके से पेश किया जाता है या उसे खत्म ही कर दिया गया है. सरकार ने जानबूझ कर अतीत के चुनिंदा निशान छोड़े हैं या फिर उन्हें भुला ही दिया गया है."

जकारिया की राय है, "50 साल बाद भी हिंसा से इनकार करना या उसे कम करके दिखाना बांग्लादेशी पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए दर्दनाक है. पाकिस्तान का इसे स्वीकारना बहुत जरूरी है.. देश अपने अतीत को आसानी से मिटा कर आगे नहीं बढ़ सकते. हमारा अतीत हमारे वर्तमान में लगातार हमारा पीछा करता रहेगा, जब तक कि हम उसे माने नहीं या फिर उससे सबक ना लें."

अमेरिका की इलिनोय यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर अली रियाज कहते है कि बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच हालिया संपर्कों को "बर्फ पिघलने" के तौर पर देखा जा सकता है, लेकिन असल प्रगति तभी होगी जब "पाकिस्तान 1971 के युद्ध के लिए बिना शर्त माफी मांगे." वह कहते हैं, "बेहतर संबंधों के लिए जरूरी है कि पाकिस्तान 1971 के युद्ध पर ध्यान दे, खासकर उसकी सेना के द्वारा किए गए नरसंहार पर. लंबे समय से इंतजार है कि पाकिस्तान इसके लिए बिना शर्त माफी मांगे. कोई भी देश अपने अंधेरे अतीत का सामना किए बिना आगे नहीं बढ़ सकता."

50 साल में बांग्लादेश का सफर

दूसरी तरफ, वॉशिंगटन के वूडरोव विल्सन सेंटर फॉर स्कॉलर्स में दक्षिण एशिया मामलों के जानकार मिषाएल कूगलमन को दोनों देशों के बीच मौजूदा संबंधों को देखते हुए ज्यादा उम्मीद नहीं है. वह कहते हैं, "यह बहुत ही जटिल और संवेदनशील मुद्दा है. मुझे नहीं लगता कि जिस तरह के रिश्ते अभी हैं वे जल्द बहुत बेहतर होने जा रहे हैं."

हाल के बरसों में दोनों देशों के रिश्ते ठंडे ही रहे हैं. 2016 में जब बांग्लादेश में 1971 के युद्ध अपराधों के आरोप में एक कट्टरपंथी इस्लामी नेता को फांसी दी गई, तो दोनों देशों के बीच राजनयिक विवाद हो गया. दोनों ने एक दूसरे के यहां से अपने राजदूतों को वापस बुलाया लिया. पाकिस्तान ने कहा कि वह युद्ध अपराधों के आरोप में देश की सबसे बड़ी कट्टरपंथी पार्टी के नेता मीर कासिम अली को फांसी दिए जाने पर "बहुत दुखी" हैं. इस पर बांग्लादेश ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान उसके अंदरूनी मामलों में दखल दे रहा है.

छोटे छोटे कदम  

लेकिन रियाज सोचते हैं कि पिछले दिनों बांग्लादेश की आजादी की 50वीं वर्षगांठ पर बधाई देने के इमरान खान के फैसले से बेहतर रिश्तों की एक इच्छा दिखाई देती है. उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "बीते महीनों में दोनों देशों ने संकेत दिए हैं कि वे अपने पुराने मतभेदों को भुलाना चाहते हैं. मिसाल के तौर पर पिछली गर्मियों में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान का टेलीफोन करना बताता है कि पाकिस्तान आगे बढ़ना चाहता है."

वह कहते हैं, "बांग्लादेश की सरकार ने ऐसे कदमों का हाल के महीनों में सकारात्मक जवाब दिया है.. ये अच्छे संकेत हैं." कुगलमन मानते हैं कि दोनों देश रिश्ते सुधार लें तो उनके बीच व्यापार की नई संभावनाएं जन्म दे सकती हैं, "आर्थिक सहयोग से भरोसा मजबूत करने में मदद मिल सकती है और इससे पैदा समझ अन्य क्षेत्रों में भी मदद पहुंचाएगी."

कुगलमन कहते हैं कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में बांग्लादेश से भारत के रिश्ते बहुत मजबूत हुए हैं, लेकिन उनकी सरकार की कुछ नीतियों से बांग्लादेश के कई तबके नाराज हैं, "इससे पाकिस्तान के लिए संभावनाएं पैदा होती हैं और वह इस तनाव का फायदा उठाकर बांग्लादेश से संबंध सुधार सकता है."

बांग्लादेश: शर्ट से शिप तक

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी