इंटरनेट कानून से अनजान भारतीय
९ दिसम्बर २०१२भारत सूचना तकनीक का गढ़ माना जाता है और दुनिया भर में इंटरनेट क्रांति में भारत और भारतीय लोगों का अच्छा खासा योगदान रहा है. लेकिन ताजा सर्वे बताता है कि लोग इंटरनेट इस्तेमाल करने से पहले नियम कायदों पर ध्यान नहीं देते.
दिल्ली के रिसर्चरों ने जो रिपोर्ट तैयार की है, उसके मुताबिक, "करीब 75 फीसदी भारतीयों ने कभी भी उन वेबसाइटों की प्राइवेट पॉलिसी नहीं पढ़ी है, जिस पर आम तौर पर विजिट करते हैं. करीब इतने ही लोग ऐसे हैं, जो अपने बारे में निजी सूचना साझा करते समय प्राइवेट पॉलिसी नहीं पढ़ते." यह अध्ययन प्रोफेसर पोन्नुरंगम कुमारगुरु और निहारिका सचदेव ने प्रीकॉग@आईआईआईटी दिल्ली के लिए किया है, जिसमें 10,000 लोगों से सवाल पूछे गए.
प्रीकॉग दिल्ली के इंद्रप्रस्थ इंस्टीट्यूट ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (आईआईआईटी) के रिसर्चरों का समूह है. ये लोग जटिल मुद्दों पर रिसर्च करते हैं, जिनमें फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल वेबसाइट पर जाने वाले विजिटरों की आदतें भी शामिल हैं.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सार्वजनिक जगहों पर भी जारी निजता के नियमों पर लोग कम ध्यान देते हैं, "जिन लोगों ने हमारे अध्ययन में हिस्सा लिया, वे सार्वजनिक जगहों पर कैमरे के इस्तेमाल के बारे में नहीं जानते और उन्हें सार्वजनिक जगहों पर तस्वीरें लेने के नियमों के बारे में भी नहीं पता."
जब उनसे प्राइवेसी (निजता) के बारे में पूछा गया तो उनकी पहली प्रतिक्रिया मोबाइल और इंटरनेट थी, ऑफिस या सार्वजनिक जगहों के बारे में नहीं. इनमें ज्यादातर लोगों ने कहा कि उन्हें सबसे ज्यादा निजता का हनन तब लगता है, जब कोई मोबाइल फोन से फोटो खींचता है, खास तौर पर किसी व्यक्ति का. वे सीसीटीवी या वीडियो कैमरे से खींची गई तस्वीरों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते. करीब 40 फीसदी लोगों ने कहा कि वे अपने निजी आंकड़े कभी भी ईमेल से नहीं भेजते.
कुछ दिन पहले शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे की मौत के बाद महाराष्ट्र की महिला को फेसबुक पर टिप्पणी करने की वजह से जेल जाना पड़ा. इसके बाद से भारत में इंटरनेट कानून बदलने की बहस तेज हो गई.
इस रिसर्च में यह भी पता लगा कि लोगों को निजता के कानून की ठीक जानकारी नहीं है. ज्यादातर लोग मानते हैं कि भारत में इसे लेकर कानून है, जबकि सच तो यह है कि भारत में प्राइवेसी लॉ या निजता का कानून नहीं है. लोग सबसे ज्यादा अपने वित्तीय मामले को लेकर निजता की चिंता करते हैं. रिसर्चरों ने कहा, "पूरे भारत में 10,427 लोगों से सवाल पूछने के बाद हमने भारतीयों की आदत के बारे में एक समझ विकसित की है."
उन्होंने कहा कि नीति बनाने वालों के लिए भी यह जरूरी है कि वे लोगों की आदतों को समझें और उन्हें इस तरफ जागरूक करें.
एजेए/एएम (पीटीआई)