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एशियाई हाथी अपने बच्चों को रो-रोकर दफनाते हैं

१ मार्च २०२४

एशियाई हाथी अपने बच्चों की मौत पर रोकर शोक मनाते हैं और फिर उनके मृत शरीर को दफना देते हैं. भारतीय वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च के आधार पर यह बात कही है. हाथियों में मृतकों का अंतिम संस्कार इंसानों से काफी मिलता-जुलता है.

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चीन के युन्नान प्रांत में हाथियों का एक झुंड
हाथियों के बच्चों के अंतिम संस्कार के बारे में नई जानकारी मिली हैतस्वीर: Fei Maohua/Xinhua/picture alliance

रिसर्चरों ने 2022 से 2023 के बीच कम-से-कम पांच हाथियों के बच्चों की कब्रें देखीं, जिन्हें बड़े हाथियों ने ही दफनाया था. ये सभी कब्रें भारत के बंगाल में मिलीं. इससे जुड़ी रिसर्च की रिपोर्ट इस हफ्ते जर्नल ऑफ थ्रेटेंड टाक्सा में छपी है. 

इन सभी मामलों में देखा गया कि हाथी मरे हुए बच्चों को अपनी सूंड और पैरों की मदद से किसी जगह पर ले जाते हैं और फिर जमीन पर उन्हें इस तरह दफनाते हैं कि मरने वाले के पैर ऊपर की तरफ रहें.

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रिसर्च में कहा गया है, "निगरानी के मौकों, डिजिटल फोटोग्राफी, फील्डनोट और पोस्टमॉर्टम की रिपोर्टों को देखने के बाद हम यह कह सकते हैं कि शवों को एक असामान्य तरीके से सुला कर दफनाया गया था, भले ही बच्चे की मौत की वजह कुछ भी हो."

दोस्त की मौत का गम

बच्चे के शव पर रोना-चीखना

रिसर्चरों ने लिखा है कि एक बार तो हाथियों को दफन हुए बच्चे के पास तेज आवाज में चिंघाड़ते और रोते हुए भी देखा गया. रिसर्च में यह भी पता चला है कि केवल बच्चों को ही दफनाने के लिए ले जाया जाता है. मुमकिन है ऐसा इसलिए होता हो कि बड़े और भारी हाथियों को ढोकर ले जाना हाथियों के लिए भी संभव नहीं.

रिसर्च रिपोर्ट के लेखक परवीन कासवान और आकाशदीप रॉय का कहना है कि उन्होंने मरे हुए पांचों बच्चों की मौत में किसी इंसानी दखल का कोई सबूत नहीं देखा. जिस जगह बच्चों को दफनाया गया था, वहां मिट्टी में 15-20 हाथियों के पैरों के निशान साफ दिखाई पड़े. साथ ही, जिस जगह बच्चों को दफनाया गया था, वहां मिट्टी पर भी हाथियों के पैरों की छाप मिली.

उत्तराखंड के घास मैदान में घूमता एशियाई हाथी
ज्यादातर एशियाई हाथी भारत में रहते हैंतस्वीर: WILDLIFE/picture alliance

हाथियों के इन बच्चों की उम्र तीन महीन से लेकर एक साल के बीच थी. इन सबकी मौत कई अंगों के काम करना बंद करने की वजह से हुई थी. हाथियों ने बच्चों को इंसानी बस्तियों से सैकड़ों मीटर दूर चाय बागानों में सिंचाई की नहरों के पास दफनाया था.

सामाजिक और संवेदनशील हाथी

हाथियों के सामाजिक और सहयोगात्मक व्यवहार के बारे में पहले से ही जानकारी है. हालांकि, उनके बच्चों को दफनाने के बारे में सिर्फ अफ्रीकी हाथियों पर ही थोड़ी-बहुत स्टडी हुई है. एशियाई हाथियों पर तो इस बारे में कोई विस्तृत अध्ययन हुआ ही नहीं. 

चीन के युन्ना प्रांत में एशियाई हाथियों का एक झुंड
एशियाई हाथियों के सामाजिक व्यवहार पर वैज्ञानिकों ने रिसर्च किया हैतस्वीर: Chen Xinbo/Xinhua/picture alliance

अफ्रीका और एशिया के जंगली हाथी मृतकों के शव के पास उनके गलकर खत्म होने के दौरान कई बार जाते हैं. इसके बारे में रिसर्चरों को पता है. हालांकि, अब जो अंतिम संस्कार और शोक मनाने की खबरें आई हैं, वो बहुत अलग हैं. सभी पांचों मामलों में हाथी दफनाए जाने वाली जगह से 40 मिनट के भीतर दूर चले गए. बाद में वो उस जगह जाने से बचते रहे. यहां तक कि प्रवास के दौरान भी उन्होंने दूसरे समानांतर रास्ते का इस्तेमाल किया.

इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) के मुताबिक, एशियाई हाथियों का अस्तित्व खतरे में है. इस प्रजाति के लगभग 26,000 हाथी जंगलों में रहते हैं, जिनमें ज्यादातर भारत में हैं और कुछ दक्षिणपूर्वी एशिया में. जंगल में इनकी उम्र 60-70 साल होती है.

एनआर/एसएम (एएफपी)