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समाज

श्रमिकों के असल हाल पर रोशनी डाल रही है यह रिपोर्ट

चारु कार्तिकेय
१७ अप्रैल २०२०

प्रवासी श्रमिक भारी कठिनाई के दौर से गुजर रहे हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार 89 प्रतिशत को वेतन का एक पैसा भी नहीं मिला है तो 96 प्रतिशत लोगों तक सरकारी राशन नहीं पहुंच पाया है.

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Indien Kalkutta Migranten Arbeiter Coronavirus Covid-19 Gastarbeiter
तस्वीर: Reuters/A. Dave

तालाबंदी से प्रभावित प्रवासी श्रमिक मीडिया की सुर्खियों से भले ही गायब हो गए हों लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि उनकी स्थिति संभल गई है. वे किस संकट की स्थिति से गुजर रहे हैं और किस तरह के भविष्य की तरफ बढ़ रहे हैं शायद इसका ठीक से अंदाजा नहीं हो पा रहा है. कुछ शिक्षकों और एक्टिविस्ट के एक समूह ने कुछ प्रवासी श्रमिकों से जानकारी जमा कर के और उनका नियमित अध्ययन करके एक रिपोर्ट जारी की है जो यह दिखाती है कि स्थिति जितनी चिंताजनक है उतनी दिखाई नहीं दे रही है.

स्ट्रैंडेड वर्कर्स एक्शन नेटवर्क का कहना है कि तालाबंदी शुरू होने के दो दिनों में उनके नेटवर्क के 73 स्वयंसेवियों को महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में फंसे हुए प्रवासी श्रमिकों के फोन आने लगे. श्रमिकों ने उन्हें बताया कि वे संकट में हैं और उन्हें मदद चाहिए. नेटवर्क के लोग 11 हजार से भी ज्यादा श्रमिकों से संपर्क कर पाए और उनकी मदद के लिए 3.8 लाख रुपये जमा किए, उनके नजदीक स्थानीय संगठनों से संपर्क कराया और सरकारी मदद का भी इंतजाम किया.

इनमें से ज्यादातर श्रमिक वे थे जो या तो अपने अपने गृह-राज्य लौट नहीं पाए या उन्होंने जाने की कोशिश भी नहीं की. नेटवर्क ने पाया कि ये लोग जितने संकट में हैं उससे उन्हें निकालने के लिए पर्याप्त राहत नहीं मिल पा रही है. समूह ने पाया कि इनमें से 96 प्रतिशत लोगों को सरकार से राशन नहीं मिला है. सबसे बुरी स्थिति उत्तर प्रदेश में थी जहां से कम से कम 1,611 श्रमिकों ने बताया कि उन्हें जरा भी सरकारी राशन नहीं मिला है.

Indien Kalkutta Migranten Arbeiter Coronavirus Covid-19 Gastarbeiter
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui

भोजन केंद्रों पर लंबी कतारें

पका हुआ खाना कई जगह जरूर मिल रहा लेकिन उसमें भी हर राज्य में स्थिति अलग है. कर्नाटक में 80 प्रतिशत लोगों को खाना नहीं मिला, तो पंजाब में 32 प्रतिशत लोगों को. दिल्ली और हरियाणा में स्थिति अलग है. इन राज्यों में रहने वाले श्रमिकों में से लगभग 60 प्रतिशत ने कहा कि उन्हीं खाना मिला लेकिन खाने की कतारें लंबी हैं और कई बार सबको खाना मिलने से पहले ही खत्म हो जाता है.

दो बच्चों के पिता दिल मोहम्मद नाम के एक ड्राइवर ने बताया कि वे एक बार ऐसे ही एक केंद्र पर गए जहां खाना मिल रहा था. दिल मोहम्मद चार घंटों तक कतार में खड़े रहे लेकिन उनकी बारी आने से पहले ही वहां खाना खत्म हो गया और उन्हें चार केले दे दिए गए. समूह का कहना है कि 11 अप्रैल को इसी तरह निराश हुए कुछ श्रमिकों ने तीन ऐसे केंद्रों में आग लगा दी थी और यह दर्शाता है कि भूखे मरने की चिंता को अगर पर्याप्त रूप से दूर ना किया गया तो क्या नतीजा हो सकता है.

