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पूर्वोत्तर में लगातार दबाव क्यों बढ़ा रहा है चीन ?

प्रभाकर मणि तिवारी
१३ दिसम्बर २०२२

दो साल पहले गलवान घाटी में हुए हिंसक संघर्ष के बाद चीन ने अब पूर्वोत्तर में अरुणाचल से लगी तिब्बत की सीमा पर ध्यान केंद्रित करते हुए सीमावर्ती इलाके में अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं.

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Indisch-chinesische Grenze in Arunachal Pradesh
तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

चीन की ओर से पहले भी सीमावर्ती इलाके में बड़े पैमाने पर सड़कों, रेल लाइन, गांवों और दूसरे आधारभूत ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं की खबरें अक्सर सामने आती रही हैं. हाल के समय में इस सीमा पर हिंसक संघर्ष का यह अपनी तरह का पहला मामला है.इससे कुछ महीने पहले भी चीनी सेना के करीब दो सौ जवान तवांग सेक्टर में भारतीय सीमा में घुस आए थे. वहां भारतीय जवानों के साथ उनकी हाथापाई भी हुई. बाद में स्थानीय कमांडरों के स्तर पर मामला सुलझा लिया गया और चीनी जवानों को वापस भेज दिया गया.

चीन की गतिविधियां

चीन ने सीमा से 20 किलोमीटर के दायरे में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य किया है. तिब्बत की राजधानी ल्हासा से करीब सीमा तक नई तेज गति की ट्रेन भी शुरू हो गई है. हाल में ऐसी खबरें भी सामने आई थीं कि उसने भारतीय सीमा में एक गांव तक बसा लिया है. सेटेलाइट तस्वीरों से इसकी पुष्टि हुई थी. इलाके में चीनी सेना की बढ़ती गतिविधियों से स्थानीय लोग बेहद चिंतित हैं. उनका कहना है कि चीन की ओर से नियंत्रण रेखा के पास जिस तेजी से सड़क और दूसरे बुनियादी निर्माण कार्य हो रहे हैं, वह चिंताजनक है.

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कुछ महीने पहले ऐसी खबरें भी सामने आई थी कि चीनी सेना अरुणाचल के सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले भारतीय युवाओं को भर्ती करने का प्रयास कर रहा है. उसके बाद मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने केंद्र से सीमावर्ती इलाकों में आधारभूत परियोजनाओं का काम तेज करने का अनुरोध किया था ताकि बेरोजगारी और कनेक्टिविटी जैसी समस्याओं पर अंकुश लगाया जा सके.

पूर्वोत्तर भारत में चीन की बढ़ती गतिविधियां
सीमा रेखा के दोनों तरफ बुनियादी ढांचे का विकास तेजी से हो रहा हैतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

कांग्रेस के पूर्व सांसद और फिलहाल पासीघाट के विधायक निनोंग ईरिंग ने दावा किया था कि चीन सरकार अपनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) में अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों के युवकों की भी भर्ती करने का प्रयास कर रही है. साथ ही राज्य से सटे तिब्बत के इलाकों से भी भर्तियां की जा रही हैं. उन्होंने संसद में भी यह मामला उठाया था.

बढ़ती सक्रियता

चीन बीते कुछ साल से सीमा पर अपने बुनियादी ढांचे को लगातार मजबूत करता रहा है. उसने सीमा से 20 किलोमीटर के दायरे में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य किया है. उसने हवाई, रेल और सड़क नेटवर्क का विस्तार करने के साथ ही तिब्बत में बुलेट ट्रेन भी चला दी है. यह ट्रेन अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती कस्बे निंग्ची तक जाती है. भारत और चीन के बीच सीमा विवाद वास्तविक नियंत्रण रेखा पर 3,488 किलोमीटर लंबे इलाके में है.

