अयोध्या विवाद पर श्रोताओं की राय
२८ सितम्बर २०१०अयोध्या पर फैसला
बंद करो मंदिर मस्जिद मुद्दा हमें साथ मिलकर हैं रहना . कब तक हम धर्म की आग में जलते रहेंगे. नहीं चाहिए हमें ऐसी ज़मीन जिस पर माथा टेकने के लिए मानवता की बलि देनी पड़े. अपनी ज़िन्दगी के 60 से ज्यादा साल मौज मस्ती में गुज़ारने के बाद कुछ लोग आने वाली पीढ़ी को जिन्हें अपनी पूरी ज़िन्दगी हिन्दू और मुस्लिम के साथ गुजारनी है. एक कभी न बुझने वाली ऐसी आग में धकेलना चाहते हैं, जिसकी लपटें धर्म के नाम पर बार बार उठती रहेगी. न मंदिर बनाओ न मस्जिद बनाओ, हॉस्पिटल बनाओ या कॉलेज बनाओ. आप शायद ये नहीं जानते कि किसी भी विवाद स्थल पर नमाज़ नहीं कबूल हो सकती है तो अगर ऐसी जगह पर मस्जिद बनाई जाए जो पहले ही से विश्वप्रसिद्ध विवादस्थल है तो हम इसे कमअकली नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे. ये सब वोट की राजनीती है जिसे "हम सब" बखूबी जानते हैं . आज इस देश में डेंगू और मलेरिया की बीमारी कितनी तेजी से बढ़ रही हैं ये हम सब जानते हैं. इंसानियत को बचाने के लिए हिन्दू का खून मुस्लिम के और मुस्लिम का हिन्दू के चढ़ाया जा रहा है तो अगर मानवता सबसे पहले है तो फिर हम मंदिर मस्जिद मे क्यों उलझे हुए हैं . आओ "हम सब" (ह- हिन्दू , म- मुस्लिम , स- सिख ईसाई, ब- बाकी सब) मिल कर आगे आएं और एक ऐसा रास्ता चुनें, जिसमें "हम सब" की भलाई हो.
शादाब हैदर, ईमेल से
मेरी नज़र में कोई भी सरकार नहीं चाहती कि उसके कार्यकाल में इस मुद्दे पर फैसला आए क्योंकि फैसला चाहे किसी के भी हक में हो, दूसरा पक्ष सरकार से जरूर नाराज हो जाएगा. इसी लिए इस फैसले को टाला जा रहा है, जो बहुत गलत है. मेरी नज़रों में ये फैसले का सही समय है. इसका एक सबसे बड़ा कारण यह भी है कि आज लोग सब कुछ समझने लगे हैं. दूसरा सबसे बड़ा टेक्निकल प्वाइंट यह है कि देश के कई हिस्सों में बाढ़ से भारी तबाही मची हुई है. ऐसे में लोगों को अपनी जान और माल की चिंता है. सभी का ध्यान उस ओर लगा है. सभी एक दूसरे की मदद में लगे हैं. चाहे वह किसी भी जाति धर्म के हों. अगर यह फैसला अब आता है तो इसका सबसे बड़ा फायदा मिलेगा. एक बात और है कि यह फैसला अगर अब नहीं आया तो भविष्य में इसके घातक परिणाम साबित होंगे.
संजीव कुमार, ईमेल से
नमस्कार भारतवासियों, वैसे तो एक हिंदू होने के नाते मैं भी अपने धर्म के पक्ष में हूं लेकिन एक हिन्दुस्तानी होने के नाते सबसे पहले हमारे देश की नाजुक हालत भी देखनी चाहिए. हमें पहले उनके बारे में सोचना चाहिए जो नक्सलवादियों से परेशान हैं , आस पास सभी जगह पर बाढ़ आई है, लोग बेघर हो रहे हैं, ऊपर से कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए परेशानी है, जिस पर हमें कुछ आक्रोशित निर्णय के लिए लड़ना चाहिए कि इस बात को और ज्यादा (ऐसी हालत में) तूल पकड़ना चाहिए और फिर कुछ ऐसे लोग भी है जो निर्णय चाहे पक्ष में हो या विपक्ष में हो, उन्हें सिर्फ झगड़ा और बर्बादी ही करनी है. और फिर बात हमारे देश की सुरक्षा और लाज बचाने की है. हम पहले भारतीय हैं फिर हिंदू है और उम्मीद भी सभी से करता हूं कि कृपया अपने को भारतीय पहले समझे फिर सोचे कि क्या सही है और क्या गलत. गुस्से से सिर्फ नुकसान ही होता है. और फायदा कोई और ले जाता है.
नितिन दीक्षित, ईमेल से
बाबरी मस्जिद का फैसला आने वाला है. हो सकता है इस फैसले से कुछ विवाद हों. कोई धार्मिक पार्टी आपको उकसाए. मंदिर या मस्जिद की बात करे. तब एक बात याद रखना की दंगों में मरने वाला न हिन्दू होता है न मुस्लिम, वो सिर्फ किसी का भाई, बेटा, बाप या किसी घर का चिराग होता है. क्योंकि वह सिर्फ और सिर्फ इन्सान होता है. कोई हिन्दू या मुस्लिम नहीं होता. और इसी इंसानियत के नाते इस मेसेज को जितना हो सके फैला दो.
डॉ. हेमंत कुमार, प्रियदर्शनी रेडियो लिस्नर्स क्लब, भागलपुर, बिहार
संकलनः विनोद चढ्डा
संपादनः ए जमाल