1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

ईरान के खिलाफ साइबर जंग

१४ जुलाई २०१२

परमाणु कार्यक्रम के खिलाफ अमेरिका ने शायद ईरान पर साइबर जंग की शुरूआत कर दी है. जानकारों का कहना है कि यह डिजिटल तोड़ फोड़ से शुरू हो कर धमाकों के रूप में फैल सकती है.

https://p.dw.com/p/15XiV
तस्वीर: Reuters

स्टक्सनेट नाम के वायरस ने ईरान के यूरेनियम संवर्धन का काम ठप करा दिया और तभी से यह साइबर हमलों की जद में है. हालांकि कुछ जानकारों का मानना है कि उसे रूस के प्रॉक्सी से मदद मिल रही है. इंस्टीट्यूट फॉर साइंस एंड इंटरनेशनल सिक्योरिटी के अध्यक्ष डेविड अल्ब्राइट कहते हैं कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम ज्यादा हमलों से "वास्तव में बहुत सुरक्षित नहीं है" और ईरान को अपने यूरेनियम संवर्धन को खतरनाक सॉफ्टवेयरों से बचाना होगा. अल्ब्राइट ने कहा, "स्टक्सनेट के कारण उनका एक साल बर्बाद हो गया और इससे कई तरह की गड़बड़ियां भी पैदा हुईं. उन्हें सचमुच नहीं पता कि उन्हें किसने मारा."

ईरानी तंत्र में सेंध

खबरों के मुताबिक अमेरिका ने इस्राएल के साथ सक्सनेट ऑपरेशन की साजिश रची. जानकारों के मुताबिक ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षा रोकने के लिए पश्चिमी देश अब साइबर हमले का सहारा ले रहे हैं. जासूसी के कुछ पारंपरिक तरीकों के साथ अगला साइबर हमला वॉल्वों को बंद कर सकता है या फिर ऐसी गड़बड़ी पैदा कर सकता है कि धमाके हो जाएं. अल्ब्राइट ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "मुझे लगता है कि यह ज्यादा हिंसक हो सकता है. मुझे और ज्यादा परमाणु संस्थानों में धमाकों की आशंका है." बीते साल नवंबर में मिसाइल प्लांट में हुए एक बड़े धमाके ने इस बात की आशंका तेज कर दी कि यह तोड़फोड़ की घटना रही होगा.

Iran Atomprogramm Grafik
तस्वीर: dapd

स्वीडन की डिफेंस रिसर्च एजेंसी के रिसर्च इंजीनियर डेविड लिंडाल कहते हैं, "निश्चित रूप से इस बात के आसार हैं कि पहले एक टीम भेज कर सिस्टम को इस तरह बदला जाएगा कि यह कमजोर हो जाए और बाद में साइबर हथियार का इस्तेमाल कर इसे नुकसान पहुंचाया जाएगा." साइबर हमलों की नई बौछार में खराब चिप वाले हार्डवेयर को औद्योगिक प्रक्रिया में घुसाने की साजिश शामिल है. इसके लिए मुमकिन है कि एजेंट या किसी कर्मचारी को धोखे से इस्तेमाल किया जाए. इनके अलावा यूरेनियम संवर्धन की माप या दूसरे काम में इस्तेमाल होने वाले सॉफ्टवेयर के जरिये भी यह किया जा सकता है. हालांकि सुरक्षा मामलों के कुछ जानकार शक जता रहे हैं कि रूसी प्रॉक्सी ईरान की डिजिटल सुरक्षा को मजबूती दे रहे हैं. उनका मानना है कि मुमकिन है कि उन्हीं ने तेहरान को स्टक्सनेट की जड़ खोजने में मदद की हो.

कैसे लगा पता

सेंटर फॉर स्ट्रैटजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के सीनियर फेलो जेम्स लुई कहते हैं, "स्टक्सनेट में हमारे आकलन में जो भूल हुई वह रूस की मदद है. ईरानी अपने दम पर कभी भी इसका पता नहीं लगा सकते." स्टक्सनेट के बारे में कहा जाता है कि यह पेन ड्राइव के जरिए सिस्टम में डाला गया इसमें एक खतरनाक कोड था, जिसने यूरेनियम संवर्धन में इस्तेमाल होने वाले सेंट्रीफ्यूज के चक्करों को अनियंत्रित्र कर दिया. इस बीच ऑपरेटरों को वायरस की वजह से यह संकेत मिलता रहा कि सेंट्रीफ्यूज सामान्य रूप से काम कर रहे हैं.

इस वायरस का 2010 में जब पता लगा तब हजारों सेंट्रीफ्यूज निकालने पड़े और जानकारों का मानना है कि इससे तेहरान का परमाणु कार्यक्रम करीब एक साल पीछे चला गया.

Iran Atomanreicherungsanlage
ईरान के कोम शहर की उपग्रह से ली गई तस्वीर. पश्चिमी देशों को अंदेशा है कि ईरान यहां परमाणु कार्यक्रम चला रहा है.तस्वीर: AP

साइबर जंग की दीवार गिरा कर अमेरिका ने खुद को जवाबी हमले के सामने कर लिया है. हालांकि अमेरिकी अधिकारी साफ तौर पर मानते हैं कि साइबर जंग का खतरा ईरान के साथ खुले जंग के खतरे को कम करेगा. लुई ने कहा, "बम हमले से इलाका दहल उठेगा और निश्चित रूप से ईरान के साथ जंग छिड़ जाएगी जो बहुत खतरनाक होगा, साइबर उसकी तुलना में बहुत साफ सुथरा है."

एनआर/एजेए (रॉयटर्स, एएफपी)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें