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एक क्रांति जिसे गर्भ में ही कुचल दिया गया

१२ फ़रवरी २०२१

दस साल पहले जब अरब दुनिया में बदलाव की हवा चली तो बहरीन में भी लोग इस आस में सड़कों पर निकले थे कि सरकार को गिरा देंगे. लेकिन देश की बहुसंख्यक शिया जनता के गुस्से को सुन्नी शासक ने ताकत से कुचल दिया. अब तक यही हो रहा है.

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बहरीन में 2011 के प्रदर्शन
प्रदर्शनों को दबाने के साथ साथ बहरीन की सरकार ने राजधानी पनामा के एक अहम प्रतीक रहे पर्ल राउंडअबाउट को भी ध्वस्त कर दियातस्वीर: picture-alliance/landov

बहरीन के सरकार विरोधी प्रदर्शनों से जुड़े कार्यकर्ता कहते हैं कि उस समय की सारी यादों को दफन कर दिया गया है. जिन लोगों ने प्रदर्शनों में हिस्सा लिया, उन्हें इसके दुष्परिणाम भुगतने पड़े. अब प्रतिबंधित की जा चुकी शिया राजनीतिक पार्टी अल-वेफाक के एक पूर्व निर्वासित नेता जवाद फैरूज कहते हैं, "वह अंधेरे दौर की शुरुआत थी." 2012 में अपनी राजनीतिक गतिविधियों के कारण फैरूज को अपनी नागरिकता गंवानी पड़ी.

हालांकि बहुत से कार्यकर्ता और प्रदर्शनकारी बहरीन से निकल गए और निर्वासन में रह रहे हैं, लेकिन सऊदी अरब के पूर्वी तट पर बसे इस छोटे से देश में विद्रोह का खतरा लगातार बना हुआ है. पड़ोसी खाड़ी देशों की राजशाहियों के विपरीत बहरीन हाल के वर्षों में छोटे स्तर पर ही सही लेकिन अशांति से जूझता रहा है. पिछले हफ्ते शहर की सड़कों पर पुलिस की तैनाती एकदम बढ़ा दी गई. स्थानीय लोगों का कहना है कि पुलिस बिल्कुल नहीं चाहती कि फिर कोई प्रदर्शन हों.

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क्रांति का सपना

बहरीन में 14 फरवरी 2011 को हजारों लोग सड़कों पर निकल आए और कई हफ्तों तक प्रदर्शन चलता रहा. मिस्र, सीरिया, ट्यूनीशिया और यमन में सत्ता विरोधी लहर ने बहरीन के प्रदर्शनकारियों के हौसले भी बुलंद कर दिए. बहरीन में प्रदर्शनों के पीछे देश का शिया समुदाय था जो अपने लिए व्यापक राजनीतिक अधिकार चाहता था. बहरीन पश्चिमी देशों का अहम सहयोगी है, जहां अमेरिकी नौसेना का पांचवा बेड़ा तैनात है.

प्रदर्शनों के दौरान नजीहा सईद एक फ्रेंच टीवी के लिए रिपोर्टिंग कर रही थीं. वह बताती है, "बड़ा ही अद्भुत नजारा था." राजधानी मनाना में पर्ल गोलचक्कर के आसपास लोग जमा थे. यह शहर का एक अहम प्रतीक था जिसे बाद में सरकार ने ढहा दिया. वह बताती हैं, "मैंने पहली बार ऐसा कुछ देखा था. लोग भूल गए थे कि वे एक राजशाही में रह रहे हैं जिसे दूसरी ताकतवर शाही सत्ताओं का समर्थन प्राप्त है." लेकिन सईद बताती हैं कि यह सब ज्यादा दिन तक नहीं चला.

