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इमरान खान की नई शिक्षा नीति

एस खान, इस्लामाबाद
२५ मई २०२१

पाकिस्तान की केंद्र सरकार देश भर में एक जैसी शिक्षा व्यवस्था लागू करने की योजना पर काम कर रही है. इस व्यवस्था में शिक्षा को ज्यादा इस्लामिक करने और कुरान पढ़ाने पर जोर है.

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Pakistan Imran Khan
तस्वीर: Ishara S. Kodikara/AFP

इमरान खान सरकार पूरे देश में एक जैसी शिक्षा व्यवस्था लागू करने जा रही है. पहले दौर में पहली से पांचवीं तक की क्लास वाले प्राइमरी स्कूलों को शामिल किया जाएगा. हर स्कूल और कॉलेज को ये विषय पढ़ाने के लिए एक हाफिज और एक कारी अपने यहां रखना होगा. लेकिन आलोचकों को डर है कि इसका नतीजा स्कूलों और विश्वविद्यालयों के इस्लामीकरण के रूप में सामने आएगा. उनका कहना है कि इससे शिक्षा पर मौलवियों का असर बढ़ेगा, फिरकापरस्ती तेज होगी और सामाजिक ताना-बाना खराब होगा.

इस्लामाबाद में पढ़ाने वाले एक अकादमिक अब्दुल हमीद नायर कहते हैं कि नई योजना में उर्दू, अंग्रेजी और सोशल स्टडीज का भारी इस्लामीकरण किया गया है. वह कहते हैं कि बच्चे कुरान के 30 अध्याय और बाद में किताब का पूरा अनुवाद पढ़ेंगे. साथ ही अन्य इस्लामिक किताबें भी पढ़ाई जाएंगी.

नायर कहते हैं कि आधुनिक ज्ञान का आधार आलोचनात्मक सोच पैदा करना है लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार अपने सिलेबस में इसका उलटा ही आगे बढ़ाना चाह रही है.

इस्लामिक ताकतों के सामने टिकते घुटने

1947 में पाकिस्तान बनने के बाद से सरकार और इस्लामिक कट्टरपंथियों में एक रिश्ता रहा है. वैसे देश का इस्लामीकरण 1950 और 60 के दशक में शुरू हो गया था लेकिन 1970 के दशक में इसने रफ्तार पकड़ी और 1980 में जिया उल हक की तानाशाही में यह अपने चरम पर पहुंच गया. हक ने देश के उदारवादी संविधान की शक्ल ओ सूरत बदलने की मुहिम छेड़ी. उन्होंने इस्लामिक कानून लागू किए, पढ़ाई का इस्लामीकरण किया, देशभर में हजारों मदरसे खोले, न्याय व्यवस्था, प्रशासन और सेना में इस्लामिक सोच के लोगों को भरा और ऐसे संस्थान बनाए जहां से मौलवी सरकार के काम काज पर नजर रख सकते थे. 1988 जिया उल हक की मौत के बाद से लगभग हर सरकार ने इस्लामिक ताकतों को खुश रखने की कोशिश की है.

इमरान खान के नेतृत्व वाली मौजूदा सरकार पर भी इस्लामिक ताकतों के सामने घुटने टेकने के आरोप लगते रहे हैं. 2018 में उनकी पार्टी तहरीक ए इंसाफ ने पूरे देश में एक जैसी शिक्षा व्यवस्था लागू करने का वादा किया था. तब बहुत से लोगों को उम्मीद थी कि नयी व्यवस्था विज्ञान, कला, साहित्य और अन्य समकालीन विषयों पर जोर देगी. लेकिन 2019 में जब सरकार ने नई योजना जारी की तो पता चला कि इस्लाम पर जोर बाकी सबसे ज्यादा है.

Weltspiegel 02.02.2021 | Pakistan Peschawar | Schüler mit Maske
पाकिस्तानी सरकार की योजना कहती है कि बच्चे पूरी कुरान अनुवाद के साथ पढ़ें, इस्लामिक प्रार्थनाएं सीखें और हदीस याद करें. तस्वीर: Muhammad Sajjad/AP Photo/picture alliance

हालांकि इस योजना को कोरोनावायरस महामारी के कारण लागू करने में देर हुई है लेकिन इस साल इसकी शुरुआत की संभावना है. प्राथमिक स्कूलों कि किताबें छप चुकी हैं. इसमें अंग्रेजी, उर्दू और सोशल स्टडीज कि किताबों पर इस्लाम का प्रभाव साफ देखा जा सकता है. लाहौर स्थित शिक्षाविद रूबीना साइगोल बताती हैं कि सरकारी स्कूलों का मदसरीकरण किया जा रहा है जिसके गंभीर नतीजे होंगे. वह कहती हैं, "इस सिलेबस को पढ़कर बच्चे इस्लामिक रूढ़िवादी सोच के बनेंगे. वे महिलाओँ को ऐसे कमतर इंसान मानेंगे जिन्हें आजादी का हक नहीं है.”

30 फीसदी ज्यादा इस्लामिक सामग्री

इस्लामाबाद स्थित परमाणु विज्ञानी परवेज हूदबोय कहते हैं कि नया सिलेबस पाकिस्तान की शिक्षा व्यवस्था को ऐसा नुकसान पहुंचाएगा, जैसा पहले कभी नहीं पहुंचा. वह कहते हैं, "इसके भीतर ऐसे बदलाव छिपे हुए हैं जिनका असर बहुत गहरा होगा. इतना गहरा जितना किसी ने सोचा नहीं होगा और जिनता जिया उल हक की तानाशाही में भी नहीं हुआ होगा. इसमें सरकारी स्कूलों में इस्लाम की पढ़ाई मदरसों से भी ज्यादा हुआ करेगी.”

कुछ लोगों ने इन बदलावों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी है. लाहौर स्थित मानवाधिकार कार्यकर्ता पीटर जैकब कहते हैं कि अनिवार्य विषयों का 30-40 फीसदी हिस्सा धार्मिक है. डॉयचे वेले से बातचीत में उन्होंने कहा, "कई लोग अदालत गए हैं क्योंकि यह संविधान के खिलाफ है. अल्पसंख्यक समुदाय के लोग नहीं मानते कि इस सामग्री को अनिवार्य विषयों में होना चाहिए.”

सरकार का समर्थन कर रही मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट पार्टी की सांसद किश्वर जेहरा भी इस्लामीकरण के खिलाफ हैं. वह कहती हैं कि पाकिस्तान को बांग्लादेश से सीखना चाहिए. उन्होंने कहा, "हमें बांग्लादेश से सीखना चाहिए जो अपने यहां धर्म निरपेक्ष मूल्यों को बढ़ावा दे रहा है. मौजूदा नीति बस इस्लामिक ताकतों को खुश करने की कोसिश है. इसके बजाय सरकार को वैश्विक मानवाधिकार मूल्यों को शिक्षा में शामिल करना चाहिए जिनकी पाकिस्तान के स्टूडेंट्स को ज्यादा से ज्यादा सीखने की जरूरत है.”