1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
प्रेस स्वतंत्रता

क्या दुनिया चीन की गलती की सजा भुगत रही है?

२२ अप्रैल २०२०

ताजा प्रेस स्वतंत्रता इंडेक्स के बाद फिर यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या दुनिया चीन की गलती की कीमत चुका रही है. कोरोना वायरस पर चीन ने सूचना छिपाई है और प्रेस को भी रोका है, जिसकी वजह से अब पूरी दुनिया में हाहाकार है.

https://p.dw.com/p/3bFgE
China Presse Zeitung Zeitungsleser in Schanghai
तस्वीर: PETER PARKS/AFP/Getty Images

मध्य और पूर्वी एशिया में प्रेस की स्वतंत्रता बुरे हालात का सामना कर रही है. अंतरराष्ट्रीय मीडिया पर नजर रखने वाली संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉडर्स (आरएसएफ) ने प्रेस स्वतंत्रता की स्थिति पर दुनिया का जो नक्शा जारी किया है, उसमें इस पूरे इलाके को लाल दिखाया गया है. इसका मतलब है कि इस इलाके के देशों में प्रेस स्वतंत्रता की हालत "खराब" हैं. लेकिन इस नक्शे में चीन को काले रंग में दिखाया गया है, जिसका मतलब है कि वहां हालात "बहुत खराब" हैं.

180 देशों वाले इस इंडेक्स में चीन को लगातार दूसरे साल 177वें यानी नीचे से चौथे पायदान पर रखा गया है. उसके बाद इंडेक्स में तीन देशों उत्तर कोरिया (180), तुर्कमेनिस्तान (179) और इरीट्रिया (178) को रखा गया है. चीन में सूचना के प्रवाह पर सरकार का कड़ा पहरा है. वहां हर तरह की जानकारी पर सेंसरशिप की तलवार लटकी रहती है और अगर आपकी बात सरकार को पसंद नहीं आई तो आपको जेल भी हो सकती है.

कोरोना संकट

आरएसएफ ने चीन की जो आलोचना की है, उसके केंद्र में कोरोना संकट है. इस संकट के महामारी बनने से पहले भी चीन इससे जुड़ी जानकारी को अपने देश के भीतर और विदेशों में जाने से रोक रहा था. लेकिन अब आरएसएफ चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मीडिया सेंसरशिप नीति और इसकी वजह से लोगों की सेहत को हुए नुकसान के बीच सीधा संबंध देख रहा है.

China Demonstration in Guangzhou für die Zeitung Southern Weekly
फौरन स्थिति सुधरने की उम्मीद नहींतस्वीर: STR/AFP/Getty Images

आरएसएफ में पूर्वी एशिया के ब्यूरो चीफ सेड्रिक अल्वियानी कहते हैं, "चीन की सेंसरशिप से पूरी दुनिया को खतरा है और हमें इस बात पर जोर देने की जरूरत है." उनके मुताबिक, "निश्चित तौर पर सरकार और सेंसरशिप के बीच सीधा संबंध है. उन्होंने पहले महीने के दौरान सारी जानकारी को छिपाया और यह एक तथ्य है." अल्वियानी कहते हैं कि 11 मार्च को जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड 19 को महामारी घोषित किया था, उस दिन चीन ने वीचैट जैसे अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और समाचार देने वाले एप्स पर इस वायरस से जुड़े बहुत सारे कीवर्ड्स को सेंसर कर दिया ताकि लोग इस बारे में ऑनलाइन बात ना कर सकें.

खामोश तमाशाई

इससे पहले भी इस तरह की बहुत सी मिसालें मिलती हैं. चीनी शहर वुहान में जहां से यह वायरस दुनिया भर में फैला, वहां कुछ डॉक्टरों ने 2019 के आखिरी दिनों में इस वायरस के बारे में लोगों को बताना शुरू किया था. उन्हें प्रशासन ने ना सिर्फ रोका बल्कि उन पर अफवाहें फैलाने का आरोप भी लगाया. इनमें डॉ ली वेनलियांग भी शामिल थे जिनकी बाद इसी वायरस से मौत हो गई.

