काजीरंगा में दोहरी मार से जूझते गैंडे
१८ सितम्बर २०१०पहले तो उसे अवैध शिकारियों से ही खतरा था. लेकिन अब बाढ़ भी उसे लील रही है. वर्ष 2006 की गिनती के मुताबिक, असम के इस पार्क में 1855 गैंडे थे. लेकिन शिकार और बाढ़ की वजह से यह तादाद तेजी से घट रही है. बीते साल 21 गैंडे शिकारियों के हत्थे चढ़ गए थे. और इस साल के पहले आठ महीनों के दौरान यह आंकड़ा 18 तक पहुंच गया है.
अब असम भयावह बाढ़ से जूझ रहा है और काजीरंगा भी इससे अछूता नहीं है. आठ सौ वर्ग किलोमीटर में फैले इस पार्क की एक सीमा ब्रह्मपुत्र नदी से मिलती है. पार्क के निदेशक सुरजीत दत्त कहते हैं कि पार्क में इतना पानी भरा हुआ है. गैंडों के मरने का खतरा तो है ही, बाढ़ के समय शिकारियों से भी खतरा है.
असम की राजधानी गुवाहाटी से लगभग सवा दो सौ किलोमीटर दूर नगांव और गोलाघाट जिले में आठ सौ वर्ग किलोमीटर इलाके में फैला यह पार्क इन गैंडों के अलावा दुर्लभ प्रजाति के दूसरे जानवरों, पशुपक्षियों व वनस्पतियों से भरा पड़ा है. उत्तर में ब्रह्मपुत्र और दक्षिण में कारबी-आंग्लांग की मनोरम पहाड़ियों से घिरे अंडाकार काजीरंगा को आजादी के तीन साल बाद 1950 में वन्यजीव अभयारण्य और 1974 में नेशनल पार्क का दर्जा मिला. इसकी जैविक और प्राकृतिक विविधताओं को देखते हुए यूनेस्को ने वर्ष 1985 में इसे विश्व घरोहर स्थल का दर्जा दिया.
लेकिन अब खुद इस पार्क की सबसे बड़ी धरोहर यानी इन गैडों का वजूद ही खतरे में पड़ गया है. काजीरंगा में इन गैंडों की अपनी सींग ही उनकी दुश्मन बनती जा रही है. इस सींग के लिए हर साल पार्क में गैंडों के अवैध शिकार की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं. माना जाता है कि इन गैडों की सींग से यौनवर्द्धक दवाएं बनती हैं. इसलिए अमेरिका के अलावा दक्षिण एशियाई देशों में इनकी भारी मांग है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में गैंडे की सींग बीस लाख रुपए प्रति किलो की दर से बिक जाती है. शिकारी इन गैंडों को मार कर इनकी सींग निकाल लेते हैं.
अब नदी के रास्ते पार्क में आने वाले शिकारियों पर निगाह रखने के लिए एक छोटे जहाज पर तैरता गश्ती शिविर खोला गया है. असम के मुख्य वन संरक्षक एम.सी मालाकर बताते हैं कि इससे नदी के रास्ते पार्क में आने वाले शिकारियों पर निगाह रखी जा सकेगी.
रिपोर्ट: प्रभाकर मणि तिवारी, कोलकाता
संपादन: उज्ज्वल भट्टाचार्य