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आज़ाद कराती साइकिल

१८ जून २००९

नमीबिया के एक शहर में साइकिलों ने महिलाओं को जीने का नया ढंग सिखा दिया है. साइकिल से इन्हें नई आज़ादी ही नहीं बल्कि आमदनी कमाने का नया रास्ता भी मिला है.

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पहिए में आज़ादीतस्वीर: AP

साइकिल महंगी नहीं होती, तेल नहीं खाती और हर सड़क पर आसानी से निकल जाती है. कई देशों में साइकिल ने महिलाओं को आज़ादी दी है. उन्हें आत्मनिर्भर बनाया है. दो पहियों पर सवार होकर कैसे महिलाएं निकलीं चारदीवारी से बाहर. भारत में तमिलनाडु में एक ज़िला है पुदुकोट्टई. नब्बे के दशक में यहां की महिलाओं को साइकिल दी गई और बीस साल में उनकी तसवीर बदल गई. आज वो साक्षर भी हैं और ख़ुद पर निर्भर भी.

कई विकासशील देशों में साइकिल ने महिलाओं की हैसियत बदली है. तमिलनाडु से सीधे चलते हैं अफ्रीका के छोटे से देश नामीबिया. सिर्फ़ इक्कीस लाख आबादी वाले नामीबिया में पिछले चार साल से साइकिल के ज़रिए महिलाओं को जागरूक और मज़बूत बनाने की कोशिश की जा रही है. चार साल से बाइसाइक्लिंग एंपावरमेंट नेटवर्क चला रहे मिशाएल लिंके.

नामीबिया के गांव एक दूसरे से बहुत दूर हैं. बीस किलोमीटर दूर बैंक तक पहुंचने के लिए रेगिस्तान में एक गांव से दूसरे गांव तक पैदल चलना आम बात है. नामीबिया की 60 प्रतिशत आबादी के पास कार, बस या टैक्सी की सुविधा नहीं है. इसी समस्या को देखते हुए महिलाओं को साइकिलें दी जा रही हैं. 36 साल की मरिया अपने बीते हुए कल के बारे में ज़्यादा सोचना नहीं चाहतीं. करीब सात साल पहले पति ने उन्हें और पांच बच्चों को अकेला छोड़ दिया. मरिया नशा करने लगी और बाद में ग़रीबी से जूझने के लिए सेक्स वर्कर बन गई. फिर उन्हें एक साइकिल मिली-मौका मिला राजधानी विंदहुक में मेकैनिक का काम करने का. बीता हुआ कल भूल कर मारिया आने वाले कल को बेहतर बनाने मेंलग गई है.कहतीं हैं, "जबसे मैं यहा काम कर रही हूं. मै घर में नहीं बैठती. मुझे भूखा नहीं रहना पड़ता. अपने बदन को नहीं बेचना पड़ता. मेरा जीवन ही बदल गया है. मेरी एक नौकरी है. मुझे आठ बजे काम पर पहुंचना पड़ता है और पांच बजे मैं घर जाती हूं. अब मेरे पास एक ढांचा है जिसे मैं आधार बना सकती हूं. मैं कुछ भी नहीं थी, लेकिन अब कुछ बन गई हूं."

Frauen im Bicycle Empowerment Centre von Katutura
कटूटूरा में बाइसाइकिल एंपावरमेंट सेंटरतस्वीर: Barbara Gruber

साइकिलों से महिलाएं बाज़ारों में आसानी से अपना माल बेच सकती हैं. पैसे हों तो बच्चों को स्कूल भेजा जा सकता है. इलाज के लिए पैसे जुटाए जा सकते हैं. साइकिल उन्हें एक दिशा दे रही है. महिलाओं के अंदर आत्मविश्वास आ रहा है. उन्हें अपनी अहमियत समझ में आ रही है. नामीबिया के ग़ैर सरकारी संगठनों को ज़्यादातर साइकिलें अमेरिका या यूरोप से मिल रही हैं. मिशाएल लिंके गर्व से कहते हैं कि इस साल के आख़िर तक वह दस हज़ार महिलाओं को साइकिल दे देना चाहते हैं. पूरे देश में उनकी संस्था के 16 केंद्र हैं. उधर, मरिया ने सिर्फ पुरानी साइकलों को ठीक करना ही नहीं सीखा, अकाउंटिंग भी सीखी. नामीबिया की कई महिलाओं के लिए मरिया अब एक आदर्श बन गई है.

साइकिल के कई पार्ट्स ऐसे होते हैं, जब वह टूट जाते हैं, तो उन्हें ठीक करना मुश्किल होता है. बहुत ध्यान देना पड़ता है. लेकिन मैं मरम्मत की दुकान की मैनजर हूं. मुझे अपनी दूसरी महिला कर्मचारियों की मदद करनी होती है. वैसे यही सबसे अहम है कि हम सब महिलाएं एक दूसरे की मदद करें. अफ्रीका हो या लैटिन अमेरिका या फिर एशिया. अपनी सहेली साइकिल के ज़रिए महिलाओं के लिए एक नई दुनिया खुलती है. भारत में भी.

रिपोर्ट- प्रिया एसेलबॉर्न