आधुनिकता के जहर से खत्म होते सपेरे
भारत में सदियों से सपेरे नाग व सांप को पकड़ते आये हैं. सपेरे शायद, दुनिया के सबसे अनुभवी सांप विशेषज्ञ हैं. लेकिन इनके हुनर की कोई कद्र नहीं.
कौन हैं सपेरे
भारत के कुछ खास कबीले सैकड़ों साल तक सांप पकड़कर अपना पेट पालते रहे. इन्हीं को सपेरा भी कहा जाता है. उनका ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी अनुभव के साथ आगे बढ़ा है. आम तौर पर सपेरों के बच्चे दो साल की उम्र में ही सांपों से खेलना शुरू कर देते हैं.
सदियों पुरानी दोस्ती
भारत में मिलने वाले सांपों की दर्जनों प्रजातियां विषैली होती हैं. लेकिन जोगी, वादी और इरुला कबीले के बच्चे इनसे भी नहीं डरते. वह सांपों का मनोविज्ञान समझने का दावा करते हैं.
पौराणिक विद्या
वादी कबीले के मुखिया बाबानाथ मिथुननाथ के मुताबिक, "रात में हम सब एक साथ बैठते हैं और फिर नागाओं के समय से चली आ रही विद्या को साझा करते हैं. 12 साल की उम्र तक बच्चे सांपों के बारे में सब कुछ सीख जाते हैं."
एक दूसरे के दोस्त
मिथुननाथ कहते हैं, "हम बच्चों को बताते हैं कि एक सांप को उसके प्राकृतिक आवास से सात महीने के लिए ही बाहर रखा जा सकता है. सात महीने से ज्यादा बाहर रखना ठीक नहीं. साथ में काम करते समय सांप और हम एक दूसरे पर भरोसा करते हैं."
जहर नहीं निकालते
बाबानाथ मिथुननाथ सांपों के जहरीले दांत तोड़ने से इनकार करते हैं, "हम उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाते, क्योंकि वे तो हमारे बच्चों की तरह हैं. मैंने बचपन से आज तक सिर्फ एक ही बार सुना है कि एक आदमी को सांप ने काटा, क्योंकि उसने सांप को सात महीने से ज्यादा समय तक बाहर रखा."
गजब का ज्ञान
बिना किसी मशीनी ताम झाम के ये लोग एक पल में सांप की उम्र, उसका लिंग और उसका इलाका बता देते हैं. वे जानते हैं कि कौन सा सांप यहीं रहता है और कौन सा भटककर आया है.
एक मात्र उम्मीद
भारत के हजारों गांवों में आज भी सांप के काटने पर लोग इलाज के लिए सपेरों के पास जाते हैं. संपेरे पानी और जड़ी बूटियों से इलाज करते हैं. अक्सर उनके तौर तरीकों को चमत्कार भी बताया जाता है.
कानून की मार
भारत में 1991 में सांपों को नचाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. अब सांपों को रखना भी कानूनन अपराध है. वादी कबीले के मुताबिक इस कानून की उन पर तगड़ी मार पड़ी. अब सपेरों के लिए रोजी रोटी जुटाना मुश्किल हो रहा है.
कहां जाएं, क्या करें
राजस्थान के वादी कबीले के मुताबिक, सांप का खेल बंद होने के बाद से उनका गांवों में आना जाना भी कम हो गया है. अब गांव वाले अक्सर उन्हें भगा देते हैं.
जब जरूरत पड़ी, याद किया
सांप के डंक की दवा सांप के ही जहर से बनाई जाती है. भारत में हर साल हजारों लोग सर्पदंश से मारे जाते हैं. दवा बनाने के लिए जब जहर की जरूरत पड़ती है तो वादी या इरुला कबीले के लोगों को याद किया जाता है.
मान्यता बनाम कानून
हिंदू मान्यता के मुताबिक भगवान शिव की उपासना करने वाले सपेरे अब वाकई मुश्किल में हैं. उनके सदियों पुराने ज्ञान का फायदा उठाया जा सकता था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बाबानाथ मदारी कहते हैं, "भारत के अमीरों के पास गरीबों के लिए जरा भी समय नहीं है."