1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

कश्मीरी पार्टियों से "दिल की दूरी" मिटाने पर बात

चारु कार्तिकेय
२५ जून २०२१

कश्मीर के जिन नेताओं को केंद्र ने हाल तक जेल में बंद रखा हुआ था उन्हें बातचीत का मंच देकर घाटी को कुछ संकेत तो दिए गए हैं. लेकिन क्या इस बातचीत से कश्मीर के हालात में कोई बुनियादी फर्क आने की संभावना है?

https://p.dw.com/p/3vX6h
Indien | Premierminister Modi Treffen Kaschmir
तस्वीर: Indian Prime Ministry/AA/picture alliance

दिल्ली में प्रधानमंत्री के निवास पर केंद्र और कश्मीर के नेताओं के बीच हुई बातचीत करीब साढ़े तीन घंटे चली, लेकिन दोनों पक्षों के बीच कश्मीर के भविष्य के लिए आवश्यक कार्य योजना पर सहमति नहीं बन पाई. कश्मीरी नेताओं ने बैठक में पांच अगस्त 2019 के बाद से कश्मीर में उठाए कदमों को लेकर अपनी निराशा और कश्मीर और उसके लोगों के भविष्य को लेकर अपनी चिंताएं केंद्र के साथ साझा कीं.

सभी पार्टियों ने अपनी अपनी मांगें भी रखी, हालांकि एक सुर में नहीं. कांग्रेस ने पांच मांगें रखीं - राज्य के दर्जे की जल्द बहाली, जल्द विधान सभा चुनाव, स्थानीय लोगों को नौकरी, संपत्ति और अधिवास को लेकर आश्वासन, कश्मीरी पंडितों का पुनर्वासन और सभी राजनीतिक कैदियों की रिहाई. पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने परिसीमन का विरोध किया लेकिन यह भी कहा उनकी पार्टी अगर परिसीमन आयोग के निमंत्रण पर विचार करेगी.

पहले चुनाव या राज्य के दर्जे की बहाली?

पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने अनुच्छेद 370 की बहाली, नियंत्रण रेखा के रास्ते व्यापार फिर से शुरू करने और कश्मीर में हो रही केंद्र की सख्ती को खत्म करने की मांग की. बैठक के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो ट्वीट किए उनसे जाहिर होता है कि केंद्र ने कश्मीर के राज्य के दर्जे की बहाली का आश्वासन तो दिया लेकिन जोर परिसीमन पर ही रहा.

और यही दोनों पक्षों के बीच असहमति की जड़ है. केंद्र चाह रहा है कि पहले चुनाव हों और उसके बाद राज्य के दर्जे की बहाली, जबकि कश्मीरी पार्टियों की मांग है कि पहले राज्य का दर्जा बहाल हो और फिर चुनाव हों. कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने इस पर टिप्पणी करते हुए ट्वीट किया कि घोड़ा गाड़ी को खींचता है, ना कि गाड़ी घोड़े को.

लेकिन घोड़ा और गाड़ी के बीच इस बहस में कश्मीर की राजनीति का सबसे विवादास्पद पहलु कहीं खो गया. विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को बहाल करने के सवाल पर ना तो कश्मीरी पार्टियों ने एक सीमा के आगे जोर लगाया और ना केंद्र ने कोई तत्परता दिखाई. बल्कि बैठक के बाद गुलाम नबी आजाद ने मीडिया को बताया कि वहां मौजूद 14 पार्टियों में से अधिकांश का मानना था कि उचित यही होगा कि मामले पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के नतीजे के आने का इंतजार किया जाए.

अनुच्छेद 370 का सवाल

सिर्फ मुफ्ती ने मीडिया को बताया कि उन्होंने 370 पर जोर दिया और कहा कि उस पर कोई समझौता नहीं होगा. जानकारों का मानना है कि इस बैठक और उसमें हुई बातचीत की अहमियत बस इतनी है कि कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया की शुरुआत हुई. श्रीनगर के वरिष्ठ पत्रकार रियाज वानी मानते हैं कि मूलभूत रूप से कुछ बदला नहीं है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि बैठक से संकेत यही मिले हैं कि केंद्र परिसीमन के अपने एजेंडा पर ही आगे बढ़ेगा और अगर राज्य का दर्जा बहाल किया भी जाता है तो भी असली ताकत केंद्र अपने पास ही रखेगा.

अब देखना होगा कि बातचीत की शुरुआत करने के बाद केंद्र का अगल कदम क्या होता है. कश्मीरी पार्टियों में एनसी के अगले कदम का भी इंतजार करना होगा क्योंकि सिर्फ उसी के तीन सांसद परिसीमन आयोग का हिस्सा हैं. अभी तक तीनों सांसद आयोग की बैठक में शामिल नहीं हुए हैं, लेकिन देखना होगा कि दिल्ली में हुई बैठक के बाद उनके रुख में बदलाव आता है या नहीं.

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी