1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समानताविश्व

भारत में धार्मिक आजादी पर अमेरिकी आयोग चिंतित

२६ अप्रैल २०२२

अमेरिका सरकार के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने भारत को लगातार तीसरी बार चिंताजनक स्थिति वाले देशों में रखने की सिफारिश की है. आयोग ने भारत सरकार पर तल्ख टिप्पणियां की हैं.

https://p.dw.com/p/4AQvJ
भारत में मानवाधिकारों की स्थिति पर चिंता
भारत में मानवाधिकारों की स्थिति पर चिंतातस्वीर: Aamir Ansari/DW

अमेरिका के विदेश मंत्रालय को विभिन्न देशों में धार्मिक आजादी की स्थिति पर सलाह देने वाली संस्था यूएस कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम ने कहा है कि भारत को चिंताजनक स्थिति वाले देशों में रखा जाना चाहिए. इस संस्था ने अफगानिस्तान को ‘सबसे बुरों में भी सबसे खराब' की सूची में डालने की सिफारिश की है.

सोमवार को जारी अपनी सालाना रिपोर्ट में अमेरिकी कमीशन (USCIRF) ने कहा कि अफगानिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्य आबादी "प्रताड़ना, हिरासत यहां तक कि अपने विश्वास के कारण मार दिए जाने” जैसे हालात का सामना कर रही है. अफगानिस्तान की सत्ता पर पिछले साल सुन्नी मत को मानने वाले इस्लामिक संगठन तालिबान ने कब्जा कर लिया था.

अमेरिकी सरकार की आलोचना

कमीशन ने 15 देशों की सूची बनाई है, जो उसके मुताबिक अमेरिकी विदेश मंत्रालय के लिए ‘चिंताजनक स्थिति वाले' होने चाहिए. इन देशों में चीन, इरिट्रिया, ईरान, म्यांमार, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान, रूस, सऊदी अरब, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान तो पहले से ही थे. जिन नए देशों को जोड़ने की सिफारिश की गई है, वे हैं अफगानिस्तान, भारत, नाइजीरिया, सीरिया और वियतनाम.

सऊदी का 'बुलडोजर' अभियान, जेल का डर दिखाकर रातोरात बेघर कर दिए गए लोग

अपनी रिपोर्ट में कमीशन ने कहा कि इन देशों की सरकारें ‘धार्मिक आजादी के व्यवस्थागत, घोर और लगातार उल्लंघन' में शामिल हैं या उसे होने दे रही हैं. इस कमीशन की स्थापना अमेरिका के धार्मिक स्वतंत्रता कानून के तहत 1998 में की गई थी. इसका काम संसद और सरकार को विभिन्न देशों की स्थिति के बारे में सिफारिशें देना हैं लेकिन वे सिफारिशें बाध्यकारी नहीं होतीं.

पिछले सालों में अमेरिकी सरकार ने कई बार आयोग की सिफारिशों को स्वीकार किया है लेकिन हर बार नहीं. जैसे कि बाइडेन सरकार ने नाइजीरिया को पिछले साल सूची से बाहर कर दिया था. अपनी रिपोर्ट में आयोग ने इस कदम के लिए बाइडेन सरकार की आलोचना की है.

भारत पर तल्ख टिप्पणी

2021 में भारत में धार्मिक पर हमले को लेकर आयोग ने काफी तल्ख टिप्पणियां की हैं. रिपोर्ट कहती है कि सालभर में भारत सरकार ने अपने हिंदू-राष्ट्रवादी नीतियों को और मजबूत करने के लिए कई नीतियां अपनाई हैं जो मुसलमान, ईसाई, सिख, दलित और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ काम कर रही हैं. रिपोर्ट कहती है कि भारत सरकार व्यवस्थागत तरीके से मौजूदा और नए कानूनों के जरिए अपने हिंदू-राष्ट्रवाद के दर्शन को आगे बढ़ाने पर काम कर रही है.

युद्ध अपराध के घेरे में रूसी और यूक्रेनी सेना

रिपोर्ट में कहा गया है, "2021 में भारत सरकार ने आलोचना करने वाली आवाजों, खासकर धार्मिक अल्पसंख्यकों और उनके लिए बोलने वालों कों यातनाओं, जांच-पड़ताल, हिरासत और यूएपीए (UAPA) जैसे कानूनों के जरिए परेशान करके दबाया गया.”

आयोग ने आदिवासी अधिकारों के लिए काम करने वाले दिवंगत पादरी स्टैन स्वामी का भी जिक्र किया जिनकी पिछले साल 84 वर्ष की आयु में हिरासत के दौरान मौत हो गई थी. उन्हें यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया था. ऐसे आरोप लगे थे कि स्वामी को मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं कराई गईं और यातनाएं दी गईं.

यह लगातार तीसरी बार है जब आयोग ने भारत को चिंताजनक स्थिति वाले देशों में रखने की सिफारिश की है. हालांकि पिछले दोनों बार ट्रंप और फिर बाइडेन सरकार ने इस सिफारिश को नहीं माना था.

अफगानिस्तान पर चिंता

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में अफगानिस्तान की हालत पर खासी चिंता जताई है. आयोग कहता है कि तालिबान के सत्ता पर काबिज होने के बाद बड़ी संख्या में यहूदी, हिंदू और सिख अल्पसंख्यकों ने देश छोड़ दिया है. आयोग ने कहा है कि अहमदिया मुसलमान, बहाई और ईसाई लोग यातनाओं के डर से छिपकर पूजा करने को मजबूर हैं.

तंजीला खान: विकलांगों को सशक्त बनाती महिला

तालिबान ने पिछले साल अगस्त में काबुल पर कब्जा किया था जिसके बाद वहां के राष्ट्रपति देश से भाग गए थे. तालिबान ने सत्ता पर कब्जा कर लिया और अपनी सरकार बनाई. उसके बाद बड़ी संख्या में लोग देश छोड़ गए थे. इनमें हिंदू और सिख भी शामिल थे जो भारत या अन्य देशों को चले गए. कुछ सिख अब भी काबुल में रहते हैं.

आयोग ने ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट का भी हवाला दिया है जिसमें कहा गया कि शिया समुदाय के लोगों पर हमले की बात कही गई. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने 2021 में अपनी रिपोर्ट में भी यही बात कही थी.

कमीशन की अध्यक्ष नदीन माएंज ने एक इंटरव्यू में कहा, "तालिबान ने वादा किया था कि वे एक समावेशी सरकार बनाएंगे जो पहले से अलग होगी लेकिन उन्होंने जो किया वो एकदम उलट था. यहां तक कि सुन्नी समुदाय के जो लोग सरकार का समर्थन नहीं करते और तालिबान की इस्लामिक कानून की व्याख्या से सहमत नहीं हैं, उन पर भी सख्तियां थोपी जा रही हैं.”

रिपोर्टः विवेक कुमार (रॉयटर्स)

 

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी