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समाजएशिया

कोरोना की मार और दुर्गा पूजा पर तेज होती राजनीति

प्रभाकर मणि तिवारी
२० अक्टूबर २०२०

जब पूरी दुनिया कोरोना और इसकी वजह से हुए लॉकडाउन की मार से कराह रही हो तो पश्चिम बंगाल का सबसे बड़ा त्योहार दुर्गापूजा भला इससे अछूता कैसे रह सकता है? एक ओर कोरोना की मार है तो दूसरी ओर पूजा पर राजनीति भी हो रही है.

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Durgapuja West Bengal Coronavirus
तस्वीर: Prabhakarmani Tewari/DW

इलाके के सबसे बड़े त्योहार पर भी अबकी कोरोना की मार साफ नजर आ रही है. इसके साथ ही कलकत्ता हाईकोर्ट ने कोरोना संक्रमण की वजह से तमाम पूजा पंडालों को नो इंट्री जोन घोषित कर दिया है. इससे आयोजकों और दर्शकों में भारी मायूसी है. बीते सप्ताह से ही पंडालों के उद्घाटन में जुटी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, उनकी सरकार या पार्टी ने तो अदालत के फैसले पर कोई टिप्पणी नहीं की है. लेकिन आयोजकों के संगठन फोरम फॉर दुर्गोत्सव कमिटी ने मंगलवार को इस फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिका दायर की है.

दूसरी ओर, कोरोना काल में भी पूजा पर तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच राजनीति लगातार तेज हो रही है. बीजेपी पहली बार कोलकाता में एक पूजा आयोजित कर रही है जिसका उद्घाटन 22 अक्तूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे. वे उसी दिन मन की बात की तर्ज पर राज्य के लोगों से पूजा की बात भी करेंगे. बंगाल के इतिहास में पहली बार कोई राजनीतिक पार्टी दुर्गापूजा का आयोजन कर रही है. मोदी उस दिन बंगाल में कम से कम दस पूजा पंडालों का वर्चुअल उद्घाटन भी करेंगे. इसे अगले साल होने वाले अहम विधानसभा चुनावों से जोड़ कर देखा जा रहा है.

West Bengal BJP J.P Nadda Indien
बीजेपी प्रमुख जेपी नड्डा बंगाल मेंतस्वीर: Prabhakarmani Tewari/DW

फिर उठा सीएए का मुद्दा

पूजा से ठीक पहले एक दिन के उत्तर बंगाल दौरे पर आए बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी यह कह कर राजनीतिक हलचल मचा दी है कि संशोधित नागरिक कानून (सीएए) को जल्दी ही पूरे देश में लागू किया जाएगा.  नवरात्र के दौरान सोमवार को बीजेपी प्रमुख जे.पी. नड्डा के दौरे और उनके बयान ने राजनीतिक माहौल गरमा दिया है. सिलीगुड़ी में कार्यकर्ताओं की बैठक में नड्डा का कहना था, "कोरोना संक्रमण की वजह से सीएए को लागू करने में देरी हो गई है. अब जैसे-जैसे स्थिति सुधर रही है, वैसे ही नियम भी तैयार हो रहे हैं. बहुत जल्द सीएए लागू हो जाएगा.”

पश्चिम बंगाल सरकार औऱ सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस सीएए के सबसे मुखर विरोधियों में शामिल रहे हैं. बंगाल के अलावा पूर्वोत्तर राज्यों में भी इस कानून के विरोध में बड़े पैमाने पर हिंसा हो चुकी है. इलाके के ज्यादातर संगठनों का दावा है अगर नागरिकता संशोधन कानून, 2019 को लागू किया जाता है तो पूर्वोत्तर के मूल लोगों के सामने पहचान और आजीविका का संकट पैदा हो जाएगा. राजनीतिक पर्यवेक्षक प्रोफेसर समीरन पाल कहते हैं, "दुर्गापूजा के साथ ही बीजेपी ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों की अपनी रणनीति पर काम शुरू कर दिया है. पहली बार पूजा आयोजित करना, मोदी की ओर से पूजा की बात और नड्डा का बंगाल दौरे पर सीएए के तार छेड़ना इसी रणनीति का हिस्सा है.”

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पूजा की तैयारीतस्वीर: Prabhakarmani Tewari/DW

पूजा पर सियायत के आरोप

पश्चिम बंगाल में सबसे बड़े त्योहार दुर्गापूजा पर सियासती रंग तो कोई दो दशक पहले से ही घुलने लगा था. लेकिन इस साल यह रंग कुछ ज्यादा ही चटख नजर आ रहे हैं. इसकी वजह अगले साल के विधानसभा चुनाव हैं. ममता ने आयोजन समितियों को 50-50 हजार रुपये की मदद तो दी ही है, उनको बिजली में 50 फीसदी छूट की और फायरब्रिगेड की सुविधा मुफ्त देने का एलान भी किया गया है. इसके साथ ही इस साल नगरपालिका या ग्राम पंचायतें आयोजन समितियों से कोई टैक्स भी नहीं लेंगी. 

