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कार्बन उत्सर्जन में इस साल आई रिकॉर्ड गिरावट

११ दिसम्बर २०२०

रिसर्चरों का कहना है कि 2020 में कोरोना वायरस की वजह से लगे लॉकडाउन के चलते कार्बन उत्सर्जन में 2.4 अरब मीट्रिक टन की कमी आई है. लेकिन रिसर्च महामारी खत्म होने के बाद के हालात को लेकर चेतावनी भी दे रहे हैं.

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USA | Dave Johnson Kohlekraftwerk
तस्वीर: J. David Ake/AP/picture alliance

कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में 2020 के दौरान सात प्रतिशत की रिकॉर्ड कमी आई. ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट ने अपनी सालाना रिपोर्ट देते हुए इस गिरावट की वजह दुनिया भर के देशों में लगे लॉकडाउन को माना है.

कोरोना महामारी के कारण एक साल की अवधि में कार्बन उत्सर्जन में कटौती के पुराने सभी रिकॉर्ड ध्वस्त हो गए. इससे पहले दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति पर 0.9 अरब मीट्रिक टन की गिरावट देखी गई थी. हाल के दशकों में 2009 में वैश्विक वित्तीय संकट के कारण कार्बन उत्सर्जन में 0.5 अरब मीट्रिक टन की कमी आई थी. लेकिन 2020 में यह गिरावट 2.4 अरब मीट्रिक टन तक जा पहुंची.

रिसर्चर कहते हैं कि उत्सर्जन में गिरावट इस वजह से आई क्योंकि ज्यादातर लोग अपने घरों पर ही थे और उन्होंने इस साल कार या फिर विमान से बहुत कम यात्राएं कीं. परिवहन कार्बन उत्सर्जन में कमी की एक बड़ी वजह है. सड़क परिवहन से होने वाला उत्सर्जन अप्रैल में घटकर लगभग आधा रहा गया. उस वक्त यूरोप, एशिया और अमेरिका में कोरोना महामारी की पहली लहर अपने चरम पर थी. दिसंबर तक इसमें एक साल पहले के मुकाबले 10 प्रतिशत की गिरावट दिखी. वहीं विमानन उद्योग की वजह से होने वाला उत्सर्जन इस साल 40 फीसदी कम रहा.

वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में औद्योगिक क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 22 प्रतिशत होती है. कुछ देशों में सख्त लॉकडाउन की वजह से इस क्षेत्र के उत्सर्जन में 30 प्रतिशत की कमी आई. उत्सर्जन में सबसे ज्यादा कमी अमेरिका और यूरोपीय संघ में दिखी. वहां क्रमशः 12 और 11 प्रतिशत की गिरावट आई. लेकिन चीन में यह गिरावट सिर्फ 1.7 प्रतिशत की रही, क्योंकि वह तेजी से आर्थिक रिकवरी की तरफ बढ़ रहा है.

पांच साल पहले हुए पेरिस जलवायु समझौते के अनुसार इस दशक में हर साल उत्सर्जन में एक से दो अरब मीट्रिक टन की कटौती जरूरी है, तभी पृथ्वी की तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस से कम रखा जा सकता है. लेकिन 2015 में हुए समझौते के बाद उत्सर्जन हर साल लगातार बढ़ा है. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 2030 तक उत्सर्जन में हर साल 7.6 प्रतिशत की कटौती से ही तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक ही सीमित रखने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पाया जा सकता है.

लॉकडाउन नहीं समाधान

ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट की रिपोर्ट की सह लेखक और जलवायु विज्ञानी कॉरिन ले क्वेरे कहती हैं, "बेशक लॉकडाउन जलवायु परिवर्तन से निपटने का तरीका नहीं है." विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि महामारी खत्म होने के बाद उत्सर्जन वापस पुराने स्तर पर पहुंच सकता है. हालांकि यह कहना अभी मुश्किल है कि वह स्थिति कितनी जल्दी आ सकती है. उत्सर्जन का दीर्घकालीन पैटर्न इस बात पर निर्भर करेगा कि महामारी के बाद देश अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए किस तरह की ऊर्जा का इस्तेमाल करेंगे.

फ्रांस के लेबोरेट्री ऑफ क्लाइमेट एंड एनवार्यनमेंट संस्था के फिलिपे चाइस कहते हैं कि अगर महामारी नहीं आई होती तो चीन जैसे सबसे बड़े उत्सर्जकों का कार्बन फुटप्रिंट 2020 में लगातार बढ़ता रहता. वह कहते है, "राहत अस्थायी है. जलवायु परिवर्तन का असर कम करने के लिए चीजों को रोकने की जरूरत नहीं है, बल्कि कम कार्बन उत्सर्जन वाली ऊर्जा की तरफ जाना होगा."

चाइस कहते हैं कि 2020 में उत्सर्जन में जितनी कटौती हुई है, उतनी गिरावट पृथ्वी के पर्यावरण में कार्बन प्रदूषण के स्तर में नहीं आई है.

एके/ओएसजे (एपी, एएफपी)

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