अमित शाह को पोस्टर दिखाने वाली महिला पर क्या क्या गुजरी
१० जनवरी २०२०नरेंद्र मोदी सरकार में गृह मंत्री अमित शाह के दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून, सीएए के समर्थन में चलाए गए घर-घर समर्थन अभियान के दौरान दो महिलाओं ने शांतिपूर्ण तरीके से विरोध जताया था. उन्होंने अपने घर की बालकनी से चादर लटकाई थी जिस पर नागरिकता कानून और एनआरसी के खिलाफ नारे लगाए थे. महिलाएं जब इस तरह विरोध जता रही थीं उस समय गृह मंत्री इलाके में नागरिकता कानून के समर्थन में अभियान चला रहे थे.
गृहमंत्री के रहते हुए इस तरह का विरोध करना उस इलाके में रहने वाले लोगों और मकान मालिक को पसंद नहीं आया. इन लोगों ने बालकनी पर लटकते बैनर को नीचे से खींच कर उतार दिया. ये दोनों महिलाएं घर की तीसरी मंजिल पर किराये पर रहती थीं.
विरोध करने वाली महिलाओं में से एक वकील सूर्या राजप्पन ने डीडब्ल्यू से खास बातचीत में बताया कि कैसे उस घटना के बाद बहुत सारे लोग उन्हें नुकसान पहुंचाने के मकसद से उनके घरों के दरवाजे पर आ गए थे. वे कहती हैं, "अगले पांच मिनट के अंदर कुछ लोग हमारे दरवाजे के घर बाहर आ चुके थे. दरवाजा पीट-पीटकर बोलने लगे कि दरवाजा तोड़ देंगे. वे लोग कहने लगे निकलो बाहर. उस वक्त तक बैनर भी हट चुका था, उनका मकसद हमें नुकसान पहुंचाने के अलावा कुछ और नहीं हो सकता था."
राजप्पन ने कहा, "अमित शाह के अभियान के दौरान हमने विरोध की योजना पहले से नहीं बनाई थी. हमें यह भी नहीं पता था कि वे हमारे घर के पास ही आने वाले हैं. एक रात पहले हमें पता चला कि वह इस इलाके में आने वाले हैं लेकिन हमने उसे गंभीरता से नहीं लिया. अगले दिन जब वह इलाके में अभियान चला रहे थे तब हमने अचानक विरोध करने के बारे में सोचा." महिलाओं ने घर पर ही एक चादर और स्प्रे कलर की मदद से बैनर बनाकर अपना विरोध दर्ज कराया और उसके बाद नागरिकता कानून के खिलाफ नारे भी लगाए.
राजप्पन ने कहा कि सबको ऐसा मौका नहीं मिलता है कि अमित शाह उनके घर पास से गुजरे और वह विरोध जता कर अपनी आवाज अमित शाह तक पहुंचा पाएं. उन्होंने बताया कि "अमित शाह ने तो उनकी तरफ नहीं देखा लेकिन उनके साथ चल रहे लोगों ने बैनर और नारेबाजी करते हुए हमें देख लिया और वे लोग वहीं रुक गए."
राजप्पन बताती हैं कि इस घटना के बाद सबसे पहले उनके मकान मालिक शोर मचाने लगे कि यह सब क्या चल रहा है और घर खाली करने को कहने लगे. इस पर राजप्पन कहती हैं, "हमने सोचा कि क्या फर्क पड़ता है हम घर खाली कर देंगे. हम लोग सक्षम हैं और कहीं और ठिकाना पा सकते हैं. हमें पता था कि अगर विरोध करेंगे तो लोग प्रतिक्रिया जरूर देंगे. लेकिन जो आक्रोश और हिंसक प्रतिक्रिया थी उसकी हमें उम्मीद नहीं थी."
