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असम की बाढ़ पर अंकुश लगाने की पहल

प्रभाकर मणि तिवारी
२६ जनवरी २०२२

असम को बाढ़ से बचाने के लिए राज्य सरकार ने हजार किलोमीटर लंबे तटबंध बनाने के साथ ही कुछ और नए उपाय करने का एलान किया है. असम में हर साल आने वाली बाढ़ के संकट को क्या कम किया जा सकता है.

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Indien GUWAHATI TINSUKIA | Assam Überschwemmungen
तस्वीर: Prabhakarmani Tewari/DW

पूर्वोत्तर राज्य का प्रवेश द्वार कहा जाने वाला असम लंबे अरसे से बाढ़ की समस्या से जूझ रहा है. हाल के दशकों में स्थिति लगातार बदतर हुई है. इसके लिए पेड़ों की कटाई, राज्य की भौगोलिक स्थिति, अरुणाचल प्रदेश और उससे सटे तिब्बत में ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों पर बड़े पैमाने पर बांधों के निर्माण के अलावा तेजी से बढ़ते शहरीकरण को जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है. साल में कई दौर की बाढ़ से राज्य में जान और माल का भारी नुकसान होता है. आजादी के बाद से ही बाढ़ पर काबू पाने के लिए जितनी योजनाएं बनाई गईं, वह भी लगता है बाढ़ के पानी में बह गई हैं. बाढ़ की वजह पता होने के बावजूद उनको दूर करने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की गई थी. अब सरकार छोटे स्तर पर ही सही, इस दिशा में पहल कर रही है. इसके तहत एक हजार किमी लंबे तटबंध के निर्माण के अलावा नदियों से गाद की सफाई का फैसला किया गया है.

बाढ़ रोकने के लिए नए उपाय

राज्य सरकार ने सालाना बाढ़ पर अंकुश लगाने के लिए कंक्रीट का एक हजार किलोमीटर लंबा तटबंध बनाने का एलान किया है. मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने मंगलवार को राज्य के शोणितपुर जिले में एक कार्यक्रम में इन परियोजनाओं के बारे में जानकारी दी. उनका कहना था,तटबंधों के निर्माण के लिए डेढ़ हजार करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं. इसके अलावा विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक की सहायता से विभिन्न परियोजनाएं भी शुरू की गई हैं. सरमा बताते हैं कि हर साल बाढ़ के साथ आने वाली गाद जमा होने के कारण नदियों की गहराई कम हो रही है. इससे बाढ़ की विभीषिका लगातार बढ़ रही है. इस पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने जिले की जिया भराली नदी के 20 किमी लंबे हिस्से से पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर गाद निकालने का काम शुरू किया है.

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हर साल की बाढ़ से भारी नुकसान.तस्वीर: Prabhakarmani Tewari/DW

मुख्यमंत्री का दावा है कि सरकार असम को बाढ़-मुक्त बनाने के प्रति कृतसंकल्प है और जिया भराली नदी पर शुरू होने वाली परियोजना की कामयाबी दूसरी नदियों में भी ऐसी परियोजनाओं का रास्ता साफ कर देगी. इससे इलाके में बाढ़ पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकेगा.

क्यों आती है बाढ़

आखिर यह राज्य हर साल कई दौर की बाढ़ का शिकार क्यों बनता है? पर्यावरणविदों का कहना है कि अपनी भौगोलिक स्थिति की वजह से असम बाढ़ के प्रति बेहद संवेदनशील है. असम घाटी अंग्रेजी के यू अक्षर जैसी है जिसकी औसतन चौड़ाई 80 से 90 किमी है. इससे बहने वाली नदियों की चौड़ाई आठ से दस किमी है. इसके अलावा तिब्बत, भूटान और अरुणाचल असम के मुकाबले ज्यादा ऊंचाई पर स्थित हैं. वहां से पानी की निकासी का एकमात्र रास्ता असम होकर ही है. राज्य की जमीन के अपेक्षाकृत कम कठोर होने के कारण भूमि कटाव तेजी से होता है. साथ ही पानी के प्रवाह की गति बाढ़ के असर को और गंभीर बना देती है. राज्य की सबसे बड़ी नदी ब्रह्मपुत्र में काफी हद तक गाद भर गई है. तिब्बत के पहाड़ से आने वाली गाद और पत्थरों ने नदी की गहराई काफी कम कर दी है. नतीजतन ऊपरी इलाकों में हल्की बारिश ही असम के मैदानी इलाकों को डुबोने के लिए काफी है.