समूह के सदस्यों ने यह भी पाया कि श्रमिकों को पैसों की जरूरत है. ये दिहाड़ी पर जीते हैं और रोज जो पैसे कमाते हैं उसी से भोजन, दवाओं और मोबाइल रिचार्ज जैसी जरूरतों का इंतजाम करते हैं. पैसे मिल जाएं तो राशन भी खरीद कर पका सकते हैं. इनमें से लगभग 98 प्रतिशत लोगों को सरकार से नकद या किसी भी किस्म की आर्थिक मदद नहीं मिली है.

Indien Coronavirus Slums
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. Maqbool

एक अजीबोगरीब मामले में, समूह ने पंजाब के लुधियाना में श्रमिक तिलक महतो के बैंक खाते में 800 रुपये डलवाए लेकिन उसमें से लगभग पूरी राशि बैंक ने शुल्क के रूप में काट ली क्योंकि खाते में कई दिनों से मिनिमम बैलेंस नहीं था. सोशल मीडिया पर मामला सामने आने से राशि वापस खाते में भेज दी गई.

89 प्रतिशत को नहीं मिला वेतन

श्रमिकों के हित के लिए गृह मंत्रालय ने 29 मार्च को ही आदेश जारी कर दिया था कि इनके वेतन ना काटे जाएं और इनके मकानमालिक फिलहाल इनसे किराया भी ना लें. लेकिन असलियत इस निर्देश से कोसों दूर है. समूह ने पाया कि इन श्रमिकों में से 89 प्रतिशत को तालाबंदी के दौरान उनके नियोक्ताओं ने एक पैसा भी नहीं दिया है.

समूह का यह भी कहना है कि श्रमिक इस समय जिस संकट का सामना कर रहे हैं वह जानलेवा भी है. रिपोर्ट जारी होने तक देश में कोविड-19 की वजह से 333 लोगों की जान गई थी जबकि तालाबंदी के दौरान आत्महत्या, भूख, हाईवे पर हादसे, पुलिस की मार इत्यादि की वजह से कम से कम 199 लोगों की जान चली गई थी.

Delhi Indien Gastarbeiter fahren zurück in die Heimat
तस्वीर: DW/M. Raj

समूह का यह भी कहना है कि संकट का स्वरूप धीरे धीरे बदल भी रहा है. जहां उन्हें पहले सिर्फ श्रमिकों के फोन आ रहे थे, अब कई जगहों से संकट में पड़े छात्रों और खाना घर तक पहुंचाने वालों जैसे  श्रमिकों से कुछ ज्यादा कमाने वाले लोगों का भी फोन आ रहा है कि वे संकट में हैं और उन्हें मदद चाहिए. इसका मतलब है कि तालाबंदी जैसे जैसे बढ़ती जा रही है वे और अधिक लोगों को संकट में डाल रही है.

उपाय क्या है?

समूह ने इस संकट में बेहतर प्रबंधन के लिए कुछ उपाय सुझाए हैं. इनके अनुसार सबसे पहले तो पीडीएस के तहत मिलने वाले राशन को तीन महीनों के लिए दोगुना कर देना चाहिए और दालें, तेल, नमक, मसाले, साबुन और सेनेटरी पैड के साथ लोगों के घर तक पहुंचाना चाहिए. यह सभी गरीबों को मिलना चाहिए यानी उन्हें भी जिनके पास राशन कार्ड नहीं है. इसके अलावा हर एक लाख की आबादी के लिए कम से कम 70 भोजन के केंद्र होने चाहिए जहां 12 घंटों तक खाना बंटता रहे.

इसके अलावा हर गरीब को दो महीनों के लिए हर महीने 7,000 रुपये नकद दिए जाने का सुझाव भी दिया गया है. साथ ही यह भी कहा गया है कि सभी जन धन खातों में तालाबंदी के दौरान और उसके उठने के दो महीने बाद तक हर महीने 25 दिनों का न्यूनतम वेतन दिया जाए. सभी राज्य सरकारें सुनिश्चित करें कि नियोक्ता ठेकेदार और श्रमिकों को पूरा वेतन दें.

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