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मौजूदा वैक्सीन भारतीय वैरियंट पर भी कारगर

२९ अप्रैल २०२१

वैज्ञानिकों का मानना है कि कोरोना वायरस का भारतीय वैरियंट भले ही बाकियों से अलग हो लेकिन उस पर वैक्सीन का असर उतना ही कारगर हो रहा है जितना दुनिया बाकी हिस्सों में मिले वैरियंट्स पर.

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तस्वीर: Amit Dave/REUTERS

डॉ. लाउटरबाख ने ट्विटर पर एक नए अध्ययन का जिक्र करते हुए यह बात कही है. उन्होंने ब्रिटेन में हुए एक नए अध्ययन का भी हवाला दिया है जिसमें कहा गया है कि वैक्सीनेशन से इन्फेक्शन का खतरा दो तिहाई तक कम हो जाता है. इस अध्ययन में पाया गया कि वैक्सीनेशन के बाद भी जिन लोगों को संक्रमण हो जाता है, उन्हें खतरा दो तिहाई तक कम होता है.

कोरोनावायरस का B.1.617 वैरियंट वैज्ञानिकों के लिए सिर दर्द बना हुआ था क्योंकि यह एक डबल म्युटेंट था. ऐसा इसलिए था क्योंकि यह एक ही बार दो गुना हो जाता है. लेकिन वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि दोहरे म्युटेशन का अर्थ यह नहीं है कि यह फैलता भी दोगुनी तेजी है और दोगुना खतरनाक है.

कोरोना वायरस का B.1.617 वैरियंट सबसे पहले भारत में मिला था. इसमें दो जेनेटिक टुकड़े

E484Q और L452R पाए गए. E484Q तो ब्रिटेन, ब्राजील और अफ्रीका वाले वैरियंट E484K जैसा ही था. L452R कैलिफॉर्निया वाले वैरियंट CAL.20C से मिलता-जुलता है. लेकिन भारतीय वैरियंट के साथ परेशानी यह है कि दोनों म्युटेशन एक साथ हो रही हैं. इसलिए इसे डबल म्युटेंट कहा जाता है.

भारत में कोरोना वायरस के 17.3 मिलियन मामले मिल चुके हैं जो अमेरिका के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा हैं. वहां दो लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. भारी संख्या में मरीजों को संभालने में देश की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है इसलिए भी मौतें ज्यादा हुई हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने B.1.617 ‘वैरियंट ऑफ इंटरेस्ट' घोषित किया है. इसके मुकाबले अन्य देशों में मिले वैरियंट्स को ‘वैरियंट ऑफ कन्सर्न' कहा गया है.

ये वैरियंट्स ज्यादा आसानी से फैलते हैं और इनके कारण बीमारी ज्यादा लंबी वह ज्यादा खतरनाक होती है. ये शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को आसानी से पार कर जाते हैं और वैक्सीन की क्षमता को भी कम करते हैं. बाजल यूनिवर्सिटी के बायोसेंटर के रिचर्ड नेहर कहते हैं कि भारतीय वैरियंट पर निगाह रखने की जरूरत है लेकिन "इस पर बाकी वैरियंट्स से अतिरिक्त ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है.”

बर्लिन के शार्टी अस्पताल में वायरोलॉजिस्ट क्रिस्टियान ड्रोस्टन को भारतीय वैरियंट को लेकर जरूरत से ज्यादा परेशान होने का कोई कारण नहीं लगता. वह कहते हैं, "वैक्सीन की अगली पीढ़ी थोड़ी आधुनिक होगी लिहाजा ज्यादातर म्युटेंट पर कारगर होगी.”

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