1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

आपसी रिश्तों की सुनहरी इबारत लिखते भारत-बांग्लादेश

प्रभाकर मणि तिवारी
४ अक्टूबर २०१९

भारत और पड़ोसी बांग्लादेश का रिश्ता ऐतिहासिक रहा है. इसके नए राष्ट्र के तौर पर जन्म में भारत की भूमिका बेहद अहम रही है. लेकिन उसके बाद लंबे अरसे तक रिश्तों पर जमी बर्फ अब तेजी से पिघलने लगी है.

https://p.dw.com/p/3Qg2c
Indien Narendra Modi & Sheikh Hasina & Mamata Banerjee in Shantiniketan
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay

खासकर वर्ष 2015 में दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक जमीन हस्तांतरण समझौते के बाद आपसी संबंध तेजी से मजबूत हुए हैं. इन रिश्तों को और मजबूती देने के लिए बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना फिलहाल भारत दौरे पर हैं. दोनों देशों की 4,096 किलोमीटर लंबी भूमि सीमा एक-दूसरे से जुड़ी है. हालांकि दोनों देशों के बीच तीस्ता के पानी, रोहिंग्या शरणार्थी और असम में नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजंस (एनआरसी) जैसे कई अनसुलझे मुद्दे जरूर हैं. लेकिन बाकी तमाम मोर्चों पर तेजी से होने वाली प्रगति को ध्यान में रखते हुए इनके भी बातचीत से सुलझने की उम्मीद जगाई जा रही है.

आपसी रिश्ते

वर्ष 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति युद्ध में सहायता कर उसे पाकिस्तान से आजादी दिलाने और पूर्वी पाकिस्तान की जगह बांग्लादेश नामक नए राष्ट्र की स्थापना में भारत की भूमिका बेहद अहम रही थी. इसके बावजूद दोनों देशों के रिश्तों में वैसी गर्माहट नहीं नजर आई जिसकी उम्मीद की जा रही थी. आपसी रिश्तों में गर्माहट का दौर लगभग एक दशक पहले शेख हसीना के बांग्लादेश की बागडोर संभालने पर शुरू हुआ था. उसके बाद धीरे-धीरे विभिन्न मुद्दों पर दशकों से जमी बर्फ पिघलने लगी.

इनमें आपसी व्यापार के लिए सीमाएं खोलना, रेल संपर्क बहाल करना और कोलकाता से ढाका होकर पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा तक बस सेवाएं शुरू करने के अलावा देश की आजादी के बाद से ही जारी भूखंडों की अदला-बदली की अहम भूमिकाएं रहीं. वैसे, तो मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन केंद्र सरकार के कार्यकाल से ही करीबी रिश्तों का दौर शुरू हो गया था. लेकिन इसमें तेजी आई वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार के सत्ता में आने के बाद. उसके साल भर बाद ही वर्ष 2015 में दोनों देशों के बीच भूखंडों की अदला-बदली के ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. यह कहना ज्यादा सही होगा कि इस समझौते ने दोनों देशों के आपसी रिश्तों में एक सुनहरा अध्याय जोड़ दिया.

Indien Bangladeschs Premierministerin Sheikh Hasina besucht Narendra Modi
अप्रैल 2017 में नई दिल्ली में बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना का स्वागत करते भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Singh

आपसी संबंधों में मजबूती के साथ ही तमाम मोर्चे खुलने लगे. वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान आपसी व्यापार तेजी से बढ़ कर नौ अरब डॉलर से ज्यादा पहुंच गया. इसी तरह वित्त वर्ष 2018-2019 के दौरान बांग्लादेश के निर्यात में 42.91 फीसदी वृद्धि दर्ज की गई और यह सवा अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया. वर्ष 2018 से पहले तक बांग्लादेश भारत से 660 मेगावाट बिजली का आयात करता था. लेकिन उस साल इसमें और पांच सौ मेगावाट वृद्धि हुई. पहले दोनों देशों के बीच ज्यादातर लोग हवाई मार्ग से ही सफर करते थे. लेकिन बीते कुछ वर्षों के दौरान कई नए जमीनी मार्ग खोले गए हैं. अब भारत आने वाले 85.6 फीसदी बांग्लादेश जमीनी सीमा से होकर ही आते हैं. इसी दौरान कोलकाता-ढाका और कोलकाता-खुलना के बीच ट्रेन सेवाएं शुरू हुईं. अब अगरतला-अखौरा के बीत तीसरी ट्रेन लाइन के निर्माण का काम चल रहा है. इसके अलावा वर्ष 2018 में ही पांच अतिरिक्त बस सेवाएं भी शुरू की गईं. वर्ष 2018 में भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों में बांग्लादेशी नागरिकों की तादाद 21.6 फीसदी रही. वीजा नियमों में ढील और यातायात की सहूलियत बढ़ने की वजह से ही भारत के स्वास्थ्य पर्यटन राजस्व में बांग्लादेश का हिस्सा लगभग 50 फीसदी तक पहुंच गया है.

