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कारोबारभारत

दार्जिलिंग के चाय बागान बिक गए तो मजदूरों का क्या होगा?

प्रभाकर मणि तिवारी
१५ सितम्बर २०२२

दार्जिलिंग चाय अपने स्वाद और सुगंध के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. लेकिन अब विभिन्न वजहों से पर्वतीय इलाके के 87 में से करीब आधे बागान मालिक इनको बेचने के लिए खरीददार तलाश रहे हैं.

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दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी में हैं कई चाय बागान
दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी में हैं कई चाय बागानतस्वीर: Satyajit Shaw/DW

इलाके का चाय उद्योग लंबे अरसे से विभिन्न समस्याओं से जूझ रहा है. कोरोना के दौरान लंबे समय तक जारी लॉकडाउन ने हालात और बदतर बना दिए. नतीजतन एक ओर जहां वह निर्यात के मामले में लगातार पिछड़ रहा है वहीं उसे नेपाल में पैदा होने वाली चाय से भी कड़ी चुनौती मिल रही है.

कई रियल इस्टेट कंपनियां इन बागानों को खरीदने में दिलचस्पी दिखा रही हैं. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि इन बागानों की बिक्री की स्थिति में वहां काम करने वाले हजारों मजदूरों का क्या होगा? फिलहाल इस सवाल का किसी के पास कोई जवाब नहीं है. दार्जिलिंग के चाय उद्योग से 67 हजार लोगों को प्रत्यक्ष और करीब चार लाख लोगों को परोक्ष तौर पर रोजगार मिला है.

यूरोप में आर्थिक मंदी का असर

दार्जिलिंग दुनिया की अकेली ऐसी जगह है जहां चाय की पत्तियां साल में चार बार तोड़ी जाती हैं. इसकी शुरुआत फर्स्ट फ्लश से होती है जो सबसे बेहतर चाय है. इसका ज्यादातर हिस्सा निर्यात होता है. हर फ्लश की चाय की गुणवत्ता और स्वाद एक-दूसरे अलग और अनूठा होता है.

यह उद्योग वैसे तो लंबे समय से विभिन्न समस्याओं से जूझ रहा है. लेकिन यूरोप और जापान के अंतरराष्ट्रीय आयातकों के हाथ खींचने और उत्पादन लागत में वृद्धि के कारण बागान प्रबंधन के लिए सुचारू रूप से बागानों का संचालन मुश्किल हो गया है. इस उद्योग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि नकदी की कमी, बढ़ती मजदूरी और चाय की घटती कीमत ने उनको खरीददार तलाशने पर मजबूर कर दिया है.

दो सौ साल पहले ब्रिटिश शासकों ने हिमालयी इलाके में ऐसे कई चाय बागान बनाए
दो सौ साल पहले ब्रिटिश शासकों ने हिमालयी इलाके में ऐसे कई चाय बागान बनाएतस्वीर: Satyajit Shaw/DW

यूरोप में आर्थिक मंदी के कारण अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले दबाव के कारण खरीददारों ने इस प्रीमियम चाय से दूरी बना ली है. यूरोप में इस चाय का सबसे ज्यादा निर्यात किया जाता था. इसी तरह वर्ष 2017 में अलग राज्य की मांग में होने वाले आंदोलन के कारण करीब चार महीने तक बागानों में काम बंद रहने और अनियमित सप्लाई के बाद जापानी खरीददारों ने भी हाथ खींच लिए. वे पहले 10 लाख किलो चाय खरीदते थे.

गिरती मांग और मौसम की मार 

दार्जिलिंग के एक बागान मालिक औऱ इंडियन टी एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अंशुमान कानोड़िया कहते हैं, "दार्जिलिंग चाय उद्योग गहरे आर्थिक संकट से गुजर रहा है. करीब 40-50 फीसदी बागान खरीददार तलाश रहे हैं, उचित कीमत मिलते ही प्रबंधन उन बागानों को बेच देगा. उनके लिए बागान चलाना अब घाटे का सौदा हो गया है.”

एक दशक पहले तक दार्जिलिंग चाय उद्योग में लगभग 11 मिलियन किलो चाय पैदा होती थी जो वर्ष 2021 में घट कर 6.7 मिलियन किलो रह गई. लेकिन उत्पादन में गिरावट के बावजूद घरेलू या विदेशी बाजारों में इस चाय की मांग में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं आई है. दार्जिलिंग टी एसोसिएशन के प्रमुख सलाहकार संदीप मुखर्जी कहते हैं, "मौजूदा परिस्थिति में यह उद्योग 55 हजार स्थायी मजदूरों का खर्च उठाने में सक्षम नहीं है. इनके अलावा करीब 12 हजार अस्थायी मजदूर भी इस उद्योग से जुड़े हैं.”

पड़ोसी नेपाल से पेश आती चुनौती

मुखर्जी बताते हैं कि निर्यात में गिरावट, चाय की घटती मांग, उत्पादन लागत में वृद्धि और चाय की फसलों पर जलवायु परिवर्तन के असर जैसी वजहें ही आर्थिक संकट के लिए जिम्मेदार हैं. इसके अलावा नेपाल से भारी तादाद में आने वाली चाय ने भी दार्जिलिंग चाय उद्योग को भारी नुकसान पहुंचाया है. नेपाल की चाय पर एंटी डंपिंग ड्यूटी लगाई जानी चाहिए.

डीटीए का अनुमान है कि वर्ष 2020 के दौरान नेपाल से आने वाली लगभग 90 लाख किलो चाय दार्जिलिंग चाय के नाम पर बेची गई थी. डीटीए के प्रमुख सलाहकार संदीप मुखर्जी कहते हैं, "नेपाल से चाय की आवक इसी तरह जारी रही तो कई बागान बंद हो जाएंगे. इससे हजारों लोगों की रोज-रोटी प्रभावित होगी." नेशनल टी एंड कॉफी डेवलपमेंट बोर्ड, नेपाल के आंकड़ों के मुताबिक, देश (नेपाल) के 157 चाय बागानों में सालाना पैदा होने वाली 2.52 करोड़ किलोग्राम चाय का आधे से ज्यादा हिस्सा भारत को निर्यात कर दिया जाता है.

टी टूरिज्म को बढ़ावा

डीटीए के आंकड़ों के मुताबिक, दार्जिलिंग के चाय उद्योग से 67 हजार लोगों को प्रत्यक्ष और करीब चार लाख लोगों को परोक्ष तौर पर रोजगार मिला है.

अब इन बागानों पर स्थानीय रियल एस्टेट कंपनियों की निगाहें हैं. टी टूरिज्म को बढ़ावा देने की राज्य सरकार की योजना के तहत ऐसे लोग इन बागानों को खरीदने के बाद उसकी 15 फीसदी जमीन पर रिजार्ट बना कर चाय पर्यटन शुरू कर सकते हैं.

तो वैसी स्थिति में इन बागानों की बिक्री के बाद वहां काम करने वाले मजदूरों का क्या होगा? क्या उनकी रोजी-रोटी बची रहेगी? फिलहाल बागान प्रबंधन ने इन सवालों पर चुप्पी साध रखी है. इलाके की सबसे बड़ी पार्टी भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा की मजदूर यूनियन के अध्यक्ष जेबी तामंग कहते हैं, "हम इस मामले पर नजदीकी निगाह रख रहे हैं. बागान चाहे कोई भी चलाए, मजदूरों की आजीविका पर कोई प्रतिकूल असर नहीं होना चाहिए. हम नौकरियों में कटौती स्वीकार नहीं करेंगे. इसके खिलाफ आंदोलन किया जाएगा.”