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कोरोना वायरस: अस्थमा के मरीजों को कितना खतरा है?

१८ अप्रैल २०२०

अस्थमा यानि दमे के कई मरीजों को लग रहा है कि उन्हें नोवेल कोरोना वायरस का ज्यादा खतरा है या फिर अगर वायरस लग गया तो उनकी हालत गंभीर हो जाएगी. डॉक्टर कहते हैं कि उन्हें कॉर्टिजोन स्प्रे लेना अचानक बंद नहीं करना चाहिए.

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Frau mit Inhalator
तस्वीर: picture-alliance/VisualEyze/J. Salvarredy

बुजुर्ग लोग या फिर जिन्हें पहले से कोई स्वास्थ्य की समस्या चल रही हो उन्हें इस समय चल रहे कोरोना संकट के दौरान ज्यादा जोखिम वाला समूह माना जा रहा है. चूंकि कोविड-19 वायरस फेफड़ों पर हमला बोलता है इसलिए अस्थमा के कई मरीजों को डर सता रहा है कि उन्हें कोरोना बीमारी का ज्यादा ही खतरा है और वे उसके संक्रमण से कहीं ज्यादा प्रभावित होंगे.

दमे के मरीजों की चिंता इससे और भी बढ़ गई जब पता चला कि अस्थमा अटैक होने पर वे जिस कॉर्टिजोन इनहेलर या स्प्रे से उसे काबू में करते थे, कोरोना संक्रमण होने पर अगर उन्होंने उसका इस्तेमाल किया तो संक्रमण और गंभीर हो सकता है. इसका कारण यह है कि स्प्रे मोटे तौर पर इस तरह काम करता है कि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को कम कर बाहरी तत्वों को लेकर प्रतिक्रिया को कमजोर कर देता है.

क्या मरीजों को कॉर्टिजोन स्प्रे लेना जारी रखना चाहिए?

कॉर्टिजोन स्प्रे या गंभीर स्थिति में लिए जाने वाले कॉर्टिजोन टैबलेट का इस्तेमाल अस्थमा के इलाज में आम है. इससे एंटी-इनफ्लेमेट्री इफेक्ट होता है जो मरीज के फेफड़ों की पतली नलियों में होने वाली अतिसंवेदनशीलता को कम करता है. इस तरह से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को दबाने में मदद मिलती है.

जर्मनी में फेफड़ों के विशेषज्ञों और दूसरे कई जानकारों ने एक संयुक्त बयान जारी कर अस्थमा के मरीजों को भरोसा दिलाया है कि अगर अस्थमा के मरीज अपनी दवाइयां नियमित तौर पर लेते रहें तो उनके लिए कोरोना का खतरा पहले से ज्यादा नहीं बढ़ेगा. एक्सपर्ट्स की सलाह है कि मरीजों को अपने डॉक्टर से सलाह लिए बगैर दवाएं बंद नहीं करनी चाहिए. यहां तक की अगर उनकी हालत बिगड़ने लगे तो भी डॉक्टर ऐसे मरीजों का कॉर्टिजोन डोज एडजस्ट कर सकते हैं.

अलग-अलग आकलन

यह सलाह इनहेल किए जाने वाले स्टेरॉयड के बारे में दी गई सलाहों से काफी अलग है. उदाहरण के तौर पर, बर्लिन शारिटे के मुख्य वायरस विशेषज्ञ क्रिस्टियान ड्रोस्टेन ने सलाह दी थी कि अस्थमा के मरीजों को उनका इलाज कर रहे डॉक्टर से बात कर लेनी चाहिए कि क्या उनके कॉर्टिजोन-आधारित दवा को किसी और ऐसी दवा से बदला जा सकता है जो शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र के साथ इतनी छेड़छाड़ ना करती हो.

चूंकि अब तक कॉर्टिजोन युक्त इन दवाओं से संक्रमण का खतरा बढ़ने का कोई सीधा कनेक्शन स्थापित नहीं हुआ है इसलिए जर्मन सोसायटी फॉर न्यूमोलॉजी एंड रेसपिरेटरी मेडिसिन के विशेषज्ञ अब तक इनहेलेशन थेरेपी का समर्थन कर रहे हैं. उनका मानना है कि किसी दवा या थेरेपी को अचानक बंद नहीं करना चाहिए. ऐसा करने से मरीज के लिए कोरोना संक्रमण से भी कहीं ज्यादा बड़ा खतरा पैदा होगा.

विशेषज्ञों ने बताया है कि गंभीर अस्थमा वाले बुजुर्ग लोगों और नियमित तौर पर कॉर्टिजोन टैबलेट लेने वाले लोगों को इस दौरान भी ज्यादा खतरा है. जो लोग अब तक केवल कभी कभार ही कॉर्टिजोन स्प्रे लेते आए हैं, उन्हें अब ये ज्यादा नियमित तौर पर लेना चाहिए. डॉक्टरों का मानना है कि इससे इन लोगों के एयरवेज यानि हवा की नलियां खुली रहेंगी और उन्हें खांसी और सांस की परेशानी नहीं झेलनी पड़ेगी. अगर कॉर्टिजोन स्प्रे ज्यादा काम नहीं आता तो ऐसे लोगों को अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए.

क्या सुरक्षित रहने के लिए और कुछ भी कर सकते हैं?

यह बात सच साबित हुई है कि जिन लोगों को पहले से ही सांस से जुड़ी गंभीर बीमारियां थीं उन्हें वायरस से लड़ने में दिक्कतें पेश आती हैं. इसका कारण यह है कि फेफड़ों की म्यूकोसा पहले से ही कमजोर होती है. लंग स्पेशलिस्ट रायनाल्ड फिशर बताते हैं कि अस्थमा के मरीजों में उनके म्यूकोसा में एलर्जी के कारण होने वाला इनप्लेमेशन अकसर दिखता है लेकिन वो न्यूमोनिया का रूप नहीं लेता. फिशर बताते हैं कि ज्यादा प्रभावी किस्म के फिल्टरयुक्त मास्क जैसे ‘एफएफपी3' पहनना फेफड़ों के मरीजों को थोड़ा परेशान कर सकता है क्योंकि इनके साथ सांस लेना काफी कठिन महसूस होता है.

कई बार कोरोना के अलावा भी कई दूसरे किस्म के वायरस और बैक्टीरिया के कारण फेफड़े और उसकी नलियां उत्तेजित हो जाती हैं. इसलिए डॉक्टरों की सलाह है कि अस्थमा के मरीज पहले से ही अगर इन्फ्लुएंजा और न्यूमोकॉक्कल वैक्सीन लगवा लें तो उनके लिए अच्छा रहेगा. जाहिर है कि अस्थमा और सांस से जुड़ी अन्य बीमारियों से ग्रस्त लोगों को इस दौर में अपने हाइजीन का और लोगों से पर्याप्त दूरी बना कर रखने का खास ख्याल रखने की जरूरत है.

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