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विकास करता भारत प्यास कैसे बुझाएगा

पूजा यादव
२३ जून २०२३

भारत के पास दुनिया की सबसे बड़ी आबादी है, लेकिन उसके लिए सिर्फ चार फीसदी पानी उपलब्ध है. क्या भारत अपने जल संसाधन की कद्र कर रहा है.

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लगातार जल संकट से जूझते हैं भारत के कुछ इलाके
तस्वीर: Uzmi Athar/Press Trust of India/AP/picture alliance

गर्मियों की तपिश से जूझने के बाद पूरे भारत मानसून का इंतजार रहता है. मध्य जून से सितंबर तक मानसून भारत को उसकी जरूरत का पूरा पानी दे देता है. मानसून बढ़िया रहे तो ज्यादातर पानी में बाढ़ के रूप में बह जाता है और सावन की बारिश कम हो तो फसलों पर इसका असर दिखता है. जलवायु परिवर्तन के दौर में मानसून और उस पर निर्भर जल संसाधन भी प्रभावित हुए हैं.

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भारत के नीति आयोग के अनुसार, भारत में दुनिया की 18 प्रतिशत आबादी है, जबकि देश के पास सिर्फ 4 प्रतिशत जल संसाधन हैं. नीति आयोग (नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया) की 2018 की रिपोर्ट में कहा गया है, "भारत अपने इतिहास के सबसे बुरे जल संकट से पीड़ित है और लाखों लोगों का जीवन और आजीविका खतरे में हैं. फिलहाल, 60 करोड़ भारतीय गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं और पानी की कमी और उस तक पहुंचने में आने वाली मुश्किल के कारण हर साल लगभग दो लाख लोगों की मौत हो जाती है. 2030 तक, देश की पानी की मांग, उपलब्ध आपूर्ति से दोगुनी होने का अनुमान है, जिससे लाखों लोगों के लिए पानी की गंभीर कमी और देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में करीब 6 प्रतिशत की हानि होने का अनुमान है."

मध्य पर्देश के टिकमगढ़ जिले में एक सूखता तालाब
मध्य पर्देश के टिकमगढ़ जिले में एक सूखता तालाबतस्वीर: SANJAY KANOJIA/AFP/Getty Images

दुनिया की सबसे बड़ी झीलों से गायब हुआ खरबों लीटर पानी

पांचवीं लघु सिंचाई गणना (2013-14) के अनुसार, भारत में लघु सिंचाई गतिविधियों के लिए कुल 2,41,715 तालाबों का उपयोग किया जाता है. एक दशक पहले, 2006 में प्रकाशित रिपोर्ट में देश में कुल 1,03,878 ऐसे तालाबों की सूचना दी गई थी.

केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, भारत में कुल 7,090 जल निकाय अतिक्रमण के कारण खत्म होने का खतरा झेल रहे हैं हालांकि, ग्रामीण भारत में कुल तालाबों की संख्या पर कोई ठोस डाटा नहीं है.

इसके पीछे क्या कारण हैं?

पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, 1.3 अरब से अधिक आबादी वाला देश जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, मानवजनित गतिविधियों, भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों और लोगों के व्यवहार के कारण अपने तालाबों को खो रहा है.

भूजल की कमी प्रमुख कारणों में से एक है और अतिदोहन ने स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव डाला है. पंजाब जैसे कृषि प्रधान राज्य, सिंचाई के लिए ट्यूबवेल के पानी का खूब इस्तेमाल करते हैं, जिससे जल स्तर गिर जाता है.”

सिंचाई के लिए भूजल दोहन में भी सबसे आगे है पंजाब
सिंचाई के लिए भूजल दोहन में भी सबसे आगे है पंजाबतस्वीर: Sunil Kataria/REUTERS

झीलों और तालाबों का महत्व

तालाब और झील या अन्य जल निकाय घरेलू और कृषि उद्देश्यों के लिए जल भंडारण और पानी तक पहुंच उपलब्ध कराने में मदद करते हैं. बांधों से बनी झीलें बिजली पैदा करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.

