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ताइवान खाड़ीः 130 किलोमीटर चौड़ा रास्ता बना दुनिया की गर्दन

विवेक कुमार
२ सितम्बर २०२२

चीन अगर ताइवान की खाड़ी पर कब्जा कर ले तो क्या होगा? यह इस वक्त दुनिया का सबसे खतरनाक सवाल है. यह रास्ता दुनिया की गर्दन जितना अहम हो गया है, जिसे दबा दिया तो विनाश भी हो सकता है.

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ताइवान की खाड़ी पर सबकी नजर है
ताइवान की खाड़ी पर सबकी नजर हैतस्वीर: abaca/picture alliance

ताइवान के विदेश मंत्री जोसेफ वू ने कहा है कि चीन भविष्य में उनके देश पर आक्रमण करने की अपनी रणनीतियों को जाहिर कर रहा है और अगर इलाके में यथास्थिति बदलने की कोशिश की गई तो वह "अस्थिर करने वाली, भड़काऊ और बेहद खतरनाक” होगी.

डीडबल्यू को दिए एक इंटरव्यू में वू ने कहा कि इलाके में हालात बेहद तनावपूर्ण हैं. वह कहते हैं, "काफी तनाव है और चीन यथास्थिति या कम से कम यथास्थिति के प्रतीकों को बदलने की कोशिश कर रहा है जो कि ताइवान खाड़ी की मध्य रेखा है. ताइवान खाड़ी को वैश्विक और क्षेत्रीय पक्षों सभी पक्षों के हित में देखा जाता है. जब चीन यथास्थिति को बदलने की कोशिश कर रहा है तो यह हमारे या अंतरराष्ट्रीय समुदाय के हित में नहीं है.”

क्यों अहम है ताइवान की खाड़ी?

अपनी सबसे तंग जगह पर चीन और ताइवान के बीच का करीब 130 किलोमीटर चौड़ा रास्ता ‘ताइवान की खाड़ी' कहलाता है. यह रास्ता रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है और अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए इसकी अहमियत इसे पूरे विश्व के लिए जरूरी बना देती है. यह खाड़ी दक्षिणी और पूर्वी चीन सागर को जोड़ती है. पूर्व और दक्षिण-पूर्वी एशियाके बीच व्यापार का यह सबसे अहम मार्ग है.

ताइवान के विदेश मंत्री जोसेफ वू
ताइवान के विदेश मंत्री जोसेफ वूतस्वीर: DW

समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र की संधि – युनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी (UNCLOS) के मुताबिक हर देश अपने समुद्र तट के 12 नॉटिकल मील का हकदार है. चीन भी इस संधि का हिस्सा है लेकिन समस्या यह है कि वह ताइवान को अपना हिस्सा मानता है और इस आधार पर ताइवान की खाड़ी का अपना बताता है क्योंकि अगर ताइवान उसका हुआ तो उसके समुद्र तट से 12 नॉटिकल मील का इलाका भी चीन का हो जाता है.

वैश्विक समुदाय के लिए यह एक समस्या है क्योंकि ताइवान खाड़ी का इस्तेमाल व्यापारिक मार्ग के रूप में होता है. इसके ऊपर केवायु क्षेत्र को भी अंतरराष्ट्रीय वायु सेवाएं प्रयोग करतीहैं. अंतरराष्ट्रीय कानून कहता है कि अंततराष्ट्रीय जल और वायु क्षेत्र पर सबका बराबर का हक है और वे उसका इस्तेमाल कानून के दायरे में अपने लिए कर सकते हैं.

12 नॉटिकल मील की सीमा तय करते हुए यूएन की संधि में यह भी स्पष्ट किया गया है कि इस क्षेत्र का इस्तेमाल अन्य देश ‘निर्दोष मकसद' के लिए कर सकते हैं और उसके लिए उन्हें उस देश की इजाजत लेने की जरूरत नहीं है. इस लिहाज से ताइवान की खाड़ी का प्रयोग वैश्विक समुदाय यूं भी कर सकता है, बशर्ते यह चीन की "शांति, व्यवस्था और सुरक्षा” को कोई खतरा ना पहुंचा.

चीन के पास विकल्प

ताइवान जिसे इकनॉमिस्ट पत्रिका ने धरती की सबसे खतरनाक जगह बताया है, आज जिस हालात से गुजर रहा उसकी जड़ें 1940 के दशक में जाती हैं जब राष्ट्रवादी और वामपंथी दल चीन पर नियंत्रण के लिए लड़ रहे थे. आखिरकार राष्ट्रवादियों को पीछे हटना पड़ा और वे ताइवान चले गए. 72 वर्षों में ताइवान ने अपनी पहचान बना ली है और दुनिया में उसका अपना वजूद है.

