अमेरिका क्या आम लोगों से पर्यावरण बचाने की सीख लेगा
१९ सितम्बर २०१९कैलिफोर्निया के जलवायु वैज्ञानिक पीटर कालमुस आखिरी बार विमान में 2012 में चढ़े थे. उनका कहना है कि उस यात्रा से उन्हें ऐसा लगा जैसे बच्चों का भविष्य "चुरा" रहे हों और तभी उन्होंने कभी भी विमान में यात्रा नहीं करने का फैसला कर लिया.
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और उनका प्रशासन खुले तौर पर जलवायु विज्ञान से अपनी घृणा जाहिर कर चुका है लेकिन इससे अमेरिका के आमलोग अपनी मुहिम में नहीं रुके हैं. वो कार्बन उत्सर्जन को कम करने के अपने तरीकों में पूरी श्रद्धा के साथ जुटे हुए हैं और यह उम्मीद कर रहे हैं कि दूसरे लोग भी उनकी बात समझेंगे.
कालमुस अपनी पोस्ट डॉक्टोरल पढ़ाई कर रहे थे उसी दौरान 2009 में वह जलवायु को लेकर बहुत चिंतित हो गए. कालमुस कहते हैं, "मैं यह देख रहा था कि लोग फेसबुक पर तमाम पोस्टिंग कर रहे थे लेकिन इन सबका कोई फायदा नहीं हो रहा था. आखिरकार मुझे महसूस हुआ कि कुछ ऐसा करना है जो मेरी सोच को मेरे कामकाज में ढाल सके. "
वैज्ञानिक के रूप में खुद को एक्सपर्ट बनाने के बाद उन्होंने सबसे पहले जीवन के अलग अलग कामों के दौरान निकलने वाले उत्सर्जन का हिसाब निकाला. वह यह देखकर हैरान थे कि छोटे मोटे काम में खर्च होने वाली बिजली की तुलना विमान यात्रा के दौरान होने वाले उत्सर्जन से की जा सकती है. कालमुस कहते हैं, "तो मैंने तय किया कि मैं कम से कम उड़ान भरूंगा. मैंने एक महीने तक शाकाहारी होने का फैसला किया और मैंने देखा कि यह बेहतर है." कालमुस को बहुत जल्द लगने लगा कि त्याग करने के बारे में सोचने की बजाय जीवन में बदलाव करना ज्यादा अच्छा महसूस कराता है.
तारेक मासारानी जैसे कुछ लोगों के सिद्धांत इतने पक्के हैं कि दूसरे लोग उन्हें चरमपंथी के रूप में दिखते हैं. 40 साल के तारेक यूनाइडेट स्टेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ पीस के सलाहकार हैं और दो यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर भी. हालांकि उनका ज्यादा काम एक वालंटियर के तौर पर होता है. दो साल पहले जब उनके दो बेटे अपनी मां के साथ रहने उटा चले गये तो वे वाशिंगटन के उपनगर की एक को हाउसिंग सोसायटी से बाहर निकल गए और तब से अपने मित्रों के घर रह रहे हैं. वो कहीं आने जाने के लिए ज्यादा से ज्यादा साइकिल का उपयोग करते हैं, यहां तक कि भारी सर्दी में भी.
वह नई चीजें नहीं खरीदते क्योंकि इन्हें बनाने में ऊर्जा खर्च होती है. वह अपना दशकों पुराना मोबाइल और लैपटॉप इस्तेमाल करते हैं. इतना ही नहीं वह अपना ज्यादातर खाना कूड़ेदान या फिर जिनके लिए उन्हें निमंत्रण मिलता है वहां के बचे खानों से जुटाते हैं. वह खुद को "सप्लाई एंड डिमांड वीगन" कहते हैं. उनका कहना है, "मैं जंतुओं से मिलने वाली चीजें नहीं खरीदता, मैं कोशिश करता हूं कि जंतुओं से मिलने वाली किसी भी चीज की मांग पैदा ना हो." हालांकि कूड़ेदान या फिर कांफ्रेंस के बाद बचे खाने में उन्हें मीट मिल जाए तो वो उसे खा लेते हैं. मासारानी मानते हैं कि उनका मामला बाकियों से अलग है और ज्यादातर लोग ऐसा नहीं करते या फिर नहीं सोचते. वो कहते हैं, "मैं जानता हूं कि अगर ज्यादती ना हो तो वे नहीं होंगी, वह काम ही नहीं करेगा लेकिन इसके साथ ही यह भी है कि समस्या भी नहीं होगी."
एलिजाबेथ होगन जैसे लोग भी हैं जो ज्यादा पारंपरिक तरीके से जिंदगी बिताते हैं और अभी भी ज्यादा से ज्यादा कार्बन फुटप्रिंट को कम करने की कोशिश कर रहे हैं. होगन पेशे से कंसल्टेंट हैं हाल ही में उन्होंने अपने वाशिंगटन के घर में छतों पर सोलर पैनल लगाए हैं. वो और उनके पति अपनी ऊर्जा जरूरतों का 80 फीसदी सौर ऊर्जा से जुटाते हैं. बाकी की ऊर्जा भी पवन ऊर्जा के रूप में खरीदते हैं.
होगन मानती हैं कि उनका और उनके पति का जीवन बहुत हद तक इस धरती के लिए अच्छा है. हालांकि वो स्वीकार करती हैं कि बहुत कुछ ऐसा है जो वो नहीं रोक पातीं. काम के सिलसिले में उन्हें और उनके पति को अकसर विमान यात्राएं करनी पड़ती हैं. उन्हें चीज पसंद है तो जाहिर है कि वो वीगन नहीं, लेकिन वो पड़ोस की ऐसी दुकान से चीज खरीदती हैं जो इसके लिए प्लास्टिक की पैकिंग की बजाय कांच के जार का इस्तेमाल करता है और एक ही जार बार बार धो कर इस्तेमाल की जाती है.
हालांकि जब तक सरकारों की तरफ से कोशिशें नहीं होंगी लोगों की यह कोशिशें कितनी काम आएंगी. कालमुस ने अपने अनुभवों पर किताब भी लिखी है. उनका कहना है कि लोग अगर दूसरों को ये बता सकें कि पर्यावरण के लिए उन्होंने निजी तौर पर क्या कदम उठाएं हैं तो इससे भी बड़ा बदलाव आ सकता है.
एनआर/एमजे(एएफपी)
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