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मोदी के फैंस ने क्यों पहनाया केजरीवाल को जीत का सेहरा

श्रेया बहुगुणा
११ फ़रवरी २०२०

दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जीत से एक बात तय हो गई है कि विधानसभा चुनाव में वोटरों ने सिर्फ स्थानीय मुद्दों पर वोट दिया. बीजेपी की कोशिशों के बाद भी शाहीन बाग चुनावी मुद्दा नहीं बन सका.

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Indien Wahlkampagne Arvind Kejriwal
तस्वीर: DW/S. Kumar

दिल्ली के आश्रम में रहने वाली गायत्री के परिवार में चुनावी मौसम आते ही पार्टी के झंडे बदल जाते हैं. लोकसभा चुनाव में बीजेपी का झंडा होता है और विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी का. गायत्री सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं. उनके परिवार में उनकी मां के अलावा सभी नौकरीपेशा हैं. गायत्री के मुताबिक उनके दादा जी के समय तक सभी लोग कांग्रेस को वोट देते थे लेकिन 2014 में मोदी की लहर में वह भी बीजेपी वाले हो गए. वह खुद को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की फैन बताती हैं. गायत्री के मुताबिक जब तक मोदी के नेतृत्व में बीजेपी लोकसभा चुनाव लड़ेगी वह बीजेपी को ही वोट देंगी लेकिन फिर विधानसभा चुनाव में कैसे बीजेपी की फैन आम आदमी पार्टी की हो गई. गायत्री हंसते हुए कहती हैं, "केंद्र में मोदी और दिल्ली के लिए केजरीवाल." उनके मुताबिक, "मोदी तो दिल्ली के मुख्यमंत्री हो नहीं सकते. बीजेपी के पास मुख्यमंत्री का कोई दमदार चेहरा भी नहीं है. केजरीवाल ने बयान दिए बिना स्कूलों और अस्पतालों की शक्ल बदल दी." वो कहती हैं हमारे परिवार में किसी को मुफ्त चीजें नहीं चाहिए लेकिन बिजली और पानी सस्ता मिल जाए तो किसको अच्छा नहीं लगता.

Indien AAP gewinnt Wahlen in Delhi
तस्वीर: DW/A. Ansari

दिल्ली के गढ़ी गांव में रहती हैं सुनीता. 10 साल पहले उनके पति की मौत के बाद तीन बच्चों की जिम्मेदारी उन्हीं पर आ गई. वह लोगों के घर काम कर अपने परिवार को पालती हैं. वह हर महीने 12 हजार रुपये कमा लेती हैं. सुनीता को जब डीडब्ल्यू हिंदी ने फोन किया तो वह किसी के घर में काम कर रही थीं. फोन पर वह उत्सुकता के साथ पूछती हैं दिल्ली में झाडू आ गया या नहीं. झाडू आम आदमी पार्टी का चुनाव चिन्ह है. केजरीवाल की जीत पर वह खुश हैं. वह कहती हैं चलो मेरी बच्ची की पढ़ाई नहीं रुकेगी. उनकी 13 साल की बेटी सपना सरकारी स्कूल में पढ़ती है. सुनीता के मुताबिक केजरीवाल सरकार आने के बाद से उनकी बेटी के स्कूल के हाताल बदल गए हैं. अब हर महीने उन्हें भी स्कूल बुलाया जाता है और सपना पढ़ाई में कैसा कर रही है उनको भी बताया जाता है. वह कहती हैं, "मैं भी प्राइवेट स्कूल की तरह ही सपना के स्कूल जाती हूं. जहां हमें काम वाली बाई के तौर पर नहीं सपना की मम्मी के तौर पर जाना जाता है." वह कहती हैं कि देश के लिए जितने जरूरी मोदी हैं, दिल्ली वालों के लिए केजरीवाल हैं. सुनीता के घर की शाहीन बाग से दूरी महज सात किलोमीटर है लेकिन वह नहीं जानती वहां क्या हो रहा है. वह कहती हैं, "मैं अब बिजली का बिल नहीं देती, मैं पानी का बिल नहीं देती. बिल से बचा पैसा मैंने अपने बच्चों के लिए जमा करना शुरू कर दिया है."

देश की राजधानी दिल्ली में सुनीता और गायत्री जैसे कई वोटर हैं जिन्होंने आम आदमी पार्टी को उसके काम के लिए वोट दिया है और परिणाम देश के सामने है. इन्हीं लोगों ने 10 महीने पहले दिल्ली में लोकसभा चुनावों में बीजेपी के सातों सांसदों को जिताया था. इनमें से कई लोग मोदी के फैन हैं जिन्होंने केजरीवाल को दिल्ली के लिए चुना.

Indien Wahlkampagne Arvind Kejriwal
तस्वीर: DW/S. Kumar

दिल्ली में बचत लेकर आए केजरीवाल

वरिष्ठ पत्रकार प्रभात शुंगलु बताते हैं, "केजरीवाल ने लोगों के घरों का बजट कम कर दिया है. बढ़ती मंहगाई में भी दिल्ली के लोग केजरीवाल की बदौलत बचत कर पा रहे हैं." बीजेपी की हार पर शुंगलु कहते हैं कि बीजेपी 21 साल से यहां की सत्ता से दूर रही. बीजेपी के पास केजरीवाल से लड़ने के लिए स्थानीय मुद्दे तक नहीं थे. बीजेपी केजरीवाल के मुकाबले दिल्ली में अपना मुख्यमंत्री का चेहरा तक पेश नहीं कर पाई. शुंगलु के मुताबिक, "केजरीवाल अपने किए वादे पर खरे उतरे जिसको दिल्ली की जनता ने देखा."

