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स्वीडन नाटो के लिए कितना महत्वपूर्ण है?

१४ जुलाई २०२३

अब जब तुर्की ने विरोध करना छोड़ दिया है तो स्वीडन के लिए नाटो में शामिल होने का रास्ता साफ हो गया है. पश्चिमी देशों के इस सैन्य गठबंधन में स्वीडन की सदस्यता को लेकर दोनों पक्षों की क्या उम्मीदें हैं?

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नाटो की संख्या और सीमाएं बढ़ रही हैं
नाटो की संख्या और सीमाएं बढ़ रही हैंतस्वीर: Aytac Unal/AA/picture alliance

स्वीडन और फिनलैंड ने पिछले साल यूक्रेन के खिलाफ रूस के आक्रामक युद्ध के जवाब में नाटो में शामिल होने के लिए आवेदन किया था. फिनलैंड पहले ही इस गठबंधन में शामिल हो गया है लेकिन तुर्की और हंगरी ने स्वीडन के आवेदन पर अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल करते हुए इन स्केंडेनेवियन देश को इसमें शामिल होने से रोक रखा था.

हालांकि, इस हफ्ते की शुरुआत में तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयब एर्दोआन ने कई महीनों से जारी अपने प्रतिरोध के बाद इस विरोध को वापस ले लिया. हंगरी ने भी ऐसा ही किया और पहली बार ऐसा लग रहा है कि शायद निकट भविष्य में स्वीडन को नाटो की सदस्यता मिल जाएगी. दोनों ही पक्ष इससे किस लाभ की उम्मीद कर रहे हैं?

नैटो को क्या हासिल होगा?

स्वीडन की सदस्यता पूरे बाल्टिक तट को नाटो का क्षेत्र बना देगी, अपवादस्वरूप रूसी तट और उसके बाहरी क्षेत्र कालिनिनग्राद को छोड़कर. इससे रूसी आक्रमण की स्थिति में बाल्टिक राज्यों की रक्षा करना आसान हो जाएगा. स्वीडन से एस्टोनिया, लात्विया और लिथुआनिया जैसे देशों तक सेनाओं और उपकरणों को जहाज के जरिये आसानी से पहुंचाया जा सकेगा. गॉटलैंड द्वीप भी भौगोलिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है.

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जर्मनी के फ्रीडरिषशाफेन स्थित जेपलिन विश्वविद्यालय में इंटरनेशनल सिक्योरिटी पॉलिसे के प्रोफेसर साइमन कोशुट कहते हैं, "बाल्टिक सागर के बीचोबीच यह बड़ा द्वीप स्वीडन के लिए बेहद अनुकूल रणनीतिक बेस है. यहां से आप एक तरह से पूरे बाल्टिक सागर पर नियंत्रण रख सकते हैं.”

कोशुट का मानना है कि स्वीडन की भौगोलिक स्थिति ही वह सबसे बड़ा कारक है जिसकी वजह नाटो उसे सदस्यता देने को आतुर है.

स्वीडन की सेना

स्वीडन की सशस्त्र सेनाएं और उनके सैन्य उपकरण भी नाटो के लिए बेहद कीमती हैं. हालांकि स्वीडन एक छोटा सा देश है, इसका मतलब यह हुआ संख्या की दृष्टि से सेना भी बहुत छोटी है. ग्लोबल फायरपावर इंडेक्स के मुताबिक, स्वीडन की सेना में सैनिकों की संख्या करीब 38 हजार है.

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हालांकि कोशुट यह भी उल्लेख करते हैं, "स्वीडन की सेना अत्याधुनिक है. खासकर, उनके पास एक अत्याधुनिक वायु सेना है और वह भी स्वनिर्मित.”

वो ये भी कहते हैं कि पनडुब्बियों के मामले में एक बड़ी नौसैनिक ताकत है और उसकी थल सेना के पास युद्ध लड़ने का अनुभव है. अफगानिस्तान समेत नाटो के कई अभियानों में स्वीडिश सेना पहले ही भाग ले चुकी है.

स्वीडन अपने सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का करीब 1.3 फीसद हिस्सा रक्षा के क्षेत्र में खर्च करता है. यह खर्च पिछले कुछ साल पहले की तुलना में काफी ज्यादा है और उम्मीद है कि स्वीडन अपने रक्षा खर्च को आने वाले सालों में और बढ़ाएगा.

पश्चिम के अन्य कई देशों की तरह, शीत युद्ध के बाद, स्वीडन ने भी अपने रक्षा खर्च में काफी कटौती की थी. हालांकि 2008 के जॉर्जिया युद्ध और 2014 में क्रीमिया पर रूस के कब्जे के बाद इन देशों को अपने इस फैसले पर पुनर्विचार के लिए प्रेरित किया लेकिन यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद तो रक्षा खर्च बढ़ाना इन देशों के लिए आवश्यक सा हो गया.

स्वीडन को सबसे बड़ा फायदा क्या होगा?

स्वीडन और नाटो पहले से ही कई तरीकों से एक-दूसरे का सहयोग कर रहे हैं. हालांकि, नाटो की सदस्यता मिलने से स्वीडन के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण बदलाव आएगा, जैसा कि गठबंधन की संधि के अनुच्छेद 5 में कहा गया है. इसमें कहा गया है कि नाटो के किसी भी सदस्य देश या देशों के खिलाफ कोई भी सशस्त्र हमला, नाटो के सभी सदस्य देशों के खिलाफ हमला माना जाएगा. ऐसी स्थिति में किसी भी सदस्य देश के खिलाफ हुए हमले का विरोध करना और उसकी सहायता के लिए आगे आना सभी सदस्य देशों का आवश्यक कर्तव्य होगा.

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कोशुट कहते हैं, "ऐसी सुरक्षा निश्चित तौर पर स्वीडन के लिए एक महत्वपूर्ण बात है.”

इसके अलावा, नाटो की सदस्यता स्वीडन को नाटो काउंसिल में कई अधिकार देती है जिसमें वीटो पावर का इस्तेमाल करना भी शामिल है. यही वह अधिकार था जिसका प्रयोग करते हुए तुर्की अब तक इस स्कैंडेनेवियन देश को नैटो की सदस्यता नहीं लेने दे रहा था.