एशिया में युवा बेरोजगारी का बढ़ता जाल
२९ जनवरी २०११एशिया के ज्यादातर देशों में बेरोजगारी ने लम्बे समय से अपने पैर पसार रखे हैं. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन आइएलओ के अनुसार 2011 में भी इसमें कोई सुधार नहीं होगा. वैश्विक रोजगार रुझान पर आइएलओ की नई रिपोर्ट में वैश्विक बेरोजगारी दर 6.1 प्रतिशत बताया गया है. इसका मतलब यह हुआ कि दुनिया में 20 करोर से अधिक लोग बेरोजगार हैं.
रिपोर्ट से पता चलता है कि एशियाई देशों में युवाओं को रोजगार हासिल करने में महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. साथ ही व्यस्कों मुकाबले युवाओं के बेरोजगार होने की संभावना लगभग पांच गुना अधिक है.
दुनिया के सभी महादेशों के मुकाबले यह सबसे बड़ा आंकड़ा है.
अनुभव के कमी
आईएलओ के अर्थशास्त्री स्टीवन कापसोस बताते हैं, "जब आर्थिक तंगी होती है और कंपनियां कर्मचारियों को छांटना शुरू करती हैं तो सब से पहले उन्हीं लोगों की नौकरी जाती है जिन के पास अनुभव सबसे कम होता है. और जब अर्थव्यवस्था फिर से ऊपर उठने लगती है और कंपनियां एक बार फिर लोगों को नौकरियों पर रखना शुरू करती हैं तो वे अनुभव मांगती हैं. इस तरह से युवाओं को ही सब से बड़ा धक्का लगता है. ऐसे में यह ज़रूरी है कि सरकारें और कम्पनियां दोनों ही युवाओं को रोजगार देने के बारे में कुछ करें."
एशिया में करीब पचास प्रतिशत जनसंख्या 30 साल की उम्र से नीचे के लोगों की है. इसलिए रोजगार के अवसर पैदा करना और भी जरूरी हो जाता है. साथ ही भारत, पाकिस्तान और नेपाल में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में नौकरी खोने का जयादा खतरा रहता है. रिपोर्ट के अनुसार रोजगार खो देने का खतरा दुनिया में सबसा ज्यादा दक्षिण एशिया में ही है. ऐसे में भारत की राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना जैसे उपायों की आवश्यकता है.
कापसोस का मानना है कि महंगाई डर बढ़ने के कारण सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह एक सीमा सुनिश्चित करे जिसके नीचे लोग ना जाएं. "यह स्पष्ट है कि आर्थिक संकट के कारण यह असंतुलन बन गया है. लेकिन अब यह जरूरी है कि एशियाई देशों में सामाजिक सुरक्षा का विस्तार किया जाए और संतुलित विकास के लिए उपाय खोजे जाएं."
संयुक्त राष्ट्र ने भी अपनी रिपोर्ट 'विश्व आर्थिक स्थिति और संभावनाएं 2011' में बेरोजगारी के परिणामस्वरूप विश्व आर्थिक विकास के 3.1 से 2 प्रतिशत तक पहुंच जाने की बात कही है.
रिपोर्ट: शेर्पम शेरपा/ईशा भाटिया
संपादन: एन रंजन