बीजेपी की दिल्ली में हार के कई कारण हैं. सबसे प्रमुख है, बीजेपी का स्थानीय मुद्दों पर ध्यान ना देना. वो केजरीवाल के कामकाज की काट नहीं खोज पाए. बीजेपी ने ध्रुवीकरण वाले मुद्दों पर ही सारा प्रचार किया. बीजेपी के सांसदो का गैर जरूरी बयान देना. आम आदमी पार्टी ने जहां चुनाव की तारीख से बहुत पहले पार्टी के उम्मीदवारों के नामों का एलान कर दिया था तो वहीं बीजेपी ने चुनाव प्रचार में बहुत देर कर दी. दिल्ली बीजेपी के संगठन में मजबूती ना होना. बीजेपी में आतंरिक कलह भी हार की वजह बनी. बीजेपी नेता बिजेन्द्र गुप्ता, विजय गोयल, मनोज तिवारी और बाकी सांसदों का अलग तरीके से चुनाव प्रचार करना.

Indien Neu Delhi wählt neues Parlament - Modis Partei mit geringen Chancen
तस्वीर: AFP/S. Hussain

आम आदमी पार्टी ने पांच साल राज करने के बाद भी इस बार चुनाव में फिर अच्छा प्रदर्शन किया है. पिछली बार जहां वह 70 सीटों में 67 सीटों पर जीती थी तो इस बार भी आंकड़ा 60 के पार चला गया है. वहीं बीजेपी के सभी सितारों को प्रचार में उतारने के बावजूद वह दहाई के आंकड़े तक भी नहीं पहुंच पाई. शुंगलु कहते हैं कि बीजेपी को शाहीन बाग का मुद्दा उठाने का कोई फायदा नहीं हुआ. पिछली बार की तुलना में बीजेपी की सीटें बढ़ी हैं लेकिन इतनी नहीं कि वो सरकार बना ले या फिर विधानसभा में मजबूत विपक्ष बन सके. केजरीवाल की मुफ्त योजनाओं ने वोटरों को लुभाने का काम किया है. शाहीन बाग में केजरीवाल के विधायक अमानतुल्लाह खान तो नजर आए लेकिन केजरीवाल ने इस मुद्दे का कहीं भी जिक्र नहीं किया. हर रैली में उन्होंने सिर्फ सरकार के काम गिनाए. केजरीवाल की यही रणनीति काम आई. हिंदू वोटर भी नाराज नहीं हुए और केजरीवाल कांग्रेस के मुस्लिम वोटरों को अपनी तरफ करने में कामयाब भी रहे. केजरीवाल सरकार की सफलता ही समझ लीजिए कि उनकी तर्ज पर पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र भी मुफ्त योजनाएं लेकर आ रहा है.

बीजेपी में मंथन की जरूरत

Indien Premierminister Narendra Modi
तस्वीर: Ians

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी लोकसभा चुनावों के बाद से बीजेपी की आक्रामक राजनीति का सामना कर रही हैं. केजरीवाल अपनी योजनाओं को मुफ्तखोरी नहीं मानते बल्कि इसे जनता का पैसा जनता को ही देना कहते हैं. क्या दिल्ली के चुनाव नतीजों का असर इस साल होने वाले बिहार चुनावों पर भी पड़ेगा. क्या इन चुनावों की चमक धमक बिहार में देखने को मिलेगी. इस पर पत्रकार शुंगलु कहते हैं, इन चुनाव नतीजों ने नीतीश कुमार को बिहार में चुनाव प्रचार अपने तरीके से करने का मौका दे दिया है. अब बिहार में बीजेपी कुमार के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेगी. आम आदमी पार्टी की जीत के बाद विपक्षी दलों के नेताओं के चेहरे पर भी बड़ी मुस्कान आ गई है. कयास लग रहे हैं कि विपक्षी पार्टियां आने वाले चुनाव में एक साथ आ सकती हैं. इस जीत के बाद केजरीवाल की राष्ट्रीय छवि भी ज्यादा बड़ी हो गई है.

बीजेपी के लिए यह हार सबक है. बीजेपी ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ शाहीन बाग आंदोलन को प्रतिष्ठा का विषय बना दिया और चुनाव प्रचार इसके इर्द गिर्द ही किया. अब बीजेपी के बड़े नेताओं को इसकी गर्मी भी देखनी होगी. बीजेपी ने अपने सारे संसाधन इसी मुद्दे पर झोंक दिए. खुद गृह मंत्री अमित शाह ने इसी मुद्दे पर दिल्ली में घर-घर जाकर पर्चे बांटे. पत्रकार प्रभात शुंगलु कहते हैं, "बीजेपी को समझना होगा कि विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव के विषय और तर्ज अलग होती है."

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