"पॉन्डमैन ऑफ इंडिया" के नाम से लोकप्रिय रामवीर तंवर ने सात साल पहले पूरे भारत में जल निकायों को फिर से भरने, साफ करने और पुनर्जीवित करने की पहल शुरू की थी. उन्होंने अब तक 42 से अधिक तालाबों को पुनर्जीवित किया है और उनके प्रयासों को संयुक्त राष्ट्र ने भी सराहा है.

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वह ताइवान में शाइनिंग वर्ल्ड प्रोटेक्शन अवार्ड, जल शक्ति मंत्रालय द्वारा वॉटर हीरो अवार्ड, इंडिया आइकॉनिक अवार्ड और ICONGO और संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्थापित रेक्स करमवीर चक्र अवार्ड भी पा चुके हैं.

दुनिया की सबसे दूषित नदियों में शामिल है यमुना
दुनिया की सबसे दूषित नदियों में शामिल है यमुनातस्वीर: DW

क्या हैं तंवर का मॉडल

तंवर ने अपनी पहल सिर्फ एक गांव से शुरू की थी जो अब पूरे भारत में फैल चुकी है. अपने फाउंडेशन  Say Earth के माध्यम से, वह न केवल तालाबों को पुनर्जीवित कर रहे है, बल्कि झील और उसके आसपास के लोगों के लिए आय के स्रोत भी विकसित कर रहे हैं.

तालाबों और झीलों को साफ और सेहतमंद बनाने के अभियानों के बीच कुछ जगहों पर झीलें फिर से डंप यार्ड में बदल गईं. तंवर कहते हैं, "42 में से 12 झीलें औद्योगिक कचरे, भीड़भाड़ वाले इलाकों और लोगों के व्यवहार के कारण फिर से गंदी हो गई हैं. स्वच्छ जल निकायों के महत्व के बारे में लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने के बावजूद, यह सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है."

समस्या के समाधान के लिए तंवर ने तालाबों को कमल की खेती से जोड़ दिया, जो अब लोगों की आमदनी का जरिया बन गया है. वह इस मॉडल आत्मनिर्भर बताते हैं. यह जल निकायों को फलने-फूलने में मदद करता है.

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अतिक्रमण का मामला

भारत में आर्द्रभूमि (वेटलैंड्स) पर अतिक्रमण की समस्या भी गंभीर है. तंवर के मुताबिक, "कुछ जलाशय दबंग द्वारा कब्जा की गई भूमि पर स्थित हैं. जब ऐसी ड्राइव शुरू की जाती हैं तो वे हस्तक्षेप करते हैं. जब अधिकारियों से इस बारे में पूछा जाता है तो वे सुरक्षा के लिए उन अतिक्रमित भूमि से दूर रहने का सुझाव देते हैं."

इसके अलावा, जल निकाय को फिर से प्राकृतिक रूप देने की प्रक्रिया लालफीताशाही भी एक बड़ी अड़चन है. जमीन पर काम करने से पहले ग्राम सभा, पटवारी, ब्लॉक, तहसील और जिला प्रशासन जैसे कई स्तरों पर अर्जियों और फाइलों की लंबी यात्रा चलती है.

तंवर ने सरकार से एक ऐसा मंच बनाने की अपील की जहां उनके जैसे लोग आ सकें. ऑनलाइन प्रक्रिया के तहत अनुमति प्राप्त कर सकें, भ्रष्टाचार से निपट सकें और जल्द से जल्द काम शुरू हो सके.

उन्होंने सरकार से कम से कम शुरुआती दो साल के लिए जल निकायों के रखरखाव के लिए फंडिंग सुनिश्चित करने अपील भी की है. तंवर कहते हैं कि सफाई, अंत नहीं है.

तंवर ने झीलों और तालाबों के महत्व को समझने और उन्हें बचाने की पहल करने के लिए ग्रामीणों और जल निकायों के बीच एक भावनात्मक संबंध स्थापित करने का प्रयास किया है. उन्होंने कहा, "एक दिन में लोगों को समझाना असंभव है, इसीलिए लोगों को उनके परिवेश और प्रतिकूल प्रभावों के बारे में शिक्षित करना महत्वपूर्ण है. ये तालाब हमारे पूर्वजों की देन हैं. उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत के साथ उन्हें मैन्युअल रूप से बनाया है और यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उन्हें बनाए रखें."