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अस्पतालों को निशाना बनाना जंग का नया तरीका

१० अगस्त २०११

रेड क्रॉस की एक ताजा रिपोर्ट में ये बात सामने आई है कि युद्ध वाले इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं को निशाना बनाया जा रहा है. स्वास्थ्य कर्मियों पर भी हमले किए जा रहे हैं. हाल के सालों में इस तरह का चलन तेजी से बढ़ा है.

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तस्वीर: picture alliance/dpa

लीबिया से लेकर सोमालिया तक अस्पतालों, स्वास्थ्य सेवा कर्मियों और एंबुलेंसों को लगातार संघर्ष के दौरान निशाना बनाया जा रहा है. अंतर्राष्ट्रीय रेड क्रॉस समिति ने बुधवार को कहा कि इस तरह से लाखों जख्मी और बीमार लोगों को उपचार से वंचित किया जा रहा है. जरूरी सप्लाई और युद्ध मैदान से जख्मी लोगों को सुरक्षित ठिकाने तक लाने वाली संस्था रेड क्रॉस ने कहा है कि अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवा के लोगों पर इस तरह के हमले बंद किए जाने चाहिए.

Flash Galerie Rotes Kreuz Kolumbien
तस्वीर: Imogen Foulkes/ICRC

आईसीआरसी के महानिदेशक यीव डैकोर्ड कहते हैं, "श्रीलंका और सोमालिया के अस्पतालों पर गोले दागे गए. लीबिया में एंबुलेंस पर फायरिंग हुई. कोलंबिया में पैरामेडिक की हत्या हुई, अफगानिस्तान में जख्मी लोगों को जबरन घंटों तक चेक प्वाइंट पर रोका जाता है."

आईसीआरसी की "हेल्थ केयर इन डेंजर: मेकिंग द केस" नामक रिपोर्ट में इस बात के दस्तावेजी सबूत पेश किए गए हैं कि 16 देशों में सुरक्षा घटनाओं के जरिए स्वास्थ्य सेवा की देखभाल को बाधित किया गया. उनमें से कई जानबूझकर किए गए हैं जो अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का उल्लंघन करते हैं.

Flash Galerie Rotes Kreuz Kolumbien
तस्वीर: Imogen Foulkes/ICRC

शोध का नेतृत्व करने वाले डॉक्टर रॉबिन कूपलैंड कहते हैं, "सबसे चौंकाने वाली जानकारी यह है कि बड़ी संख्या में लोग मरते हैं. ऐसा इसलिए नहीं कि वे सड़क के किनारे फटे बम या फायरिंग के सीधे शिकार होते हैं. वे इसलिए मरते हैं कि एंबुलेंस समय पर नहीं पहुंचती. क्योंकि स्वास्थ्य कर्मियों को काम करने से रोका जाता है, क्योंकि अस्पताल खुद हमलों का शिकार हो रहे हैं. क्योंकि माहौल स्वास्थ्य देखभाल के लिए काफी खतरनाक है."

Libyen Juli 2011
तस्वीर: dapd

हिंसा के बाद अक्सर लूटपाट की वारदात होती. मतलब डॉक्टरों और नर्सों का नौकरी पर जाना मुश्किल हो जाता है. अस्पतालों में दवाइयां खत्म हो जाती हैं या अस्पताल के जेनरेटर के तेल खत्म हो जाते हैं. टीकाकरण अभियान रोक दिए जाते हैं. इस तरह से मरीजों का गंभीर बीमारियों की चपेट में आने का खतरा बढ़ जाता हैं. संघर्ष वाले क्षेत्र में पोलियो और हैजा जैसी बीमारियों के फैलने का डर ज्यादा होता है.

जेनेवा समझौतों के तहत हर किसी जख्मी को तुरंत उपचार देना अनिवार्य है चाहे वह नागरिक हो या सैनिक. फिर भी कई सेनाएं कानून का उल्लंघन कर रही हैं. आईसीआरसी के मुताबिक वह जागरूकता अभियान शुरु करने वाली है. रिपोर्ट कहती है, "दुनिया भर में हिंसा के दौरान क्रॉस फायरिंग में फंसे नागरिकों की मदद के बजाए सैनिक अपनी जिम्मेदारी से मुंह चुराते हैं. घायलों की मदद के लिए उनके रिश्तेदार और पड़ोसी आगे आते हैं."

Leben in Jabal Nafusah inmitten des Krieges Flash-Galerie
तस्वीर: DW/G. Anderson

रिपोर्ट: रॉयटर्स/ आमिर अंसारी

संपादन: महेश झा

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