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इतिहास

आखिर नया साल 1 जनवरी से ही क्यों शुरू माना जाता है?

ऋषभ कुमार शर्मा
३१ दिसम्बर २०१९

दुनिया के अधिकतर देश 1 जनवरी से नया साल मनाते हैं. लेकिन पहले 25 मार्च से नया साल शुरू होता था. इस नए साल को 1 जनवरी से मानने के पीछे हजारों साल पुरानी एक कहानी है. जानिए क्यों नए साल को 1 जनवरी से माना जाने लगा.

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Australien l Silvester Neujahr 2019/2020 - Feuerwerk an der Sydney Opera
तस्वीर: Getty Images/J. Gourley

यूरोप और दुनिया के अधिकतर देशों में नया साल 1 जनवरी से शुरू माना जाता है. लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था. और अभी भी दुनिया के सारे देशों में 1 जनवरी से नए साल की शुरुआत नहीं मानी जाती है. 500 साल पहले तक अधिकतर ईसाई बाहुल्य देशों में 25 मार्च और 25 दिसंबर को नया साल मनाया जाता है. 1 जनवरी से नया साल मनाने की शुरुआत पहली बार 45 ईसा पूर्व रोमन राजा जूलियस सीजर ने की थी. रोमन साम्राज्य में कैलेंडर का चलन रहा था.

पृथ्वी और सूर्य की गणना के आधार पर रोमन राजा नूमा पोंपिलुस ने एक नया कैलेंडर लागू किया. यह कैलेंडर 10 महीने का था क्योंकि तब एक साल को लगभग 310 दिनों का माना जाता था. तब एक सप्ताह भी आठ दिनों का माना जाता था. नूमा ने मार्च की जगह जनवरी को साल का पहला महीना माना. जनवरी नाम रोमन देवता जैनुस के नाम पर है. जैनुस रोमन साम्राज्य में शुरुआत का देवता माना जाता था जिसके दो मुंह हुआ करते थे. आगे वाले मुंह को आगे की शुरुआत और पीछे वाले मुंह को पीछे का अंत माना जाता था. मार्च को पहला महीना रोमन देवता मार्स के नाम पर माना गया था. लेकिन मार्स युद्ध का देवता था. नूमा ने युद्ध की जगह शुरुआत के देवता के महीने से साल की शुरुआत करने की योजना की. हालांकि 153 ईसा पूर्व तक 1 जनवरी को आधिकारिक रूप से नए साल का पहला दिन घोषित नहीं किया गया.

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साल 2020 की शुरुआत का जश्न मनाते बच्चे.तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Solanki

46 ईसा पूर्व रोम के शासक जूलियस सीजर ने नई गणनाओं के आधार पर एक नया कैलेंडर जारी किया. इस कैलेंडर में 12 महीने थे. जूलियस सीजर ने खगोलविदों के साथ गणना कर पाया कि पृथ्वी को सूर्य के चक्कर लगाने में 365 दिन और छह घंटे लगते हैं. इसलिए सीजर ने रोमन कैलेंडर को 310 से बढ़ाकर 365 दिन का कर दिया. साथ ही सीजर ने हर चार साल बाद फरवरी के महीने को 29 दिन का किया जिससे हर चार साल में बढ़ने वाला एक दिन भी एडजस्ट हो सके.

साल 45 ईसा पूर्व की शरुआत 1 जनवरी से की गई. साल 44 ईसा पूर्व में जूलियस सीजर की हत्या कर दी गई. उनके सम्मान में साल के सातवें महीने क्विनटिलिस का नाम जुलाई कर दिया गया. ऐसी ही आठवें महीने का नाम सेक्सटिलिस का नाम अगस्त कर दिया गया. 10 महीने वाले साल में अगस्त छठवां महीना होता था. रोमन साम्राज्य जहां तक फैला हुआ था वहां नया साल एक जनवरी से माना जाने लगा. इस कैलेंडर का नाम जूलियन कैलेंडर था.

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तस्वीर: Colourbox

पांचवी शताब्दी आते आते रोमन साम्राज्य का पतन हो गया था. यूं तो 1453 में ओटोमन साम्राज्य द्वारा पूरे साम्राज्य के राज को खत्म करने तक रोमन साम्राज्य चलता रहा लेकिन पांचवी शताब्दी तक रोमन साम्राज्य बेहद सीमित हो गया. रोमन साम्राज्य जितना सीमित हुआ ईसाई धर्म का प्रसार उतना बढ़ता गया. ईसाई धर्म के लोग 25 मार्च या 25 दिसंबर से अपना नया साल मनाना चाहते थे.

ईसाई मान्यताओं के अनुसार 25 मार्च को एक विशेष दूत गैबरियल ने ईसा मसीह की मां मैरी को संदेश दिया था कि उन्हें ईश्वर के अवतार ईसा मसीह को जन्म देना है. 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्म हुआ था. इसलिए ईसाई लोग इन दो तारीखों में से किसी दिन नया साल मनाना चाहते थे. 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाया जाता है इसलिए अधिकतर का मत 25 मार्च को नया साल मनाने का था.

