बाढ़ रोकने के लिए शहरों को स्पंज में तब्दील करता चीन
१६ अप्रैल २०२२शहरों में बाढ़ के बदतर हालात से जूझते चीनी शहर, अब कुदरत की शरण में जा रहे हैं और ऐसी इमारतें बना रहे है जिन्हें "स्पंज शहरों” का दर्जा दिया गया है.
बांधों, पुश्तों, पाइपों और नहरों के धूसर और पुराने इंफ्रास्ट्रक्चर पर निर्भर रहने के बजाय, स्पंज शहर भारी बरसातों के दौरान पानी को सोख लेंगे और सूखा पड़ने पर उसे छोड़ देंगे.
ये अवधारणा पूरी दुनिया के शहरों में बाढ़ से निपटने, कार्बन डाइऑक्साइड को सोखने, जानवरों और पौधों के जीवन को बढ़ाने और हरित जगहों के विस्तार में इस्तेमाल की जा सकती है.
पीकिंग यूनिवर्सिटी के कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर में डीन, कोंगजियान यू ने स्पंज शहरों की अवधारणा पर शोध की अगुवाई की है. और चीन में उनके इस्तेमाल को लेकर 20 साल से ज्यादा समय से अभियान चला रहे हैं.
वो कहते हैं कि विशाल कंक्रीट बैरियर बनाने और पानी खींचने वाली तमाम सतहों को ढंक देने के मौजूदा तरीकों का फेल होना लाजिमी है. उनके मुताबिक शहरों को बाढ़ पर काबू पाने के लिए प्रकृति-आधारित समाधानों को अपनाना चाहिए.
अपनाने लायक एक समाधान
2012 में जब बीजिंग में आई बाढ़ से भारी नुकसान हुआ और दर्जनों लोग मारे गए तो ये मुद्दा ज्वलंत हो गया. भारत और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में भी तेजी से होते शहरीकरण और पानी के लिए कुदरती स्पंजो का काम करने वाले वेटलैंडो यानी आर्द्रभूमि के विनाश को बाढ़ का जिम्मेदार माना जाता है.
यू कहते हैं कि यूरोप की नरम जलवायु के लिहाज से विकसित हुई जल-प्रबंधन प्रणालियों को ट्रॉपिकल शहरों ने हूबहू लागू करने की गलती की थी. उनके मुताबिक इसके विनाशकारी नतीजे हो सकते हैं.
उनका अंतिम लक्ष्य है - पुराने पड़ चुके जर्जर ढांचे से रहित एक शहर जो वेटलैंड, हरित इलाकों, पारगम्य सतहों, चौतरफा वनस्पति, घुमावदार खाड़ियों, नहरों, सड़कों के किनारे खुले इलाकों और बाढ़ के मैदान वाला शहर हो.
2013 में यू के विचारों को चीन सरकार ने अपना लिया था और 30 शहरों में योजना को लागू कर दिया गया. कामयाब प्रशिक्षणों के बाद, शहरों को अब स्पंज शहर बनने की ओर बढ़ना ही है. अधिकारियों को उम्मीद है कि 2030 तक 80 फीसदी शहरी इलाकों को ऐसे स्पंजों में बदल दिया जाएगा.
इन शहरों की बुनियादी बातें
स्पंज शहरों का बुनियादी सिद्धांत है पानी को मिट्टी में समाने के लिए पर्याप्त जगह और समय देना. ना कि उसे जल्दी से जल्दी नालियों के जरिए विशाल बांधों में पहुंचा देना.
तेज प्रवाह वाली नहरें बनाने के बजाय, स्पंज शहर पानी की गति को घुमावदार प्रवाहों में बांधकर धीमा कर देते हैं, वहां कंक्रीट की दीवार नहीं होती और अतिवृष्टि के दौरान पानी को फैलने के लिए पर्याप्त जगह मिल जाती है. यू कहते हैं कि कंक्रीट के ढांचे की जगह इस विधि को अपनाकर जिंदगियां बचाई जा सकती हैं.
उन्होने डीडब्लू को बताया, "न सिर्फ चीन में बल्कि अमेरिका में भी आप देखते हैं कि नाकाम हो चुके बांध बड़ी संख्या में लोगों की जान लेते हैं. आपके पास एक ज्यादा बड़ा सिस्टम भी हो, ज्यादा सख्त, मोटा, मजबूत पाइप सिस्टम हो तो भी 10 साल बाद या महज एक साल में ही उसका बेकार हो जाना लाजिमी है. ये टिकाऊ समाधान नहीं है, ये कुदरत के खिलाफ लड़ाई है.”
पानी की सफाई
स्पंज शहरों के डिजाइन में इस्तेमाल कुदरती जलमार्ग और पारगम्य मिट्टी पानी को साफ कर देते हैं और प्रदूषण में कमी ले आते हैं.
बारिश का पानी वाष्पित होकर शहर को ठंडा कर सकता है. और सैद्धांतिक तौर पर, जलआपूर्ति प्रणालियों में भी उसका इस्तेमाल किया जा सकता है जैसे कि सिंचाई में, सड़कों की धुलाई में. इस तरह नल के पानी की खपत भी कम की जा सकती है.
यू कहते हैं कि स्पंज शहर की जल प्रणालियों में वनस्पति, गाद और सूक्ष्मजीवी ज्यादा ऊर्जा की खपत करने वाली शहरी जल छनाई प्रणालियों की जगह ले सकते हैं. या कम से कम उन पर बोझ को कम कर सकते हैं.
बाढ़ को रोकने की तरकीब
यू का दावा है कि एक फीसदी जमीन जलनिकासी के लिए आवंटित कर दी जाए तो ज्यादातर बाढ़ रुक जाएंगी. यू कहते हैं कि हजार साल में एक बार आने वाली भयंकर बाढ़ के नुकसान को भी रोका जा सकता है, अगर जलनिकासी के लिए 6 फीसदी जमीन आवंटित कर दी जाए.
यू के मुताबिक बाढ़ आ भी जाए तो शहरों को इस लिहाज से इमारतों का निर्माण करना चाहिए कि कभीकभार बढ़ने वाले पानी के स्तर के लिए तैयारी रहे.
जलवायु परिवर्तन से लड़ाई
जलवायु परिवर्तन में बढ़ोत्तरी के साथ विनाशकारी मौसमी आपदाएं भी तेज होने लगी हैं. ऐसे में शहरों में अप्रत्याशित बारिशें होने लगी हैं और पहले से बोझ तले दबी प्रणालियों पर भी खतरा है.
लेकिन स्पंज शहरों के समर्थकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन से जूझने के साथ साथ स्पंज शहर उससे लड़ने का भी अच्छा जरिया हैं.
स्पंज शहर के बुनियादी ढांचे को पुराने ढांचों के मुकाबले रखरखाव के लिए काफी कम ऊर्जा की जरूरत होती है. जल संशोधन ठिकानों पर बोझ में कमी आती है और एयर कंडिशनिंग पर निर्भरता भी कम होती है. इसके निर्माण में अपेक्षाकृत कम संसाधन खर्च होते हैं, कंक्रीट भी बहुत कम इस्तेमाल होता है. स्पंज शहर में बड़ी हरित जगहें निकाली जाती हैं जो कार्बन डाइऑक्साइड को सोखती हैं.
अगर दुनिया भर में उन्हें अपनाया जाए तो समर्थकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के लिहाज से ये एक वास्तविक बदलाव होगा, और वैश्विक स्तर पर बाढ़ के खतरों में कमी आएगी.
जैवविविधता और मनोरंजन
ये हरित जगहें जैवविविधता को प्रोत्साहित करने के लिहाज से भी लाभकारी हैं. जलवायु परिवर्तन के अलावा जैवविविधता का नुकसान भी इंसानियत के लिए एक बड़ा खतरा बन चुका है.
वैटलैंड और जंगल समृद्ध होंगे तो वन्यजीव और पेड़पौधे भी फलेंगे-फूलेंगे. और ये फैलती हुई हरित जगहें निवासियों के लिए ज्यादा आरामदेह होंगी और मनोरंजन मुहैया कराएंगी, ये कहना है कि यूनिवर्सिटी ऑफ नॉटींघम निग्बो में एसोसिएट प्रोफेसर फेथ चान का.
स्पंज शहरों का विस्तार से अध्ययन करने वाले और शंघाई से 150 किलोमीटर दूर तटीय शहर निंगबो में इस अवधारणा को लागू करने में मदद करने वाले चान कहते हैं, "मनोरंजन के लिए अधिकांश लोग ज्यादा से ज्यादा पार्क चाहते हैं."
विकासशील शहरों के लिए एक विकल्प
ज्यादातर स्पंज शहर आंदोलन उन अर्बन केंद्रों में ही चला है जो पहले से ही विकसित हैं. लेकिन समर्थकों का कहना है कि कम विकसित शहरों के नियोजन में भी इन विचारों को शामिल किया जा सकता है.
यू कहते हैं, "विकासशील देश, अपने शहर निर्मित करने के लिए हमेशा लंदन, पेरिस और बर्लिन की तरफ देखते हैं. और ये त्रासदी हो जाती है क्योंकि वे उस किस्म का बुनियादी ढांचा यहां पटक देते हैं और वो जलवायु परिवर्तन और मॉनसून के चलते नाकाम रह जाता है."
चान कहते हैं वित्तीय संसाधनों से रहित कम विकसित देश पूर्व योजना बनाकर पैसा बचा सकते हैं. "सबसे महंगी चीज है प्रकृति आधारित समाधान या हरित स्पेस के रूप में ढलने वाले पूरे इलाके का पुनःसंयोजन." चान कहते हैं कि नये जिले, "संभव है कि पहले वहां खेत की जमीन या जंगल रहा हो? तो आप थोड़ा बहुत इंजीनियरिंग कौशल का इस्तेमाल करते हुए निकासी से निपट सकते हैं और उससे काफी पैसा भी बचेगा."
यूरोप का क्या?
जलवायु परिवर्तन मौसमी चक्र को बाधित कर रहा है, ऐसे में यूरोप भीषण बाढ़ झेल चुका है. 2021 में आई विनाशाकारी बारिश में जर्मनी और बेल्जियम में सैकड़ों लोग मारे गए थे.
यू कहते हैं कि जैसे तीन दशक पहले पूर्वी और पश्चिम जर्मनी को बांटने वाली दीवार, बर्लिन में गिरा दी गई थी, उसी तरह ये समय है कि पुराने जर्जर ढांचे को उखाड़ फेंककर उसकी जगह स्पंज शहर की अवधारणा को लाया जाए.
कुछ यूरोपीय देश इस पर अमल शुरू कर चुके हैं. 1990 के दशक से समन्दर के पास स्थित नीदरलैंड्स ने रूम फॉर द रिवर परियोजना के तहत बाढ़ के पानी को सोखने के लिए विशाल इलाके आवंटित कर दिए हैं.
चान कहते हैं कि चीनी और यूरोपीय वैज्ञानिक और नीतिनिर्माता प्रकृति-आधारित समाधानों के विकास पर लगातार सूचनाओं का आदान-प्रदान कर रहे हैं इसमें स्पंज शहर भी शामिल हैं. वो कहते हैं, "मेरे ख्याल से यूरोप में, खासतौर पर ज्यादा बारिश वाले इलाकों में, चीनी अनुभव से भी सबक लिया जा सकता है."