पर्यावरणविद डा. दिनेश भट्टाचार्य बताते हैं, "नदियों का प्रवाह भूकंप प्रभावित क्षेत्रों से होने के कारण नदियों के मार्ग में परिवर्तन हो जाता है. वर्ष 1950 में आए एक विनाशकारी भूकंप की वजह से डिब्रूगढ़ में ब्रह्मपुत्र नदी के जल स्तर में 2 मीटर की बढ़ोत्तरी देखी गई थी. नदियों के किनारे के वृक्षों और झाड़ियों की कटाई से भूमि क्षरण की स्थिति उत्पन्न हो जाती है." वह बताते हैं कि नदियों के तटवर्ती इलाकों में तेजी से बढ़ने वाली इंसानी बस्तियो ने नदियों के प्राकृतिक बहाव को बाधित करने में अहम भूमिका निभाई है. इससे बाढ़ की गंभीरता लगातार बढ़ी है.

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तस्वीर: Prabhakarmani Tewari/DW

मशहूर पर्यावरणविद दुलाल चंद्र गोस्वामी ने वर्ष 2008 में ही एक रिपोर्ट में कहा था कि ब्रह्मपुत्र से अकेले गुवाहाटी के पास सालाना प्रति वर्ग किमी 908 टन गाद जमा होती है. इस लिहाज से इस नदी को दुनिया के पांच शीर्ष नदियों में शुमार किया जा सकता है. उसके बाद ब्रह्मपुत्र में बहुत पानी बह चुका है और उसी अनुपात में गाद भी जमा हो गई है.

विशेषज्ञों का कहना है कि असम की बाढ़ पर अंकुश लगाने और जान-माल के नुकसान को कम करने के लिए बहुआयामी उपाय जरूरी हैं. हर साल जो इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं उनको संवेदनशील की श्रेणी में रख कर वहां अलग उपाय किए जाने चाहिए. इसके अलावा नदियों के करीब किसी स्थायी निर्माण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.

स्थानीय प्रजाति के पेड़ों से फायदा

हाल में एक अध्ययन से पता चला है कि तटवर्ती इलाकों में अलग-अलग किस्म के पौधे लगाने से बाढ़ और उसकी वजह से होने वाले भूमि कटाव को रोकने में काफी लाभ होता है. जोरहट के पास दुनिया के सबसे बड़े नदी द्वीप में यह बात साबित हो चुकी है. इस मानव निर्मित जंगल को लगाने का काम पद्मश्री जादव पायेंग ने शुरू किया था. उनको फारेस्ट मैन ऑफ इंडिया कहा जाता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि हर साल इलाके में आने वाली भयावह बाढ़ से होने वाले भूमि कटाव और फसलों के नुकसान को रोकने के लिए करीब 39 साल पहले ब्रह्मपुत्र के किनारे अलग-अलग किस्म के पौधे लगाए गए थे.

पायेंग बताते हैं, "अंग्रेज नाव बनाने के लिए बाहर से टीक की लकड़ी यहां ले आए थे. इससे इलाके में जंगल की प्राकृतिक संरचना गड़बड़ा गई. इसी वजह से इलाके में इंसानों और हाथियों के संघर्ष जैसी समस्या पैदा हो गई. हमें स्थानीय प्रजाति की वनस्पतियों का ही इस्तेमाल करना चाहिए."

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