फरवरी में वरिष्ठ चीनी पत्रकार छियान कांग ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सेंट्रल कमेटी के आधिकारिक अखबार पीपुल्स डेली का विश्लेषण किया. उस वक्त वुहान में कोरोना वायरस कई हफ्तों से कोहराम मचाए हुए था, लेकिन चीनी अखबार कम्युनिस्ट पार्टी का प्रोपेगेंडा चलाते हुए लोगों को बता रहा था कि कैसे चीनी राष्ट्रपति आम लोगों के घर जाकर उनसे मिले. अखबार में कोविड-19 की कवरेज को अनदेखा किया गया.

बाद में छियान ने हांगकांग स्थित चीन मीडिया प्रोजेक्ट के लिए अपने लेख में कहा, "पिछले दो महीने से चीन एक बड़े स्वास्थ्य संकट से गुजर रहा है और बहस हो रही है कि क्या शुरुआती चरण में जानकारी को छिपाया जाना इसकी एक वजह है. वहीं पीपुल्स डेली को देखकर लगता है कि उसे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा है."

USA Freedom House Senior Analyst Sarah Cook
सारा कुकतस्वीर: Freedom House

अंतरराष्ट्रीय प्रभाव

जानकारी को सेंसर किए जाने की चीन की कोशिशों से सिर्फ उसी के नागरिक प्रभावित नहीं हुए. जानकारी को छिपाए जाने का असर यह हुआ कि दुनिया इस संकट की गंभीरता को देर से समझ पाई, जिसकी वजह से लाखों लोग इस संक्रमण की चपेट में आ गए. अल्वियानी कहते हैं, "चीन के मामले में, कोरोना वायरस के फैलाव ने एक बहुत ही अहम सबक दिया है. वह यह कि चीन में सेंसरशिप का असर सिर्फ वहां के लोगों के लिए ही चिंता की बात नहीं है. इससे धरती पर रहने वाले सभी लोगों को खतरा है."

अमेरिकी संस्थान फ्रीडम हाउस में चीन और हांगकांग मामलों की विश्लेषक सारा कुक की राय भी कुछ ऐसी है. वह कहती हैं, "जब वे जानकारी फैलाने वाले स्रोतों को रोकने के काबिल हो जाते हैं, तो वे तय कर सकते हैं कि क्या चीन से बाहर जाएगा क्या नहीं. फिर वे कोशिश करते हैं कि अफ्रीका में टीवी पर क्या दिखाया जाएगा क्या नहीं. लोग क्या शेयर कर पाएंगे, क्या नहीं." कुक कहती हैं कि खासकर उन देशों में यह एक समस्या है जहां चीन अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. इसी साल उन्होंने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें बताया गया है कि चीन कैसे दुनिया भर में अपना मीडिया प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है.

चीन पूरी कोशिश में जुटा है कि विदेशी समाचार संस्थानों पर अपने सरकारी मीडिया की सामग्री को प्रसारित कराया जाए, चीन के सोशल मीडिया चैनलों को नियंत्रित किया जाए, फेक न्यूज फैलाई जाए, दुनिया भर के न्यूज मीडिया में हिस्सेदारी खरीदी जाए और यहां तक कि पत्रकारों और मीडिया से जुड़े अधिकारियों को राजनयिकों के जरिए परेशान किया जाए. आरएसएफ को चीन में प्रेस स्वतंत्रता की स्थिति में जल्द किसी बड़े बदलाव की आशा नहीं है. वहां लगभग 100 पत्रकार और ब्लॉगर अब भी जेल में हैं. अल्वियानी कहते हैं, "चीन में हालात वापस सामान्य हो गए हैं. अधिकारियों के पास फिर प्रेस स्वतंत्रता पर बंदिशें लगाने का अवसर है."

रिपोर्ट: अलेक्स मैथ्यूज

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

प्रेस को कहां कितनी आजादी है?