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केंद्र-राज्य रिश्तों पर सुप्रीम कोर्ट के दो बड़े फैसले

चारु कार्तिकेय
११ मई २०२३

दिल्ली और महाराष्ट्र से जुड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों को उनकी शक्ति की सीमाएं याद दिलाने की कोशिश की है. साथ ही राज्यपालों और उप-राज्यपालों को जनमत द्वारा चुनी हुई सरकार का आदर करने की सीख भी दी है.

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सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्टतस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/N. Kachroo

दोनों ही मामलों के केंद्र में राजनीतिक खींचतान के अलावा केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति के संतुलन का एक संकट भी था, जिसे अपने दो अलग अलग फैसलों में सुप्रीम कोर्ट ने संबोधित करने की कोशिश की है. दिल्ली के मामले में सवाल दिल्ली की चुनी हुई सरकार और केंद्र द्वारा नियुक्त उप-राज्यपाल के बीच शक्तियों को लेकर खींचतान का था.

सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने दोनों पक्षों को उनकी सीमाएं याद तो दिलाईं लेकिन यह स्पष्ट रूप से कहा कि चुनी हुई सरकार की जनता के प्रति जवाबदेही होती है और इसलिए प्रशासन की असली शक्ति उसी के पास होनी चाहिए. लिहाजा, अदालत ने कहा कि सिर्फ तीन क्षेत्रों को छोड़ कर राष्ट्रीय राजधानी में चुनी हुई सरकार का प्रशासनिक सेवाओं के ऊपर लेजिस्लेटिव और एग्जेक्टिव नियंत्रण होना ही चाहिए.

अरविंद केजरीवाल
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया हैतस्वीर: Narinder Nanu/AFP/Getty Images

जिन तीन क्षेत्रों को इस नियंत्रण से बाहर रखने के लिए बताया गया वो हैं पब्लिक आर्डर, पुलिस और भूमि. इस आदेश का सीधा संबंध दिल्ली में सरकारी अफसरों की नियुक्ति और तबादले से है. अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि आईएएस अफसर हों या संयुक्त काडर सेवाओं के अफसर, उनके ऊपर चुनी हुई सरकार का नियंत्रण है.

अदालत ने कहा कि सामूहिक जिम्मेदारी का सिद्धांत सरकारी अधिकारियों पर भी लागू होता है जो सरकार के मंत्रियों को रिपोर्ट करते हैं. अगर अफसर मंत्रियों को रिपोर्ट करना बंद कर दें या उनके निर्देश नहीं मानें तो सामूहिक जिम्मेदारी के पूरे सिद्धांत पर असर पड़ता है.

अदालत ने माना कि दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है और इस वजह से सरकार के पास पूर्ण राज्य की सरकारों जैसी शक्तियां नहीं हैं. लेकिन अदालत ने कहा कि इसके बावजूद इस फैसले की रोशनी में उप-राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही काम करने को बाध्य हैं.

दिल्ली में 'आम आदमी पार्टी' सरकार ने इस फैसले का स्वागत किया है. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि उनकी पार्टी पिछले आठ सालों से इस मुद्दे पर लड़ रही थी और इस दौरान केंद्र को यह शक्ति देने वाले सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेश का इस्तेमाल कर दिल्ली में काम को रोका गया.

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केजरीवाल ने कहा कि अब अगले कुछ दिनों में दिल्ली के प्रशासन में भारी बदलाव लाए जाएंगे, जिनके तहत भ्रष्ट अफसरों को हटाया जाएगा, ईमानदार अफसरों को नियुक्त किया जाएगा और अनावश्यक पदों को या तो रद्द कर दिया जाएगा या रिक्त रख दिया जाएगा.

महाराष्ट्र का मामला

महाराष्ट्र का मामला पूरी तरह से राजनीतिक था लेकिन उसमें भी मूल सवाल केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति के संतुलन का था. जून 2022 में शिवसेना दो धड़ों में बंट गई, उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी की गठबंधन सरकार गिर गई और शिवसेना के दूसरे धड़े के नेता के रूप में एकनाथ शिंदे ने बीजेपी के साथ मिल कर सरकार बना की.

बाद में विधानसभा के उपाध्यक्ष ने शिंदे गुट के विधायकों को अयोग्यता का नोटिस भेज दिया. सुप्रीम कोर्ट के सामने उस समय सवाल था कि इन विधायकों को सदन की सदस्यता से अयोग्य करार दिया जाए या नहीं. अदालत ने बाद में राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को सदन में विश्वास मत कराने का आदेश देने की अनुमति दे दी.

ठाकरे ने विश्वास मत से पहले ही इस्तीफा दे दिया और उनकी सरकार गिर गई. उसके बाद ठाकरे की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं डाली गईं. इनमें से एक में उनके द्वारा विश्वास मत के लिए विधानसभा का सत्र बुलाने के आदेश को भी चुनौती दी गई.

एकनाथ शिंदे
एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्रिपद की शपथ दिलाते राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारीतस्वीर: Hindustan Times/IMAGO

इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया किराज्यपाल का वह फैसला गलत था. राज्यपाल ने वह फैसला शिंदे गुट के 34 विधायकों के अनुरोध पर लिया था. अदालत ने कहा कि यह गलत था क्योंकि राज्यपाल के पास यह निर्णय करने के लिए पर्याप्त तथ्य नहीं थे कि उद्धव ठाकरे ने सदन का विश्वास खो दिया है.

अदालत ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल को ठाकरे सरकार के बहुमत पर संदेह नहीं करना चाहिए था और कुछ विधायकों की असंतुष्टि विश्वास मत का आदेश देने के लिए काफी नहीं थी. अदालत ने कहा कि राज्यपाल को पार्टियों के अंदरूनी झगड़ों में नहीं पड़ना चाहिए और व्यक्तिपरक आधार की जगह वस्तुनिष्ठ आधार पर फैसला लेना चाहिए.

हालांकि अदालत ने यह भी साफ किया कि इस मामले में अब कुछ किया नहीं जा सकता क्योंकि ठाकरे ने विश्वास मत का सामना करने की जगह खुद ही इस्तीफा दे दिया था. अदालत ने कहा कि इस लिहाज से शिंदे को मुख्यमंत्रिपद की शपथ दिलाने का राज्यपाल का फैसला सही था.

महाराष्ट्र में ठाकरे और शिंदे के नेतृत्व में दोनों ही पक्षों ने इस फैसले को अपनी अपनी जीत बताया है. मुख्यमंत्री शिंदे ने इसे शिवसेना और बालासाहेब ठाकरे की जीत बताया है लेकिन दूसरी तरफ ठाकरे ने कहा है कि इस फैसले के आधार पर शिंदे को नैतिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए और इस्तीफा दे देना चाहिए.