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ईसीबी की दशा दिशा से हैरान परेशान जर्मनी

१० सितम्बर २०११

कर्ज संकट के मामले में बैंक के रवैये से नाराज युएर्गेन स्टार्क ने यूरोपीय सेंट्रल बैंक से इस्तीफा दिया. वरिष्ठ अधिकारी के इस्तीफे से जर्मनी हैरान. सवाल यह कि यूरोजोन नीति अब किस दिशा में जाएगी.

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युएर्गेन स्टार्कतस्वीर: AP/ Deutsche Bundesbank

यूरोपीय सेंट्रल बैंक के प्रमुख अर्थशास्त्री युएर्गेन स्टार्क का इस्तीफा जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल के लिए भी एक बड़ा झटका है जिनके कई वरिष्ठ सहयोगी साथ छोड़ गए हैं. चांसलर मैर्केल को इसी महीने यूरोजोन में बेलआउट फंड को आगे बढ़ाने के मसले पर एक वोटिंग का भी सामना करना है. इस मामले में खुद चांसलर को भी पद छोड़ना पड़ सकता है.

जर्मनी का बुंडसबैंक यूरोपीय सेंट्रल बैंक का मॉडल है यहां की मजबूत अर्थव्यवस्था ने ही यूरोजोन को बनने के बाद से ही मजबूत सहारा दिया है. जर्मन लोगों को यह डर है कि अब दक्षिणी देशों के स्थायित्व की बहस में वे हार गए हैं. जर्मन मानते हैं कि ये देश आर्थिक रूप से गैरजिम्मेदार रहे हैं. यह डर इस वजह से और मजबूत हुआ है क्योंकि फ्रांस के ज्यां क्लाउडे ट्रिशेट की जगह इटली के मारियो द्रागी नवंबर में यूरोपीय सेंट्रल बैंक की कमान संभाल लेंगे.

बेलआउट से नाराज जर्मन

पहले ग्रीस, पुर्तगाल, आयरलैंड और अब इटली और स्पेन के बॉन्ड खरीद कर कर्ज संकट को दूर करने के यूरोपीय सेंट्रल बैंक के फैसले से लोगों में काफी गुस्सा है. इस फैसले को जर्मन चांसलर का मौन समर्थन है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक स्टार्क के ईसीबी से अलग होने के पीछे सबसे बड़ी वजह यही है. इसी नीति का विरोध करने के लिए बुंडसबैंक के पूर्व अध्यक्ष एक्सल वेबर ने इस साल फरवरी में इस्तीफा दिया था. यूरोपीय सेंट्रल बैंक में ट्रिशेट की जगह लेने वालों में वेबर उस वक्त सबसे आगे थे.

बुंडसबैंक के प्रमुख जेन्स वीडमैन के पूर्व सलाहकार और बॉन यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र पढ़ाने वाले प्रोफेसर मैनफ्रेड नॉयमान कहते हैं, "बॉन्ड खरीदने के मसले पर स्टार्क की राय वही है जो एक्सल वेबर और बुंडसबैंक के वर्तमान प्रमुख की है. यह वो राय है जो सारे जर्मन लोगों की है. यह इस बात का संकेत है कि सेंट्रल बैंक के भीतर बहुत बड़ी समस्याएं हैं. जर्मन लोगों को ईसीबी की वर्तमान दिशा से साफतौर पर समस्या है." जर्मन लोगों को डर है कि यह नीति 'ट्रांसफर यूनियन' का हिस्सा है जो असली समझौते के खिलाफ है. असली समझौते में यूरोजोन के देशों के दूसरे सदस्य देशों का कर्ज लेने पर साफ मनाही है.

विरोध में मुखर मीडिया

अखबारों में जर्मनी के इस कदम की कड़ी आलोचना हो रही है. जर्मन अखबार फ्रांकफुर्टर अल्गेमाइने त्साइटुंग ने लिखा है, "यह मौद्रिक नीति का बुरा विकास है. अखबार ने ईसीबी पर आरोप लगाया है कि वह बॉन्ड मार्केट के जरिए इटली जैसी नाकाम सरकारों को बचा रही है जिन्होंने सरकारी खर्च में कटौती करने से इनकार कर दिया है."  जर्मन अखबार में होल्गर स्टेल्ज्नर ने साफ कहा है, "सरकारी बॉन्ड खरीद कर ईसीबी मौद्रिक यूनियन को कर्ज समुदाय में बदल रही है जिस पर असीमित जिम्मेदारियां हैं."

मैर्केल पर संकट

यूरो जोन के संकट और इस नीति से जर्मन लोग कितने चिंतित हैं इसका अंदाजा इस बात से भी हो जाता है कि खुद राष्ट्रपति क्रिस्टियान वुल्फ ने पिछले महीने ईसीबी की इस नीति की आलोचना की थी. राष्ट्रपति का इस तरह से ईसीबी के मामलों में दखल देना एक दुर्लभ बात है. इसी हफ्ते जर्मन टेलिविजन जेडडीएफ पर हुए एक सर्वे में पता चला कि 76 फीसदी लोग ग्रीस को और सहायता देने के खिलाफ हैं.

यह सब कुछ चांसलर अंगेला मैर्केल के लिए नुकसानदायक हो सकता है. कुछ जानकारों का मानना है कि स्टार्क का कदम 29 सितंबर को यूरोपियन फाइनेंशियल स्टैबिलिटी फैसिलिटी पर होने वाली वोटिंग में विरोधियों को मजबूती देगा. मैर्केल इस वोटिंग में जीत तो जाएंगी क्योंकि विपक्षी पार्टियां इस कानून के पक्ष में हैं लेकिन अगर उनकी अपने दक्षिणपंथी गठबंधन का बहुमत उनके साथ नहीं हुआ तो उनकी ताकत को बहुत नुकसान पहुंचेगा. ऐसी स्थिति में उन्हें चुनाव कराने पर भी मजबूर होना पड़ सकता है.

रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन

संपादनः वी कुमार

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