चूंकि विरोध करने के कुछ देर पहले इन महिलाओं ने अपने कुछ करीबियों को इसकी सूचना दी थी, घटना के बाद उनके कुछ वकील दोस्त घर के बाहर समर्थन के लिए पहुंच गए. राजप्पन के मुताबिक, "इस दौरान घर के अंदर आने वाले मेन गेट को मकान मालिक ने बंद कर दिया था और हम घर के अंदर ही बंद थे और बाहर से कोई अंदर नहीं आ सकता था. मेरे दोस्तों के साथ उन्होंने बहुत बदतमीजी से बर्ताव किया. हमारे चरित्र पर सवाल उठाए गए. हमारी शिक्षा-दीक्षा पर सवाल उठाए गए. उन्होंने मेरे पिता से भी कहा कि आपने अपनी बेटी को कंट्रोल में रहना नहीं सिखाया है."
यह सब होने के बाद वह और उनकी दोस्त तीन घंटे तक घर में अकेले थीं. पुलिस की दखल के बाद राजप्पन के पिता को घर के अंदर जाने दिया गया और सात घंटे बाद वह और उसकी रूम पार्टनर जरूरी सामान लेकर घर से चली गईं. राजप्पन ने
मकान मालिक और अज्ञात लोगों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कराया है. फिलहाल वह मकान खाली कर कहीं और अस्थायी रूप से रह रही हैं. उन्होंने बताया, "हम देश की राजधानी में रहने वाली शिक्षित और पेशेवर युवा महिलाएं हैं लेकिन हमें अपनी आवाज उठाने के लिए इस तरह की सजा दी गई. मेरे साथ जो होना था वह हो गया लेकिन मैं अब पीछे नहीं हटूंगी. इस कदम के बाद मुझे अपार समर्थन मिला है." राजप्पन दिल्ली के शाहीनबाग में चल रहे प्रदर्शनों में भी शामिल हो चुकी हैं.
भारत में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ छात्रों से लेकर नागरिक समाज और राजनीतिक दलों ने विरोध जताया है. इनका मानना है कि संशोधित नागरिकता कानून भारतीय संविधान की प्रस्तावना के खिलाफ है. नागरिकता संशोधन कानून के मुताबिक, बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान से आए हुए हिंदू, जैन, सिख, बौद्ध, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी जाएगी लेकिन मुसलमानों को इससे बाहर रखा गया है.
इस कानून के खिलाफ देश भर में विरोध हो रहा है. विपक्ष समेत कई संगठन इस कानून को संविधान विरोधी, अल्पसंख्यक विरोधी बता रहे हैं. सबसे पहले इस कानून का विरोध पूर्वोत्तर से शुरू हुआ और उसके बाद देश के अन्य राज्यों तक जा पहुंचा. असम में लोगों ने इस कानून के खिलाफ लंबा विरोध प्रदर्शन किया और उसके बाद दिल्ली, उत्तर प्रदेश, केरल, महाराष्ट्र तक विरोध की लपटें उठने लगी. विरोध प्रदर्शनों के दौरान पुलिस के साथ झड़पों में 23 से अधिक लोगों की देश भर में मौत हो चुकी है.
नागरिकता संशोधन कानून के साथ-साथ एनआरसी और एनपीआर का भी लोग विरोध कर रहे हैं. दूसरी तरफ गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने कहा कि नागरिकता संशोधन कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर कोर्ट देश भर में हो रही हिंसा रुकने के बाद सुनवाई करेगी.
एक और याचिका में नागरिकता संशोधन कानून को संवैधानिक करार देने और प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई की मांग की गई थी इस पर सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत सुनवाई करने से इनकार कर दिया और कहा है कि पहली बार कोई कानून को संवैधानिक करार देने की मांग कर रहा है, लेकिन हमारा काम सिर्फ वैधता जांचना है. साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि देश कठिन वक्त से गुजर रहा है.
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून को लेकर अलग-अलग हाई कोर्ट में दायर याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने की केंद्र की याचिका पर कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने कहा है कि वह 22 जनवरी को नागरिकता कानून से जुड़े मामलों की सुनवाई के दौरान ही केंद्र की याचिका पर विचार करेगा.
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