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अरुणाचल के स्थानीय नेता चीन पर लगातार नियंत्रण रेखा पार कर भारतीय सीमा में प्रवेश करने के आरोप लगाते रहे हैं. इससे पहले चीनी सेना ने पांच भारतीय युवकों का अपहरण भी कर लिया था. उनको राजनयिक स्तर की बातचीत के 12 दिनों बाद रिहा किया गया. सरकारी अधिकारियों का कहना है कि बीते एक साल के दौरान चीनी सैनिकों के सीमा पार करने की कई घटनाओं की सूचना मिली है. लेकिन वह इलाका इतना दुर्गम है कि हर जगह सेना की तैनाती संभव नहीं है और सूचनाएं भी देरी से राजधानी तक पहुंचती हैं.

 तवांग का महत्व

आखिर अरुणाचल प्रदेश और खासकर तवांग इलाके में चीन की बढ़ती गतिविधियों की वजह क्या है? चीन वैसे तो पूरे अरुणाचल को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा मानता है, लेकिन तवांग का सामरिक रूप से खासा महत्व  है. राजधानी ईटानगर से करीब 450 किलोमीटर दूर स्थित तवांग अरुणाचल प्रदेश का सबसे पश्चिमी जिला है. इसकी सीमा तिब्बत के साथ भूटान से भी लगी है. तवांग में तिब्बत की राजधानी ल्हासा के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तिब्बती बौद्ध मठ है. तिब्बती बौद्ध केंद्र के इस आखिरी सबसे बड़े केंद्र को चीन लंबे अरसे से नष्ट करना चाहता है. वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान भी तवांग ही लड़ाई का केंद्र था.

पूर्व विदेश सचिव शिवशंकर मेनन ने अपनी किताब 'चॉइस इनसाइड द मेकिंग ऑफ़ इंडियाज फॉरन पॉलिसी' में बताया है कि बीजिंग ने लंबे समय से यह साफ कर दिया है कि वह तवांग को चाहता है. हालांकि भारत सरकार बीजिंग की इस मांग का लगातार विरोध करती रही है.

पूर्वोत्तर भारत में चीन की बढ़ती सक्रियता
चीन अरुणाचल प्रदेश के हिस्सों को तिब्बत का बताते हुए उस पर दावा करता हैतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

बीते साल दिसंबर महीने में चीन ने अरुणाचल प्रदेश के 15 स्थानों के लिए चीनी, तिब्बती और रोमन में नामकरण भी कर दिया था. तब भारतीय विदेश मंत्रालय ने उसके फैसले पर सख्त आपत्ति जताई थी और कहा था कि अरुणाचल प्रदेश हमेशा से भारत का अभिन्न अंग रहा है और आगे भी रहेगा.

दरअसल, तिब्बत और भारत के बीच 1912 तक कोई स्पष्ट सीमा रेखा नहीं खींची गई थी. इन इलाकों पर मुगलों या ब्रिटिश शासकों का कोई नियंत्रण नहीं थी. तवांग में बौद्ध मंदिर मिलने के बाद सीमा रेखा का आकलन शुरू हुआ.

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अरुणाचल प्रदेश के बीजेपी सांसद तापिर गाओ की दलील है कि यह समस्या केंद्र की पूर्व कांग्रेस सरकार की देन है. चीन सीमावर्ती इलाकों में अस्सी के दशक से ही सड़कें बना रहा है. राजीव गांधी सरकार के कार्यकाल में ही चीन ने तवांग में सुमदोरोंग चू घाटी पर कब्जा किया था. सरकार ने सीमा तक सड़क बनाने पर कोई ध्यान नहीं दिया. नतीजतन तीन-चार किलोमीटर का इलाका बफर जोन बन गया जिस पर बाद में चीन ने कब्जा कर लिया.

इस इलाके में भारत जहां मैकमोहन लाइन को सीमा मानता है वहीं चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को. बीजेपी सांसद गाओ कहते हैं, "राज्य से सटी सीमा को सही तरीके से चिन्हित करना ही इस समस्या का एकमात्र और स्थायी समाधान है.” सामरिक विशेषज्ञ जीवन दासगुप्ता कहते हैं, "केंद्र सरकार को इस समस्या को गंभीरता से लेकर इसके स्थायी समाधान की दिशा में ठोस पहल करनी चाहिए ताकि चीन के मंसूबों से समय रहते निपटा जा सके. साथ ही सीमावर्ती इलाकों में विकास और आधारभूत परियोजनाओं को शीघ्र लागू करना भी जरूरी है.”