वर्ष 2011 में तृणमूल कांग्रेस के भारी बहुमत के साथ जीत कर सत्ता में आने के बाद इस त्योहार पर सियासत का रंग चढ़ने लगा था. धीरे-धीरे महानगर समेत राज्य की तमाम प्रमुख आयोजन समितियों पर तृणमूल कांग्रेस के बड़े नेता काबिज हो गए. तृणमूल कांग्रेस महासचिव पार्थ चटर्जी कहते हैं, "हमारे लिए दुर्गा पूजा बांग्ला संस्कृति, विरासत और इतिहास का अभिन्न हिस्सा है. पार्टी इसे उत्सव के तौर पर मनाती है." लेकिन बीजेपी ने तृणमूल पर पूजा को सियासी रंग में रंगने का आरोप लगाया है. प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, "तृणमूल कांग्रेस ने ही इस उत्सव को अपनी पार्टी के कार्यक्रम में बदल दिया है." 

बीजेपी भी इस मौके को भुनाने में पीछे नहीं है. यही वजह है कि षष्ठी यानी 22 अक्तूबर को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूजा की बात के जरिए लोगों को संबोधित करेंगे. यह अपने किस्म का पहला कार्यक्रम है. इससे साफ है कि बीजेपी पूजा के बहाने खासकर बांग्लाभाषियों के बीच अपनी पैठ मजबूत बनाने में जुटी है. अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए दुर्गा पूजा का ठीक उसी तरह इस्तेमाल करने का प्रयास कर रही है जैसा तृणमूल ने सत्ता में आने के बाद किया था.

बीजेपी की पूजा का आयोजन केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के तहत आने वाले ईस्टर्न जोनल कल्चरल सेंटर परिसर में किया जाएगा ताकि इसमें राज्य सरकार कोई रोड़ा नहीं अटका सके. बीजेपी की प्रदेश महासचिव व पूजा समिति की प्रमुख लाकेट चटर्जी बताती हैं, "कई लोग अपने घरों में पूजा आयोजित करते रहे हैं. उसी तरह यह बीजेपी परिवार की पूजा होगी.” दरअसल, बीजेपी का यह आयोजन राज्य के लोगों को यह संदेश देने की कोशिश है कि वह बंगाली-विरोधी पार्टी नहीं है. ममता अक्सर उस पर गैर-बंगालियों की पार्टी होने के आरोप लगाती रही हैं.

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कोरोना के कारण सावधानीतस्वीर: Prabhakarmani Tewari/DW

कोरोना के कारण अदालती फैसला

पश्चिम बंगाल में पूजा के दौरान संक्रमण बढ़ने का अंदेशा तो पहले से ही जताया जा रहा था. पूजा से पहले बाजारों में उमड़ने वाली भीड़ की वजह से राज्य में संक्रमितों की दैनिक संख्या चार हजार तक पहुंच गई है. ऐसे में पूजा के बाद इसके और बढ़ने का अंदेशा था. इस मामले में दायर एक जनहित याचिका के आधार पर अदालत ने साफ कर दिया है कि तमाम पूजा पंडाल नो इंट्री जोन रहेंगे. पुरोहितों के अलावा सिर्फ आयोजन समिति के चुनिंदा सदस्य ही पंडाल के भीतर जा सकेंगे. दर्शकों के प्रवेश पर पाबंदी होगी. यह लोग कम से कम पांच मीटर दूर से ही दर्शन कर सकेंगे. कोर्ट ने कहा कि कोलकाता शहर में 3000 से ज्यादा पंडाल हैं और भीड़ को संभालने के लिए पुलिसकर्मी नहीं हैं. अदालत के फैसले से खासकर पूजा को अपने सियासी हित में भुनाने वाली तृणमूल कांग्रेस में तो चुप्पी पसरी है. लेकिन स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इसका स्वागत किया है.

इस बीच, आयोजकों के संगठन फोरम फॉर दुर्गोत्सव कमिटी ने मंगलवार को अदालत के फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिका दायर की है जिस पर 21 अक्तूबर को सुनवाई होगी. फोरम के अध्यक्ष शाश्वत बोस कहते हैं, "अदालत का फैसला हमारे लिए झटका है. हमारी तैयारियां पूरी हो गई हैं. ज्यादातर समितियों के पंडालों का उद्घाटन हो चुका है. इसके अलावा आखिरी मौके पर इतन बड़ा फैरबदल आखिर कैसे संभव है? पूजा हमारे लिए परंपरा और आस्था का मुद्दा है, नफा-नुकसान का नहीं.”

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