कोई भी छाप सकेगा गांधीजी के विचार
४ जनवरी २००९हालांकि बापू कॉपीराइट के ख़िलाफ़ थे लेकिन इससे होने वाली आय से ग़रीबों की मदद के लिए वह तैयार हो गए. उन्होंने ख़ुद नवजीवन नाम से ट्रस्ट बनाया. उनकी विचारधारा से जुड़े उनके लेख और किताब इसी ट्रस्ट से छपते रहे. नवजीवन ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी जीतेंद्र देसाई ने डॉयचे वेले को बताया कि भारतीय क़ानून के मुताबिक़ कॉपीराइट की समयसीमा ख़त्म हो गई और अब कोई भी गांधीजी की लिखी चीज़ों को प्रकाशित कर सकता है. उन्होंने कहा, "1957 के भारतीय कॉपीराइट क़ानून के अनुच्छेद 24 के अनुसार लेखक की मृत्यु के 60 साल बाद तक कॉपीराइट रहता है. इसके बाद यह सार्वजनिक हो जाता है."
गांधीजी ने सिर्फ़ पांच किताबें लिखीं लेकिन नवजीवन, यंग इंडिया और हरिजन जैसे पत्रों में उनके हज़ारों लेख छपे, जिसे मिला कर 100 से ज़्यादा किताबें प्रकाशित हुईं. गांधी की विचारधारा ने लाखों को प्रभावित किया है. नवजीवन ट्रस्ट मानता है कि अब ये संख्या और बढ़ेगी. जीतेंद्र देसाई ने कहा, "मैं मानता हूं कि कई प्रकाशक आगे आएंगे और वे कमर्शियल तरीक़े से किताब छापेंगे. लेकिन किताबें ज़रूर निकलेंगी नई और अच्छी तरह से निकलेंगी." देसाई ने कहा कि इससे नवजीवन ट्रस्ट को कोई नुक़सान नहीं होगा. वह कहते हैं, "हम जो किताबें प्रकाशित करते हैं, वह रियायती दरों से प्रकशित होती हैं और ऐसे में कोई भी प्रकाशक हमसे मुक़ाबला नहीं कर सकता है."
लेकिन क्या गांधी के लिखे पत्रों को दोबारा प्रकाशित करने में किसी तरह की छेड़छाड़ का ख़तरा नहीं है. नवजीवन ट्रस्ट का कहना है कि इसकी संभावना नहीं है और अगर कोई ऐसा करता है तो सच्चाई को सामने लाया जाएगा.
गांधीजी की आत्मकथा माई एक्सपेरिमेंट विद ट्रूथ की 37 लाख से भी ज़्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं और इसे छापने का काम भी नवजीवन ट्रस्ट ने ही किया. मैनेजिंग ट्रस्टी जीतेंद्र देसाई बताते हैं कि बापू की 125वीं जयंती पर उन्होंने सभी भारतीय भाषाओं में इस किताब को प्रकाशित किया और बहुत से नए लोगों ने इसमें रुचि दिखाई. उन्होंने कहा कि युवा वर्ग गांधीजी के विचारधारा में ज़्यादा दिलचस्पी लेने लगा है.
दूसरे प्रकाशक नवजीवन ट्रस्ट को रॉयल्टी नहीं देंगे और इस तरह उनके राजस्व पर असर पड़ सकता है. लेकिन उन्हें ख़ुशी इस बात की है कि गांधीजी के विचार शायद ज़्यादा लोगों तक पहुंच पाए.