भारत सरकार की कोशिशें

सीमा पर चीन की बढ़ती सक्रियता से निपटने के लिए भारत सरकार भी अरुणाचल प्रदेश में अपने बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में जुटी है. इसमें हर मौसम में सीमावर्ती क्षेत्रों तक आवाजाही आसान बनाने वाली नई सुरंगों के अलावा नई सड़कों का निर्माण, पुल, हेलीकॉप्टर बेस और गोला-बारूद के लिए भूमिगत भंडारण वाले ठिकाने तैयार करना शामिल है.

पूर्वोत्तर में चीन की बढ़ती गतिविधियां
अरुणाचल प्रदेश में भारत सरकार ने बुनियादी ढांचे के विकास पर जोर दिया हैतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

सेना का कहना है कि पहाड़ी इलाके और जंगल होने की वजह से निगरानी और ठिकाने पर कड़ी नजर रखना मुश्किल हो जाता है. इसलिए एलएसी के साथ बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का विकास किया जा रहा है. सीमावर्ती इलाकों में बुनियादी ढांचा मजबूत करने की इसी कवायद के तहत सेना ने भारतीय सेना ने चीन की सीमा के पास अरुणाचल प्रदेश में एक 'मॉडल गांव' भी बसाया है. चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत के आखिरी गांव कहो, जो अरुणाचल प्रदेश के अंजॉव जिले में है, को सेना की ओर से उसे सेना एक 'मॉडल गांव' के रूप में विकसित किया गया है. इस गांव में फिलहाल 79 लोग रहते हैं.

सरकार ने  इलाके की आधारभूत परियोजनाओं के लिए इस साल  249.12 करोड़ की रकम आवंटित की है जबकि बीते साल यह महज 42.87 करोड़ थी.

चीनी चुनौती से निपटने के लिए सीमावर्ती इलाकों में तैनात सेना के जवानो की तादाद बढ़ाने के साथ ही बोफोर्स जैसी आधुनिक तोपें भी तैनात की गई हैं. इसके साथ ही 700 करोड़ रुपए की अति महत्वपूर्ण सेला सुरंग परियोजना को अगले साल प्रस्तावित समयसीमा से पहले जून में ही पूरा करने की तैयारी है. इससे तवांग और उससे सटे सीमावर्ती इलाकों में साल के बारह महीने बेरोकटोक यातायात संभव होगा. फिलहाल सेला दर्रा सर्दियों में भारी बर्फबारी और खराब मौसम के कारण बंद हो जाता है.

इससे सैन्य उपकरणों को सीमावर्ती इलाकों में पहुंचाने में लगने वाला समय बचेगा. परंपरागत रूप से लद्दाख में 832 किलोमीटर लंबी एलएसी की निगरानी 14वीं कोर की एक डिवीजन करती है. लेकिन पूर्वी कमान में 1,346 किलोमीटर लंबी एलएसी की सुरक्षा की जिम्मेदारी इस क्षेत्र में दो कोर की छह डिवीजनों को सौंपी गई है.

इसके साथ ही चीनी गतिविधियों से निपटने के लिए भारतीय सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तैनात रहने वाले अपने जवानों और अधिकारियों को तिब्बतोलॉजी का प्रशिक्षण दे रही है ताकि उनमें तिब्बती संस्कृति, लोगों, रहन-सहन और समाज की बेहतर समझ पैदा हो. इसके लिए देश भर के सात संस्थानों को चुना गया है. इनमें से एक सिक्किम में है और दूसरा अरुणाचल प्रदेश में. यह दोनों राज्य तिब्बत की सीमा से लगे हैं. वहां सीमा के दोनों ओर भारी तादाद में तिब्बती आबादी है.