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तस्वीर: Imago Images/imagebroker/Bahnmüller

लेकिन जूलियन कैलेंडर में की गई समय की गणना में थोड़ी खामी थी. सेंट बीड नाम के एक धर्माचार्य ने आठवीं शताब्दी में बताया कि एक साल में 365 दिन 6 घंटे ना होकर  365 दिन 5 घंटे 48 मिनट 46 सेकंड होते हैं. 13वीं शताब्दी में रोजर बीकन ने इस थ्योरी को स्थापित किया. इस थ्योरी से एक परेशानी हुई कि जूलियन कैलेंडर के हिसाब से हर साल 11 मिनट 14 सेकंड ज्यादा गिने जा रहे थे. इससे हर 400 साल में समय 3 दिन पीछे हो रहा था. ऐसे में 16वीं सदी आते-आते समय लगभग 10 दिन पीछे हो चुका था. समय को फिर से नियत समय पर लाने के लिए रोमन चर्च के पोप ग्रेगरी 13वें ने इस पर काम किया.

1580 के दशक में ग्रेगरी 13वें ने एक ज्योतिषी एलाय सियस लिलियस के साथ एक नए कैलेंडर पर काम करना शुरू किया. इस कैलेंडर के लिए साल 1582 की गणनाएं की गईं. इसके लिए आधार 325 ईस्वी में हुए नाइस धर्म सम्मेलन के समय की गणना की गई. इससे पता चला कि 1582 और 325 में 10 दिन का अंतर आ चुका था. ग्रेगरी और लिलियस ने 1582 के कैलेंडर में 10 दिन बढ़ा दिए. साल 1582 में 5 अक्टूबर से सीधे 15 अक्टूबर की तारीख रखी गई.

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तस्वीर: picture alliance/akg-images

साथ ही लीप ईयर के लिए नियम बदला गया. अब लीप ईयर उन्हें कहा जाएगा जिनमें 4 या 400 से भाग दिया जा सकता है. सामान्य सालों में 4 का भाग जाना आवश्यक है. वहीं शताब्दी वर्ष में 4 और 400 दोनों का भाग जाना आवश्यक है. ऐसा इसलिए है क्योंकि लीप ईयर का एक दिन पूरा एक दिन नहीं होता है. उसमें 24 घंटे से लगभग 46 मिनट कम होते हैं. जिससे 300 साल तक हर शताब्दी वर्ष में एक बार लीप ईयर ना मने और समय लगभग बराबर रहे. लेकिन 400वें साल में लीप ईयर आता है और गणना ठीक बनी रहती है. जैसे साल 1900 में 400 का भाग नहीं जाता इसलिए वो 4 से विभाजित होने के बावजूद लीप ईयर नहीं था. जबकि साल 2000 लीप ईयर था. इस कैलेंडर का नाम ग्रेगोरियन कैलेंडर है. इस कैलेंडर में नए साल की शुरुआत 1 जनवरी से होती है. इसलिए नया साल 1 जनवरी से मनाया जाने लगा है.

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तस्वीर: Fotolia/Maxim_Kazmin

इस कैलेंडर को भी स्थापित होने में समय लगा. इसे इटली, फ्रांस, स्पेन और पुर्तगाल ने 1582 में ही अपना लिया था. जबकि जर्मनी के कैथोलिक राज्यों, स्विट्जरलैंड, हॉलैंड ने 1583, पोलैंड ने 1586, हंगरी ने 1587, जर्मनी और नीदरलैंड के प्रोटेस्टेंट प्रदेश और डेनमार्क ने 1700,  ब्रिटिश साम्राज्य ने 1752, चीन ने 1912, रूस ने 1917 और जापान ने 1972 में इस कैलेंडर को अपनाया.

सन 1752 में भारत पर भी ब्रिटेन का राज था. इसलिए भारत ने भी इस कैलेंडर को 1752 में ही अपनाया था. ग्रेगोरियन कैलेंडर को अंग्रेजी कैलेंडर भी कहा जाता है. हालांकि अंग्रेजों ने ग्रेगोरियन कैलेंडर को 150 सालों से भी ज्यादा समय तक अपनाया नहीं था. भारत में लगभग हर राज्य का अपना एक नया साल होता है. मराठी गुडी पड़वा पर तो गुजराती दीवाली पर नया साल मनाते हैं. हिंदू कैलेंडर में  चैत्र महीने की पहली तारीख यानि चैत्र प्रतिपदा को नया साल मनाया जाता है. ये मार्च के आखिर या अप्रैल की शुरुआत में होती है. इथोपिया में सितंबर में नया साल मनाया जाता है. चीन में अपने कैलेंडर के हिसाब से भी अलग दिन नया साल मनाया जाता है.

Australien l Silvester Neujahr 2019/2020 - Feuerwerk in Melbourne
तस्वीर: Getty Images/A. Ratnayake

लेकिन ग्रेगरी के कैलेंडर के साथ भी एक समस्या है. इस कैलेंडर में 11 मिनट का उपाय तो हर चार में से तीन शताब्दी वर्षों को लीप ईयर ना मानकर कर लिया. लेकिन 14 सेकंड का फासला अभी भी हर साल है. इसी के चलते साल 5000 आते-आते फिर से कैलेंडर में एक दिन का अंतर पैदा हो जाएगा. हो सकता है तब इस कैलेंडर की जगह समय गणना की कोई नई प्रणाली आए जो इस गणना को ठीक करे. लेकिन तब तक हम 1 जनवरी से नए साल की शुरुआत की उम्मीद कर सकते हैं.

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