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पश्चिम बंगाल में अब निगाहें नंदीग्राम पर

प्रभाकर मणि तिवारी
२९ मार्च २०२१

पश्चिम बंगाल में पहले दौर की तीस सीटों पर भारी मतदान के बाद अब सत्ता के दावेदारों यानी तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के साथ ही तमाम राजनीतिक पंडितों की निगाहें दूसरे दौर की नंदीग्राम सीट पर टिक गई हैं.

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West Bengal Wahlen Wahlkampf
नंदीग्राम में चुनाव प्रचार अभियान के दौरान लोगों से मिलती मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी. तस्वीर: Prabhakarmani Tewari/DW

यूं तो दूसरे दौर में भी जंगलमहल इलाके की बाकी बची 30 सीटों के लिए एक अप्रैल को मतदान होना है. लेकिन इनमें सबसे ज्यादा चर्चा पूर्व मेदिनीपुर जिले के नंदीग्राम सीट की ही है. आखिर हो भी क्यों न यहां मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ही टीएमसी की उम्मीदवार हैं और उनका मुकाबला है कभी अपने सबसे करीबी रहे और अब बीजेपी उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी से. इस सीट का नतीजा बंगाल ही नहीं बल्कि पूरे देश की राजनीति पर दूरगामी असर डाल सकता है. यही वजह है कि ममता ने रविवार शाम से ही यहां डेरा डाल दिया है. दूसरी ओर, बीजेपी ने भी इलाके में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. यह कहना गलत नहीं होगा कि नंदीग्राम सीट राज्य विधानसभा चुनाव में सबसे हाई प्रोफाइल सीट बन गई है.

ममता बनर्जी ने इलाके में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. बीते 10 मार्च को नामांकन पत्र दायर करने के बाद एक हादसे में घायल ममता रविवार शाम पहली बार नंदीग्राम पहुंचीं और वहां एक रैली को संबोधित किया. उसके बाद सोमवार को उन्होंने आठ किमी लंबी पदयात्रा के साथ ही दो रैलियां भी की. उन्होंने इलाके में रहने के लिए दो मकान किराए पर लिए हैं. फिलहाल ममता एक अप्रैल को मतदान खत्म होने तक वहीं रहेंगी.

उधर, ममता के खिलाफ मैदान में उतरे शुभेंदु अधिकारी पहले ही एलान कर चुके हैं कि अगर उन्होंने ममता को कम से कम पचास हजार वोटों के अंतर से नही हराया तो राजनीति से संन्यास ले लेंगे. उनकी पार्टी यानी बीजेपी ने भी इलाके में पूरी ताकत झोंक दी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और बीजेपी प्रमुख जे.पी.नड्डा से लेकर पार्टी के तमाम नेता और अभिनेता इलाके में चुनावी सभाएं कर चुके हैं. चुनाव प्रचार के आखिरी दिन मंगलवार को अमित शाह एक बार फिर इस इलाके में रोड शो करेंगे.

बीजेपी नेता अमित शाह पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए.
बीजेपी नेता अमित शाह पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए. तस्वीर: Prabhakarmani Tewari/DW

बीजेपी के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय कहते हैं, "शुभेंदु अधिकारी इस सीट पर ममता को आसानी से पराजित कर देंगे. ममता को खुद भी यहां जीत की उम्मीद नहीं है.” उनका आरोप है कि दस साल तक मुख्यमंत्री रहते ममता ने इलाके में विकास के नाम पर कुछ भी नहीं किया है. इसलिए लोग चुनाव में उनको सबक सिखाने का इंतजार कर रहे हैं. इलाके में थोड़ा-बहुत जो विकास हुआ है वह स्थानीय विधायक के नाते शुभेंदु ने ही किया है.

नंदीग्राम के राजनीतिक समीकरण कैसे 

आखिर नंदीग्राम में कौन से मुद्दे ममता के पक्ष में और खिलाफ जा सकते हैं? टीएमसी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि शुभेंदु ने ममता को सिर्फ नंदीग्राम से लड़ने की चुनौती दी थी. उनकी चुनौती स्वीकार कर ममता ने आधी लड़ाई तो पहले ही जीत ली है. यह ममता का मास्टरस्ट्रोक साबित होगा. टीएमसी के नेताओं का कहना है कि ममता के सत्ता में पहुंचने का रास्ता नंदीग्राम में हुए अधिग्रहण विरोधी आंदोलन से ही निकला था. ममता अपने चुनाव अभियान के दौरान नंदीग्राम के लोगों से भावनात्मक संबंध मजबूत करने में कामयाब रही हैं. उन्होंने नंदीग्राम में वर्ष 2007 में हुए आंदोलन को मौजूदा किसान आंदोलन से भी जोड़ दिया है.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि नंदीग्राम में 12 फीसदी वोटर मुस्लिम हैं. यहां पीरजादा अब्बासी के नेतृत्व वाले इंडियन सेक्यूलर फ्रंट (आईएसएफ) का कोई उम्मीदवार नहीं होने की वजह से अल्पसंख्यक वोट बैंक में सेंध की आशंका बहुत कम है. ममता ने इलाके में रहने के लिए हिंदू-बहुल इलाके को चुना है और नियमित रूप से मंदिरों में जाती रही हैं. इससे वे यह संदेश देने में कामयाब रही हैं किवे हिंदू विरोधी नहीं हैं जैसा कि बीजेपी उन पर आरोप लगाती रही है. लेफ्ट ने यहां एक कमजोर उम्मीदवार को मैदान में उतारा है. राजनीतिक पर्यवेक्षक मईदुल इस्लाम कहते हैं, "लेफ्ट ने इसके जरिए यह संदेश देने की कोशिश की है वह नंदीग्राम में ममता की हार नहीं चाहती. उसके लिए टीएमसी से बड़ी दुश्मन बीजेपी है. किसान आंदोलन के नेता भी बीजेपी के खिलाफ नंदीग्राम में महापंचायत का आयोजन कर भगवा पार्टी को वोट नहीं देने की अपील कर चुके हैं.”

लेकिन ममता के खिलाफ भी कई चीजें हैं. मसलन इलाके में रोजगार के अवसर और विकास नहीं होना. बीजेपी ममता के खिलाफ इन मुद्दों पर ही ज्यादा जोर दे रही है. बीजेपी उम्मीदवार शुभेंदु को स्थानीय होने का लाभ मिल सकता है. वे ममता पर लगातार बाहरी होने के आरोप लगाते रहे हैं.

पहले दौर में भारी मतदान से असमंजस

पहले दौर की तीस सीटों पर भारी मतदान ने राजनीतिक पंडितों को भी असमंजस में डाल दिया है. हालांकि बंगाल में भारी मतदान की परंपरा रही है. लेकिन पर्यवेक्षकों को लगता है कि भारी मतदान तभी होता है जब लोगों ने बदलाव का मन बनाया हो. हालांकि दोनों पार्टियां अपनी-अपनी जीत के दावे कर रही हैं. वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव में इन तीस सीटों में से 27 टीएमसी को मिली थीं, दो कांग्रेस को एक लेफ्ट को. बीजेपी का खाता तक नहीं खुला था. लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजों के लिहाज से बीजेपी इनमें से 20 सीटों पर टीएमसी से आगे थी. बीजेपी नेता अमित शाह ने तो दावा किया है कि पहले दौर की तीस में से 26 सीटें उनकी पार्टी को मिलेंगी. हालांकि ममता ने उनके दावे की खिल्ली उड़ाते हुए कहा है कि गिनती से पहले कोई ऐसा दावा कैसे कर सकता है?

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि बंगाल के लोग पारंपरिक रूप से उम्मीदवार को नहीं बल्कि पार्टी को वोट देते रहे हैं. हाल के तमाम सर्वेक्षणों से यह बात सामने आई है कि ममता की लोकप्रियता में कोई गिरावट नहीं आई है. ऐसे में बीजेपी की राह आसान नहीं होगी. लेकिन बावजूद इसके पहले दौर में उसे फायदा ही होना है. पहले एक भी सीट नहीं थी. अब जितना मिले उतना फायदा ही है.

राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर समीरन पाल कहते हैं, "नंदीग्राम के नतीजे ही सबसे अहम और निर्णायक होंगे. इससे पता चलेगा कि ममता 14 साल बाद भी नंदीग्राम में पहले जैसी ही लोकप्रिय हैं या नहीं और शुभेंदु के जाने पार्टी को कितना नुकसान पहुंचा है. लेकिन उसके लिए फिलहाल दो मई तक इंतजार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.”