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आर्थिक मंदी में पिस रहे प्रवासी कामगार

रति अग्निहोत्री१८ फ़रवरी २००९

एशिया से हर साल करोड़ो लोग रोज़ी रोटी की तलाश में विदेशों का रुख़ करते हैं. लेकिन आर्थिक मंदी की आंधी में इन श्रमिकों के अधिकारों और हितों की रक्षा पर सवाल खड़े हो रहे हैं. श्रमिकों के शोषण के मामले भी सामने आए हैं.

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बेहतर जीवन की तलाश में परदेस में ढूंढते हैं आसरातस्वीर: picture-alliance/ dpa

इनमें से अधिकतर लोग ऐसे काम करते हैं जिन्हें करने के लिए ख़ास ट्रेनिंग की ज़रूरत नहीं होती. आर्थिक मंदी की चपेट में सिंगापुर ही नहीं बल्कि दुनिया के कई संपन्न देश आ चुके हैं. मानवाधिकार संगठन कहते हैं कि अपने देशों से बाहर काम करने वाले लाखों श्रमिकों को कंपनियों ने या तो निकाल बाहर किया है, या उनके साथ बुरा बर्ताव किया है. इस का सीधा असर उन देशों की आर्थिक स्थिति पर पड़ सकता है जहां के ये श्रमिक रहने वाले हैं. अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन(आईएलओ) के आप्रवासी मामलों के जानकार, पैट्रिक तरान कहते हैं कि कंपनियों द्वारा की गई इस छंटनी का सीधा असर ग़रीब देशों पर पड़ता है, जिनकी जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा विदेशों में काम करता है.

Indische Wanderarbeiter verlassen Kashmir
अधिकतर लोग भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश सेतस्वीर: AP

काम की तलाश में बाहर जाने का ये चलन 1970 के दशक में शुरू हुआ. यह एक ऐसा समय था जब मध्य पूर्व के देशों में तेल के व्यापार में आई तेज़ी के चलते भारी संख्या में मज़दूरों की आवश्यकता पड़ी. इस बढ़ती मांग को पाकिस्तान, श्रीलंका, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, भारत से आने वाले लोगों ने पूरा किया. फिर 1980 के बाद से तेल व्यापार में आई गिरावट और खाड़ी युद्ध की वजह से आई अस्थिरता का असर रोज़गार के अवसरों पर भी पड़ा. ऐसे में दक्षिण एशिया की बेरोज़गार जनता ने मलेशिया, सिंगापुर, चीन, जापान, हांग कांग जैसी नई-नई विकसित अर्थव्यवस्थाओं का रुख़ किया.

शोषण के मामले

काम का उचित पैसा न मिलना, कांट्रेक्ट समाप्त होने पर भी वापस अपने देश जाने की इजाज़त न मिलना, महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार, शारीरिक प्रताड़ना, यह सब प्रवासी मज़दूरों को आमतौर पर झेलना पड़ता है. एशियन माइग्रेंट सेंटर के आंकड़ों के मुताबिक श्रीलंका सरकार के पास 2005 में इन श्रमिकों संबंधी ऐसी लगभग 10,000 शिकायतें दर्ज हुई थीं. इंडोनेशिया के दो मानवाधिकार संगठनों के आंकड़ों के मुताबिक वहां भी ऐसे लगभग 5,000 मामले दर्ज हुए.

Thailand Flüchtlinge aus Bangladesch und Myanmar
प्रताड़ना का भी होते हैं शिकारतस्वीर: picture-alliance/ dpa

अधिकतर देशों में इन श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए कोई ठोस कानून नहीं हैं. जब इनके शोषण की ख़बरें मीडिया में उछलती हैं तो इनके देशों की सरकारें इनके काम के लिए विदेश जाने पर रोक लगा देती हैं. जैसा कि 2004 और 2005 में इंडोनेशिया और थाइलेंड की सरकारों ने किया था. पर्यवेक्षकों का कहना है कि ऐसी पाबंदियों से प्रवासी श्रमिकों को नुक़सान ही होता है.

क़ानूनी पाबंदियों के चलते ये लोग एजेंटों को मोटी फ़ीस दे कर अवैध तरीके से बाहर जाते हैं. ऐसी स्थिति में एशियन माइग्रेंट सेंटर जैसी संस्थाएं आप्रवासी मज़दूरों के हालात सुधारने के प्रयासों में जुटी हैं. इन मज़दूरों पर हुए शोषण पर शोध के जरिए ये संस्थाएं विभिन्न एशियाई देशों में लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता फैला रही हैं.