अनसुलझे मुद्दे

आपसी संबंधों के लगातार मजबूत होने के बावजूद दोनों देशों के बीच अब भी कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो अनसुलझे रहे गए हैं. इनमें से तीस्ता के पानी के बंटावरे का मुद्दा तो पुराना है. उसके अलावा रोहिंग्या शरणार्थियों और एनआरसी जैसे मुद्दे भी बांग्लादेश के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं. सिक्किम की पहाड़ियों से निकल कर भारत में लगभग तीन सौ किलोमीटर का सफर करने के बाद तीस्ता नदी बांग्लादेश पहुंचती है. वहां इसकी लंबाई 121 किलोमीटर है. बांग्लादेश का करीब 14 फीसदी इलाका सिंचाई के लिए इसी नदी के पानी पर निर्भर है. इससे वहां की 7.3 फीसदी आबादी को प्रत्यक्ष रोजगार मिलता है.

वर्ष 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ढाका दौरे के समय ही इसके पानी के बंटवारे पर समझौते की तैयारी हो गई थी. लेकिन आखिरी मौके पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मना कर दिया. ममता की दलील है कि पानी के बंटवारे से राज्य के किसानों को भारी नुकसान होगा. वैसे, वह कहती रही हैं कि बातचीत के जरिए तीस्ता के मुद्दे को हल किया जा सकता है. हसीना के मौजूदा दौरे के दौरान कई समझौतों पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद है. इनमें दोनों देशों के बीच रेलवे नेटवर्क को और मजबूत करना भी शामिल है. लेकिन तीस्ता समझौते को लेकर संशय जस का तस है. हालांकि केंद्र सरकार यह साबित करना चाहती है कि दोनों देशों के रिश्ते महज पानी पर नहीं टिके हैं.

रोहिंग्या और एनआरसी

बांग्लादेश में रहने वाले रोहिग्या शरणार्थियों और वर्ष 2017 में इस मुद्दे पर भारत की टिप्पणी से भी बांग्लादेश के हुक्मरानों में कुछ असंतोष है. लेकिन विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल के बांग्लादेश दौरे के दौरान यह कह कर भारत के रुख में बदलाव का संकेत दिया था कि बांग्लादेश, म्यांमार और भारत के राष्ट्रीय हित में विस्थापित (रोहिंग्या) लोगों की सुरक्षित व त्वरित वापसी पर सहमति बन गई है. उनका कहना था कि इस मामले में चीन मध्यस्थता कर रहा है जबकि भौगोलिक स्थिति को देखते हुए क्षेत्रीय नेतृत्व में सकारात्मक भूमिका के लिए भारत सबसे आदर्श स्थिति में है.

हाल के वर्षों में सीमा पर होने वाली फायरिंग और उसमें तस्करों और कथित घुसपैठियों की मौतें भी बांग्लादेश के लिए परेशानी का विषय है. हालांकि सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) का दावा है कि हाल में ऐसी घटनाएं कम हुई हैं और सुरक्षा बल अकसर आत्मरक्षा में ही फायरिंग करते हैं.

असम में तैयार एनआरसी और उससे बाहर रहने वाले सात लाख से ज्यादा अल्पसंख्यक भी बांग्लादेश के लिए चिंता का विषय हैं. उसे डर है कि कहीं इन सबको बांग्लादेशी करार देकर बांग्लादेश की सीमा में खदेड़ नहीं दिया जाए. वैसे, हाल में संयुक्त राष्ट्र के अधिवेशन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शेख हसीना को भरोसा दिया था कि दोनों देशों के बेहतर आपसी संबंधों की वजह से उनमको एनआरसी या पानी के बंटवारे के मुद्दे पर चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. अब जरूरत बातचीत को अमली जामा पहनाने की है.

अंतरराष्ट्रीय थिंक टैंक द इंस्टीट्यूट आफ पालिसी, एडवोकेसी एंड गवर्नेंस (आईपीएजी) के अध्यक्ष सैयद मुनीर खासरू कहते हैं, बीते एक दशक के दौरान विभिन्न मोर्चों पर बढ़ते सहयोग की वजह से भारत-बांग्लादेश संबंधों में परिपक्वता आई है. लेकिन मौजूद मुद्दों व चुनौतियों को शीघ्र सुलझाना दोनो देशों के हित में बेहतर होगा. उनको उम्मीद है कि शेख हसीमा के इस दौरे से आपसी रिश्तों में सहयोग, समन्वय और मजबूती का एक नया आयाम जुड़ जाएगा.

_______________

हमसे जुड़ें: WhatsApp | Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore