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भारी खतरे में हैं लंबी यात्राएं करने वाले प्रवासी जीव

एलिस्टेयर वॉल्श
१६ फ़रवरी २०२४

जानवरों और पक्षियों का प्रवासन प्रकृति के अद्भुत आश्चर्यों में से एक है. अब इन खानाबदोश जीवों पर खतरा बढ़ता जा रहा है. लेकिन जानवर माइग्रेशन करते क्यों हैं और हम उनकी सुरक्षा कैसे कर सकते हैं?

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विल्डबीस्ट, तंजानिया के सेरेन्गेटी नेशनल पार्क से केन्या के मसाई मारा पहुंचते हैं. यह प्रवास हर साल जुलाई से अक्टूबर के बीच होता है.
बारिश के मौसम के आखिर में विल्डबीस्ट अपना सालाना प्रवास करते हैं. इसे 'कुदरती दुनिया के सात अजूबों' में गिना जाता है. तस्वीर: Tony Karumba/AFP/Getty Images

सदियों से सर्दी के मौसम में पक्षियों का गायब होना यूरोप के लोगों के लिए एक बड़ा रहस्य था. कुछ लोग सोचते थे कि ये पक्षी पानी के भीतर शीतनिद्रा में चले जाते हैं, तो कुछ मानते थे कि वे अन्य प्रजातियों में बदल जाते हैं. कुछ तो यह भी मानते थे कि वे चंद्रमा पर चले जाते हैं.

1800 के दशक तक पशुओं के प्रवासन के प्रमाण सामने आने लगे. 1822 में एक चर्चित घटना सामने आई. जर्मन शिकारियों ने एक सफेद सारस को मार गिराया. इस सारस के गले में करीब 75 सेंटीमीटर लंबा अफ्रीकी लकड़ी का भाला फंसा हुआ था. इससे पता चला कि उस सारस ने दो अलग-अलग महाद्वीपों के बीच यात्रा की थी. इस सारस के संरक्षित अवशेष अभी भी जर्मनी के रॉस्टॉक विश्वविद्यालय में प्रदर्शनी के तौर पर रखे हुए हैं.

हालांकि, अब हमें पता है कि सर्दियों में कड़ाके की ठंड से बचने, प्रचुर मात्रा में भोजन खोजने और रहने की बेहतर जगह तलाशने के लिए पक्षी धरती पर लंबी यात्राएं करते हैं. हर साल सर्दियों के मौसम में सफेद सारस जैसे पक्षी दक्षिण की ओर 10,000 किलोमीटर से ज्यादा लंबा सफर करते हैं, ताकि वे वसंत के मौसम में अपनी जगह पर समय से वापस लौट सकें.

बार-हेडेड हंस, जिसे ‘बिर्वा' भी कहा जाता है, जैसे कुछ पक्षी अपने प्रवास के दौरान हिमालय के ऊपर ऊंची उड़ान भरते हैं. जबकि आर्कटिक टर्न पूरे साल गर्मी का आनंद लेने के लिए एक ध्रुव से दूसरे ध्रुव तक यात्रा करते हैं. आर्कटिक टर्न एक छोटा, पतला समुद्री पक्षी है जो लैरिडे परिवार से संबंधित है. ये हर साल आर्कटिक में अपने प्रजनन क्षेत्रों से लेकर अंटार्कटिक तक जाते हैं और वापस आते हैं. इस दौरान वे करीब 40,000 किलोमीटर तक की दूरी तय करते हैं.

सिर्फ पक्षी ही नहीं, बल्कि मछलियां, स्तनधारी जीव, कीड़े और सरीसृप की सभी प्रजातियां भी लंबी दूरी तक यात्रा करती हैं. बहामास के निकट अपने प्रजनन स्थल तक पहुंचने के लिए यूरोपीय ईल दो वर्षों में लगभग 10,000 किलोमीटर की यात्रा कर सकती है. कैलिफोर्निया और मैक्सिको के तटों की यात्रा करने से पहले ग्रे व्हेल गर्मी के मौसम में ठंडे उत्तरी प्रशांत क्षेत्र में कुछ समय गुजारते हैं. दस लाख से अधिक जंगली जानवरों के झुंड शुष्क मौसम के दौरान पानी की तलाश में केन्या और तंजानिया के सेरेन्गेटी में सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय करते हैं.

इस सारस के संरक्षित अवशेष जर्मनी के रॉस्टॉक विश्वविद्यालय में प्रदर्शनी के तौर पर रखे हुए हैं.
यह सारस अफ्रीका में किसी जगह से उड़कर जर्मनी आया था. इसके गले में एक बरछी फंसी हुई थी. तस्वीर: Bernd Wüstneck/dpa-Zentralbild/dpa/picture alliance/dpa

प्रवासी जीवों को किससे खतरा है?

