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समानतासंयुक्त राज्य अमेरिका

यूएनडीपी की अपील, गरीब देशों के कर्जे कम किए जाएं

२३ फ़रवरी २०२३

संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूएन डिवेलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) ने एक प्रस्ताव पेश किया है कि गरीब देशों का कुछ कर्ज माफ कर दिया जाए. भारत में जी20 देशों की बैठक से पहले यह प्रस्ताव आया है.

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अफगानिस्तान दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है
अफगानिस्तान दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक हैतस्वीर: ATIF ARYAN/AFP

भारत में दुनिया के सर्वाधिक धनी बीस देशों के वित्त मंत्री मिलने वाले हैं. उस बैठक से पहले यूएनडीपी ने प्रस्ताव पेश किया है कि 52 सबसे गरीब देशों का कुछ कर्ज माफ कर दिया जाए. ये ऐसे देश हैं जहां कर्ज के कारण अर्थव्यवस्था बहुत दबाव में है. इन देशों में दुनिया के 40 फीसदी से ज्यादा गरीब लोग रहते हैं और सरकारों को वहां लोगों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराना भी मुश्किल हो रहा है क्योंकि कर्ज की किश्तें भरने में ही उनके सारे संसाधन लगे जा रहे हैं.

यूएनडीपी प्रशासक आषिम श्टाइनर ने कहा, "जो देश कर्ज के बोझ तले दबे हैं और वित्तीय कमी तक जिनकी पहुंच नहीं है, वही देश अन्य संकटों से भी जूझ रहे हैं. वे कोविड-19 के सबसे ज्यादा आर्थिक दुष्प्रभावों, गरीबी और बढ़ते जलवायु आपातकाल के असर वाले देशों में भी शामिल हैं.”

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श्टाइनर ने धनी देशों से उन देशों की मदद की अपील की है. उन्होंन कहा, "अमीर और गरीब देशों के बीच बढ़ते अंतर पर ध्यान देने का वक्त आ गया है. बहुतलीय व्यवस्था को बदलने और कर्ज का ऐसा ढांचा तैयार करने का वक्त आ गया है, जो कोविड के बाद हमारी जटिल, परस्पर जुड़ी हुई दुनिया के हिसाब से हो.”

यूएनडीपी ने इन देशों के कर्जे में 30 प्रतिशत की कटौती का अनुरोध किया है. संस्था का कहना है कि ऐसा करने से आने वाले आठ सालों में इन देशों को कर्ज की किश्तों में 148 अरब डॉलर की राहत मिलेगी. साथ ही मध्यम-आय वाले देशों के कर्ज को रीफाइनेंस करके भी अतिरिक्त 120 अरब डॉलर बचाए जा सकते हैं.

कोविड महामारी की मार

इससे पहले यूएन महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने एक योजना का ऐलान किया था. इस योजना में विभिन्न देशों से टिकाऊ विकास लक्ष्यों पर खर्च बढ़ाने का प्रस्ताव है. इस लक्ष्य को हासिल करने में जो समस्याएं आ रही हैं, उनमें कर्ज को भी एक बड़ी समस्या माना गया है. संयुक्त राष्ट्र के 17 विकास लक्ष्य हैं जिनमें भूख और गरीबी हटाना, साफ पानी मुहैया कराना और जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए कदम उठाना शामिल है.

वर्ल्ड बैंक ने पिछले साल एक रिपोर्ट जारी की थी जिसके मुताबिक कोविड-19 महामारी के बाद से गरीब देशों के कर्जों में वृद्धि हुई है. रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में इन गरीब देशों को 35 प्रतिशत ज्यादा चुकाना होगा क्योंकि उन्हें महामारी के खर्चे पूरे करने हैं. इन खर्चों में खाद्य पदार्थो की बढ़ी हुई कीमतें शामिल हैं.

महंगे सलूनों के बीच गरीबों की आस

रिपोर्ट में बताया गया कि 75 सबसे गरीब देशों को अपना कर्ज चुकाने के लिए अतिरिक्त 71 अरब डॉलर की जरूरत होगी. इनमें से अधिकतर देश अफ्रीका महाद्वीप के हैं. वर्ल्ड बैंक ने इस बात पर चिंता जताई थी कि इन गरीब देशों में कर्ज की किश्तें चुकाने में ही ज्यादातर संसाधन खर्च हो रहे हैं.

निजी संस्थानों से कर्ज

धनी देशों के नाम एक अपील में वर्ल्ड बैंक ने कहा था कि अगर इन गरीब देशों को अपने संसाधन कर्ज चुकाने के लिए इस्तेमाल करने पर मजबूर किया गया था वहां अव्यवस्था फैल सकती है. वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष डेविड मालपास ने कहा था, "विकासशील देशों में कर्ज संकट गहरा गया है. इस कर्ज को कम कर पारदर्शिता बढ़ाने, गरीबी कम करने और विकास को समर्थन देने के लिए एक समझदारी भरे रवैये की जरूरत है.”

दुनिया के जो देश कर्ज देते हैं उन्हें पेरिस क्लब कहा जाता है. संगठन की स्थापना 1956 में हुई थी. इस क्लब में ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, ब्राजील, कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, आयरलैंड, इस्राएल, इटली, जापान, नीदरलैंड्स, नॉर्वे, रूस, दक्षिण कोरिया, स्पेन, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, युनाइडेट किंग्डम और अमेरिका शामिल हैं.

दुनिया भर में भविष्य से निराश लोगों की संख्या में वृद्धि

पिछले कुछ सालों में गरीब और विकासशील देशों ने इन देशों के बजाय निजी बैंकों और गैर-सरकारी संस्थानों से कर्ज लेने का चलन बढ़ा है. इन कर्जों में ब्याज दर कहीं ज्यादा होती है. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक पेरिस क्लब के कर्जों की अवधि 25 साल होती थी जबकि निजी संस्थान 12 साल के लिए कर्ज दे रहे हैं. और इनकी ब्याज दर 2 से 5 फीसदी तक है.

रिपोर्टः विवेक कुमार (रॉयटर्स)

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