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क्या कोरोना ऐप्स आपकी प्राइवेसी के लिए हानिकारक हैं?

चारु कार्तिकेय
१० अप्रैल २०२०

कोविड-19 से लड़ने के लिए सरकारें कई तरह के सर्विलांस ऐप्स का इस्तेमाल कर रही हैं. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि अगर सरकारों को इस तरह के ऐप का इस्तेमाल करना ही है तो उन्हें इसके लिए एक कानूनी फ्रेमवर्क तय करना चाहिए.

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Indien Coronavirus infizierte auf Smartphone
तस्वीर: picture-alliance/ZUMA Wire/SOPA Images/M. Rajpu

विश्व के और कई देशों की तरह भारत में भी इन दिनों कोविड-19 महामारी से लड़ने के लिए सरकारों द्वारा विकसित किए गए मोबाइल ऐप पर प्राइवेसी बनाम सुरक्षा की बहस चल रही है. महामारी के फैलाव की गति उसे रोकने की सरकार की कोशिशों से तेज है और इसलिए सरकारें टेक्नोलॉजी की मदद लेना चाह रही हैं. लेकिन हमेशा की तरह इस मामले में भी टेक्नोलॉजी के उपयोग के साथ साथ उसके दुरूपयोग की संभावना का सवाल भी जुड़ा हुआ है. 

भारत सरकार ने आरोग्य सेतु नाम का एक ऐप निकाला है जिसे सरकार पूरे देश के लोगों को अपने अपने मोबाइल फोन में डाउनलोड करने के लिए कह रही है. सरकार का कहना है कि इस ऐप में कोविड-19 से जुड़ी सभी जानकारी के अलावा एक बहुत ही काम का फीचर है. अगर इस ऐप को डाउनलोड करके आप अपने फोन का ब्लूटूथ और जीपीएस ऑन कर देते हैं और ऐप पर अपनी लोकेशन शेयर कर देते हैं तो ऐप आपको बता देगा कि आप किसी कोविड-19 पॉजिटिव व्यक्ति के पास गए थे या नहीं. गूगल प्ले स्टोर पर इस ऐप को एक करोड़ से ज्यादा बार डाउनलोड किया जा चुका है. 

कई राज्य सरकारें भी अपने अपने ऐप बना रही हैं और उनका इस्तेमाल कर रही हैं. दिल्ली सरकार लोगों द्वारा क्वारंटीन के उल्लंघन को ट्रैक करने के लिए बेंगलुरु की एक कंपनी द्वारा बनाये गए एक ऐप की मदद ले रही है. ये ऐप प्रशासन ने ऐसे कम से कम 20 लोगों के फोन पर डाउनलोड करवाया है जिन्हें खुद से क्वारंटीन करने का निर्देश दिया गया था. ऐसा व्यक्ति अगर क्वारंटीन के दायरे से 50-100 मीटर का रेडियस पार करता है तो ऐप प्रशासन को भी इसकी सूचना भेजता है और उस व्यक्ति को भी आगाह करता है कि वो क्वारंटीन का उल्लंघन कर रहा है. व्यक्ति अगर तब भी नहीं मानता तो प्रशासन पुलिस को उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दे देता है.  

इसके अलावा दिल्ली सरकार ने एक और ऐप खुद बनाया है जिसका इस्तेमाल कन्टेनमेंट इलाकों में एक एक घर से जानकारी बंटोरने के लिए किया जा रहा है. सरकार द्वारा नियुक्त किए हुए वॉलंटियर घर-घर जा कर जानकारी हासिल कर इस ऐप के जरिये केंद्रीय सर्वरों में उस जानकारी को डाल देते हैं. इसमें जो जानकारी डाली जा रही है उसमें बुखार या खांसी की शिकायत, देश से बाहर यात्रा का रिकॉर्ड, किसी कोविड-19 पॉजिटिव व्यक्ति से संपर्क और निजामुद्दीन मरकज में हुई तब्लीगी जमात के सम्मलेन से कोई संबंध, शामिल है. फिलहाल तो दोनों ऐप का सीमित इस्तेमाल हो रहा है लेकिन दिल्ली सरकार ने हर जिले में इनके इस्तेमाल का आदेश दे दिया है.

Indien Neu-Delhi Coronavirus
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Swarup

इसी तरह कर्नाटक सरकार ने भी क्वारंटीन का उल्लंघन करने वालों को पकड़ने के लिए एक ऐप निकाला था और लोगों को हर घंटे एक सेल्फी खींच कर उसमें अपलोड करने को कहा था.

निजता यानी प्राइवेसी के अधिकार के लिए लड़ने वाले कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों का मानना है कि अगर सरकारों को इस तरह के ऐप का इस्तेमाल करना ही है तो उन्हें इसके लिए एक कानूनी फ्रेमवर्क तय करना चाहिए, जिसमें कुछ बातें स्पष्ट कर देनी चाहिए, जैसे किस अधिकारी की इजाजत से ऐप के जरिए लोगों का डाटा लिया जा रहा है, लोगों का कौन सा डाटा लिया जाएगा और कौन सा नहीं, ये कहां स्टोर होगा और किस-किस की इस तक पहुंच होगी इत्यादि. 

इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन का कहना है कि यह चिंताजनक है कि सरकारें मोबाइल के लोकेशन डाटा को इस्तेमाल करने का कानूनी आधार अभी भी नहीं बता रही हैं. 

अपार गुप्ता वकील हैं और इस फाउंडेशन के सह-संस्थापक हैं. अपार ने एक अखबार को बताया है कि जहां तक उनकी जानकारी है एपिडेमिक डिसीजेज एक्ट, जिसका इस्तेमाल आदेशों को लागू करवाने के लिए अभी राज्य सरकारें कर रही हैं, तब भी सरकार को इस तरह के ऐप के जरिए लोकेशन डाटा इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं देता. वो यह भी कहते हैं कि वे जानते हैं कि महामारी के इस काल में कई लोग जानबूझ कर सुरक्षित महसूस करने के लिए अपने अधिकार गंवाने को तैयार हैं, लेकिन ऐसा करना ठीक नहीं होगा क्योंकि असाधारण स्थितियों में ही आजादी और अधिकारों की सुरक्षा करना और भी ज्यादा जरूरी हो जाती है. 

सरकारें अगर चाहें तो तकनीक के द्वारा डाटा जमा करने का काम लोगों की निजता को सुरक्षित रख कर भी कर सकती हैं. देखना होगा कि सरकारें इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाती हैं या नहीं.

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