1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

अंतरराष्ट्रीय उच्च सागरों की सुरक्षा के लिए ऐतिहासिक समझौता

२१ सितम्बर २०२३

संयुक्त राष्ट्र में दुनिया के लगभग 70 देशों ने अंतरराष्ट्रीय उच्च सागरों की रक्षा के लिए समझौते पर दस्तखत किए हैं. इस समझौते पर जल्दी अमल होने और धरती के जरूरी इकोसिस्टमों की सुरक्षा को लेकर उम्मीद बढ़ गई है.

https://p.dw.com/p/4WeJG
सागरों की सुरक्षा के लिए दुनिया के देशों में पहला समझौता
न्यूजीलैंड के पास सागर में एक व्हेलतस्वीर: Guo Lei/Xinhua/picture alliance

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, मेक्सिकों के साथ ही यूरोपीय संघ समेत 67 देशों ने इस समझौते पर पहले दिन दस्तखत किए हैं. हालांकि हरेक देश को अपनी घरेलू प्रक्रिया के जरिए इस समझौते की पुष्टि करनी होगी. यह समझौता 60 देशों में पुष्टि होने के 120 दिन के भीतर लागू हो जाएगा. बेल्जियम के उप प्रधानमंत्री विंसेंट वान क्विकेनबोर्न ने कहा, "यह साफ है कि सागरों को संरक्षण की तत्काल जरूरत है," कार्रवाई नहीं हुई तो "खेल खत्म हो जाएगा."

उच्च सागर

इस समझौते के लिए 15 साल से चर्चा चल रही थी. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि यह समझौता जून में आम सहमति से हो गया था हालांकि रूस का कहना है कि उसकी कुछ आपत्तियां हैं. उच्च सागर का मतलब समंदर के उन इलाकों से है जो देशों के विशेष आर्थिक जोन के बाहर या फिर तट से 370 किलोमीटर की दूरी के बाद शुरू होते हैं. इसके दायरे में पृथ्वी का करीब आधा हिस्सा आता है.पर्यावरणपर होने वाली चर्चाओं में इस बड़े हिस्से की लंबे समय से अनदेखी हो रही है.

समझौते पर पहले दिन दस्तखत करने वालों में जर्मनी भी है
समझौते पर दस्तखत के बाद जर्मनी की विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉकतस्वीर: Michael Kappeler/dpa/picture alliance

महासागरों के तापमान में रिकॉर्ड बढ़त दर्ज

समझौते में एक अहम बिंदु है अंतरराष्ट्रीय जल सीमा में संरक्षित समुद्री इलाके बनाना. फिलहाल इसका महज एक फीसदी हिस्सा ही किसी तरह के संरक्षण उपायों के दायरे में है. यह समझौता इस सहमति के लिहाज से भी अहम है जिसमें 2030 तक पृथ्वी के एक तिहाई महासागरों और जमीनों को सुरक्षा के लिए बनी थी. यह एक अलग समझौता था जिस पर दुनिया के देश दिसंबर में मांट्रियल में जैव विविधता के ऐतिहासिक करार के जरिए पहुंचे थे.

कितना जरूरी था समझौता

ग्रीनपीस इंटरनेशनल के अंतरिम कार्यकारी निदेशक मैड्स क्रिस्टेंसेन ने उम्मीद जताई है कि समझौता 2025 तक अमल में आ जाएगा. संयुक्त राष्ट्र का अगला महासागर सम्मेलन फ्रांस में 2025 में होना है. उनका कहना है, "हमारे पास 30 फीसदी सागरों को बचाने के लिए सात साल से भी कम समय है. बर्बाद करने के लिए कोई समय नहीं बचा."

गहरा रहा है ग्रेट बैरियर रीफ पर संकट

इस समझौते को अमल में लाने के लिए जरूरी 60 देश तो मिल गए हैं लेकिन पर्यावरण कार्यकर्ता इस मामले में जिस तरह के सार्वभौमिक समर्थन की मांग कर रहे हैं उसकी तुलना में यह संख्या बहुत कम है. महासागर पूरी पृथ्वी की सेहत के लिए बहुत जरूरी हैं. ये अक्सर अति सूक्ष्म जैव विविधता की रक्षा करते हैं. ये सूक्ष्म जीव ऑक्सीजन बनाने में मदद करते हैं जिनका इस्तेमाल धरती पर रहने वाले जीव करते हैं. महासागर ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन सोख कर जलवायु परिवर्तन को सीमित करने में भी बड़ी मदद देते हैं.

इस समझौते को बायोडायवर्सिटी बियॉन्ड नेशनल जुरिस्ड्रिक्शन या बीबीएनजे नाम दिया गया है. इसमें उच्च सागर में होने वाली गतिविधियों के पर्यावरण पर पड़ने वाले असर के बारे में रिसर्च करने की जरूरत पर भी बल दिया गया है. इन गतिविधियों की सूची तो समझौते में नहीं है लेकिन इसमें मछली पकड़ने से लेकर समुद्री परिवहन और गहरे समुद्र की खुदाई जैसे काम शामिल होंगे.

एनआर/ओएसजे (एएफपी)