मेलबर्न यूनिवर्सिटी के एशिया इंस्टिट्यूट में ऑनरेरी फेलो कॉनली टाइलर कहती हैं कि ताइवान के अधिकतर लोग चीन को अपना देश नहीं मानते. डीडबल्यू हिंदी से बातचीत में टाइलर ने कहा, "कई सर्वेक्षण दिखा चुके हैं कि अब ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है जो एकीकरण का समर्थन करते हैं. आदर्श राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितयों में भी एकीकरण का समर्थन करने वाले ज्यादा नहीं हैं. अधिकतर लोग स्वतंत्रता चाहते हैं जिनमें से दो तिहाई लोग कहते हैं कि चीन के साथ उनके संबंध शांतिपूर्ण होने चाहिए. 50 फीसदी लोग अब भी सोचते हैं कि ताइवान को आजादी घोषित कर देनी चाहिए, चाहे इसके बाद चीन हमला ही क्यों ना कर दे.”

चीन स्पष्ट तौर पर कह चुका है कि उसे वापस मिलाने के लिए वह बल प्रयोग से भी नहीं झिझकेगा. वह ऐसी किसी स्थिति से सहमत नहीं है जिसमें ताइवान को एक स्वतंत्र देश के रूप में देखा जाए.

टाइलर कहती हैं, "चीन ‘ग्रे जोन' जैसी रणनीतियां अपनाता है जो युद्ध तो नहीं हैं लेकिन उससे बस थोड़ा सा ही कम है. जैसे कि ताइवान के वायु क्षेत्र में घुसपैठ और उस पर आर्थिक दबाव. इन सब का मकसद ताइवान को स्वतंत्रता घोषित करने से रोके रखना और उस पर एकीकरण के लिए राजी होने का दबाव बनाना ही है.”

कॉनली टाइलर मेलबर्न यूनिवर्सिटी एक एशिया इंस्टिट्यूट में ऑनरेरी फेलो
कॉनली टाइलर मेलबर्न यूनिवर्सिटी एक एशिया इंस्टिट्यूट में ऑनरेरी फेलो तस्वीर: privat

नैंसी पेलोसी की यात्रा को चीन ने बड़ी चुनौती के रूप मे देखा और उसके बाद अपनी गतिविधियां बढ़ा दीं. उसके बाद चीन ने ‘लाइव फायर एक्सरसाइज' की, उससे दुनिया ने देखा कि चीन में इलाके में नाकेबंदी करने की क्षमता है. डीडबल्यू से बातचीत में ताइवान के विदेश मंत्री हू ने इस पूरे अभ्यास को चीन की तैयारी बताया.

वू ने कहा, "अगस्त के पहले महीने में चीन ने मिसाइल परीक्षण, बड़े पैमाने पर वायु और समुद्री क्षेत्रों में सैन्य अभ्यास, साइबर हमले, गलत सूचनाओं को फैलाना और ताइवान के पर आर्थिक दबाव बनाने जैसी गतिविधियों को अंजाम दिया. अगर आप इन सभी को एक साथ रखकर देखें तो यह भविष्य में ताइवान पर उनके आक्रमण की नीतियों का हिस्सा है.”

बिगड़ता अमेरिकी संतुलन

ताइवान विशेषज्ञ कॉनली टाइलर मानती हैं कि अमेरिका की नीति में अस्पष्टता एक तरह का संतुलन बनाए हुए है जो लगातार कमजोर पड़ रहा है. उन्होंने कहा, "अगर चीन ताइवान पर हमला कर देता है तो अमेरिका क्या करेगा, इस बारे में उसकी नीति अस्पष्टता बनाए रखने की रही है. इसके पीछे मकसद यह है कि ताइवान आजादी घोषित करने का लोभ ना करे क्योंकि वह भी इस बात को लेकर निश्चित नहीं है कि अमेरिका उसका कितना साथ देगा. भ्रम की इस स्थिति के जरिए अमेरिका चीन को भी आक्रामक होने से रोके रखता है. लेकिन मुझे लगता है कि स्थित लगातार अस्थिर होती जा रही है.”

रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण करने के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय में यह डर बढ़ा है किचीन भी ताइवान में ऐसी ही कार्रवाई कर सकता है. हालांकि टाइलर कहती हैं कि यूक्रेन युद्ध का सबसे बड़ा असर शायद यह हुआ है कि समायोजित अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों की संभावनाओं का पता चला है. वह कहती हैं, "यह ऐसी चीज है जिससे चीन को चिंता होगी क्योंकि आर्थिक विकास उसकी स्थिरता के लिए लगातार अहम होता जा रहा है. जैसे-जैसे चीन की सैन्य क्षमता बढ़ी है, यह संभव है कि आर्थिक प्रतिबंध और अंतरराष्ट्रीय बैंकिग सिस्टम से उसे काटना भी सैन्य खतरे जैसा ही अहम है.”