कंजर्वेशन ऑफ माइग्रेटरी स्पीशीज ऑफ वाइल्ड एनिमल (सीएमएस) पर हुए कन्वेंशन की सूची में शामिल करीब आधी प्रजातियों की जनसंख्या में गिरावट देखी जा रही है. इनमें से करीब 22 फीसदी जीव विलुप्त होने के कगार पर हैं. सीएमएस की सूची में शामिल करीब सभी मछलियों की प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है.

दरअसल, प्रवासी प्रजातियां इतनी लंबी दूरी तक यात्राएं करती हैं, इसलिए उन्हें अपने लंबे सफर के दौरान मानव निर्मित बाधाओं और खतरों से निपटना पड़ता है. शिकार, प्रकाश प्रदूषण और बड़ी इमारतें इन पक्षियों के लिए सबसे बड़े खतरे हैं. भूमध्य सागर में शिकारी हर साल लाखों प्रवासी पक्षियों को मार देते हैं. इमारतों से टकराकर घायल होने की वजह से हर साल एक अरब से अधिक पक्षी मर जाते हैं.

प्रदूषण और मछली पकड़ने से जलीय जीव भी खतरे में हैं. जबकि जमीन पर चलने वाले जानवरों को सड़क और बाड़ जैसी मानव निर्मित बाधाओं का सामना करना पड़ता है. खेत की बाड़ के कारण वन्य जीवों के प्रवास का कुछ रास्ता पूरी तरह से बंद हो चुका है.

अवैध शिकार, अत्यधिक मछली पकड़ने और अवैध तरीके से मछलियों को मारने से प्रवासी जीवों के लिए खतरा बढ़ गया है. साथ ही, खेती की जमीन तैयार करने, शहर बसाने या बुनियादी ढांचे के विस्तार के लिए इंसान जंगलों का सफाया कर रहे हैं. इससे प्रवासी जीवों के रहने की जगह खत्म होती जा रही है.

यात्रा के दौरान जानवरों को आराम और भोजन की जरूरत होती है, लेकिन उनका प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहा है. इस वजह से उन्हें पर्याप्त खाना नहीं मिल पाता. ऐसी स्थिति में थकान और भूख से उनकी मौत भी हो सकती है. इन सब के बीच जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम का मिजाज भी बदल रहा है. इससे उन्हें यह तय करने में परेशानी आ रही है कि उन्हें कब अपनी यात्रा शुरू करनी चाहिए.

वन्य जीवों को विलुप्त होने से कैसे बचाया जाए

साल 1979 में सीएमएस या बॉन कन्वेंशन पर हस्ताक्षर हुआ. इसके तहत हर देश प्रवासी प्रजातियों की सुरक्षा और उनके रास्ते को बनाए रखने में मदद करता है. इस कन्वेंशन में शामिल देश प्रवासी जीवों के लिए किए जा रहे कार्यों की निगरानी और नई योजनाएं तैयार करने के लिए दो से तीन साल में बैठक करते हैं.

इस कन्वेंशन का फायदा यह हुआ है कि मध्य एशिया के साइगा हिरण को अब अवैध शिकार का ज्यादा खतरा नहीं है. उनके प्राकृतिक आवास को बरकरार रखने में मदद मिल रही है. प्रवासी शार्क की कई प्रजातियों को समुद्री संरक्षित क्षेत्रों में सुरक्षित आश्रय मिल रहा है. मछली पकड़ने वाले ट्रॉलरों से अब अल्बाट्रॉस, यानी समुद्री चील काफी कम मर रहे हैं.

हालांकि, जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आवास के नुकसान की वजह से प्रवासी प्रजातियों पर मंडरा रहा खतरा पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है. संरक्षण समूहों का कहना है कि प्रवासी जीवों की सुरक्षा के लिए अभी काफी कुछ करने की जरूरत है. इसमें उनके प्राकृतिक आवास को फिर से बहाल करना और उनके रास्ते में आने वाली बाधाओं को हटाना शामिल है.

ये प्रवासी जीव पारिस्थितिक तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जैसे कि पौधों का परागण करना, बीज फैलाना वगैरह. साथ ही, उनका सांस्कृतिक महत्व भी है. वे लोगों की कहानियों और परंपराओं के लिए भी महत्वपूर्ण हैं. उन्होंने सदियों से चित्रों, कहानियों और यहां तक कि धार्मिक मान्यताओं को स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई है. तो अगली बार जब आप किसी प्रवासी जीव को देखें, तो उन सभी अद्भुत बातों को याद करें जो दुनिया भर की विभिन्न संस्कृतियों से जुड़ी हुई हैं.

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