सुरक्षा बलों ने धरने पर बैठे लोगों को तितर बितर करना शुरू कर दिया. प्रदर्शनकारिीयों पर आंसू गैस छोड़ी गई, रबड़ की गोलियां चलाई गई और कहीं कहीं तो असली कारतूस भी दागे गए. सईद कहती हैं कि उनसे सिर्फ 20 मीटर की दूरी पर पुलिस ने एक प्रदर्शनकारी के सिर में गोली मारी. सईद अब बर्लिन में निर्वासित जिंदगी बिता रही हैं. वह अपने घर वापस नहीं जा सकतीं. 2017 में बहरीन की सरकार ने उन पर सरकार की तरफ से जारी प्रेस कार्ड पर काम करने के लिए 2,650 डॉलर का जुर्माना लगाया.

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उम्मीदें दफन हुईं

फरवरी 2011 में जैसे जैसे हिंसा बढ़ती गई, प्रदर्शनों का दायरा भी बढ़ता गया. उसमें हर समुदाय के लोग शामिल हो रहे थे. संवैधानिक सुधारों की मांग के साथ शुरू हुए आंदोलन में अब देश के पूरे राजनीतिक ढांचे को ही खत्म करने की मांग उठने लगी. देश के सुन्नी शासकों ने पड़ोसी सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात से मदद मांगी. प्रदर्शनकारियों को दबाने के लिए विदेशी सैनिकों को बुलाया. और क्रांति की उम्मीदें बूटों के नीचे दफन हो गईं.

अब दस साल बाद बहरीन में और निर्वासन में रह रहे कार्यकर्ताओं का कहना है कि उनका देश कमोबेश वैसा ही है जैसा 2011 में था. विरोधियों को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाता. उन पर तेजी से कार्रवाई होती है. बहरीन ने 2011 के अंसतोष के लिए शिया बहुल ईरान को जिम्मेदार ठहराया. लेकिन ईरान ने ऐसे आरोपों से इनकार किया. हालांकि बहरीन में जब्त किए गए हथियारों का संबंध ईरान से बताया जाता है. जब ईरान में शाह का शासन था, तो उसने बहरीन पर अपना दावा किया था.

बहरीन के अधिकारियों ने 2011 के बाद से ना सिर्फ शिया राजनीतिक समूहों और धार्मिक नेताओं को निशाना बनाया है बल्कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और इंटरनेट पर सरकार के खिलाफ लिखने वालों को भी प्रताड़ित किया है. सरकार के आलोचकों पर मुकदमे आम बात हो गई है. राजनीतिक पार्टियों पर बैन लगा दिया गया है. बहरीन से निष्पक्ष रिपोर्टिंग कर पाना लगभग असंभव हो गया है. इस बीच, शिया चरमपंथी गुटों की तरफ से पुलिस और अन्य बलों पर छिटपुट हमले भी हुए हैं.

बहरीन में सरकार को विरोध बिल्कुल बर्दाश्त नहीं
बहरीन की सरकार ने ताकत के दम पर विरोध को कुचलातस्वीर: GettyImages/J. Eid

विपक्ष का काम

वैसे बहरीन का संविधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है. लेकिन सिर्फ एक ट्वीट की बदौलत आपको जेल में डाला जा सकता है. नाम गोपनीय रखने की शर्त पर एक व्यक्ति ने बताया कि उसे दो हफ्ते के लिए इसलिए जेल में डाल दिया गया कि उसने कुरान की एक आयत सोशल मीडिया पर पोस्ट की थी. सुरक्षा बलों का कहना है कि इस आयत के जरिए प्रधानमंत्री के निधन पर खुशी जताई गई थी.

उसी जेल में बंद एक अन्य व्यक्ति को राजनीतिक कविता पोस्ट करने की सजा दी गई. सजा काटने वाले 47 वर्षीय व्यक्ति ने कहा, "2011 के बाद हमारा देश आगे नहीं बल्कि पीछे की तरफ गया है. अब बहरीन विपक्ष का सिर्फ यही मतलब रह गया है कि अपने दोस्तों की गिरफ्तारी को दर्ज करिए, उनके दस्तावेज बनाइए."

एके/आईबी (एपी)

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