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मणिपुर में खुद को दोहराता इतिहास

प्रभाकर मणि तिवारी
१८ जून २०२०

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि आयाराम गयाराम की राजनीति के लिए मशहूर मणिपुर में अब एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता और खरीद-फरोख्त की राजनीति तेज होने का अंदेशा है.

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बीजेपी नेता और मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह.
बीजेपी नेता और मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह.तस्वीर: IANS

पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में एक बार फिर इतिहास खुद को दोहरा रहा है. आयाराम गयाराम की राजनीति के लिए मशहूर इलाके के इस पर्वतीय राज्य में वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने बहुमत से दस सीटें कम हासिल करने के बावजूद कांग्रेस को पछाड़ते हुए स्थानीय राजनीतिक दलों के समर्थन से सरकार का गठन कर लिया था. तब इसके लिए पार्टी की काफी किरकिरी हुई थी. लेकिन युद्ध, प्यार और राजनीति में सब कुछ जायज होने की कहावत को चरितार्थ करते हुए बीजेपी ने न सिर्फ सरकार का गठन किया बल्कि कुछ दिनों बाद ही कांग्रेस के कई विधायकों को भी तोड़ कर अपने पाले में कर लिया.

कैसे आई बीजेपी सरकार गिरने की नौबत

लेकिन बीते कुछ महीनों से तमाम मुद्दों पर एन बीरेन सिंह की अगुवाई वाली सरकार में असंतोष बढ़ रहा था. बीच में सुप्रीम कोर्ट ने भी दलबदल के मुद्दे पर सरकार को करारा झटका दिया था. अब राज्यसभा चुनाव के ठीक पहले उपमुख्यमंत्री वाई जय कुमार सिंह समेत पार्टी के चार मंत्रियों और तीन विधायकों के इस्तीफा देने और तृणमूल कांग्रेस के एक और एक निर्दलीय विधायक के समर्थन वापस लेने के बाद सरकार अल्पमत में आ गई है और इसका गिरना तय माना जा रहा है. कांग्रेस ने दावा किया है कि यह पूर्वोत्तर में मोदी युग के अंत की शुरुआत है और पार्टी के नेतृत्व में शीघ्र नई सरकार का गठन किया जाएगा. पार्टी फिलहाल सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश करने पर विचार कर रही है.

2017 के विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री और बीजेपी नेता मोदी की चुनावी रैली में समर्थकों की भीड़.
2017 के विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री और बीजेपी नेता मोदी की चुनावी रैली में समर्थकों की भीड़. तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Singh

कांग्रेस विधायक दल के नेता ओ इबोबी सिंह ने कहा है कि उनकी पार्टी मणिपुर में गठबंधन सरकार बनाने की कोशिश कर रही है और जल्द ही बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जाएगा. वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में 60 सदस्यीय सदन में 28 सीटें जीत कर कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. तब बीजेपी को 21 सीटें मिली थीं लेकिन बीजेपी जोड़-तोड़ के जरिए बीरेन सिंह के नेतृत्व में राज्य में सरकार बनाने में कामयाब रही थी. उसे नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी), नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) और लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) ने समर्थन दिया था. एनपीपी और एनपीएफ के पास चार-चार विधायक है जबकि एक विधायक एलजेपी के पास है. एक निर्दलीय विधायक और एक टीएमसी विधायक ने भी मणिपुर में बीजेपी सरकार का समर्थन किया था.

बीजेपी के सौतेले रवैये से परेशान 

साठ सदस्यों वाली विधानसभा में भाजपा गठबंधन के पास कुल 32 विधायकों का समर्थन था. लेकिन अब नौ विधायकों ने अपना समर्थन वापस ले लिया है जिनमें तृणमूल कांग्रेस का एक विधायक और एक निर्दलीय विधायक शामिल है. कांग्रेस के जिन सात विधायकों ने बीजेपी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार का समर्थन किया था, उन सभी पर अयोग्यता के मामले चल रहे हैं और हाल ही में हाई कोर्ट ने उन विधायकों को विधानसभा में प्रवेश करने से रोक दिया है. इससे पहले कांग्रेस के एक और विधायक को अयोग्य घोषित किया गया था. यानी कांग्रेस के कुल आठ विधायकों को पहले ही अयोग्य घोषित किया जा चुका है.

सरकार का समर्थन करने वाली एनपीपी तो उसी समय से नाराज चल रही थी जब पार्टी के वरिष्ठ नेता और उपमुख्यमंत्री वाई जयकुमार से तमाम विभाग वापस ले लिए गए थे. जयकुमार कहते हैं, "सरकार में होने वाले सौतेले रवैये की वजह से ही हमने इस्तीफा दिया है. अब हम समान विचारधारा वाली पार्टियों के साथ मिल कर नई सरकार का गठन करेंगे." बीजेपी सरकार से समर्थन वापस लेने वाले तृणमूल कांग्रेस के इकलौते विधायक रबींद्र कहते हैं, "हम तीन साल तक सरकार के साथ थे. लेकिन हमारी लगातार अनदेखी होती रही और हमारे प्रस्तावों को तवज्जो नहीं दी गई.”

कांग्रेस: "मोदी युग के अंत की शुरुआत"

बीरेन सिंह सरकार में असंतोष तो बीते साल से ही पनप रहा था. लेकिन इस साल अप्रैल में उपमुख्यमंत्री और एपीपी नेता वाई जयकुमार से तमाम विभाग छीने जाने के बाद यह चरम पर पहुंच गया. जयकुमार ने कोविड-19 के दौरान सरकार की भूमिका की सार्वजनिक तौर पर खिंचाई की थी. उसके बाद नौ जून को मणिपुर हाईकोर्ट ने पाला बदल कर बीजेपी का हाथ थामने वाले कांग्रेस के सात विधायकों के खिलाफ दलबदल कानून के तहत जारी मामलों का निपटारा नहीं होने तक सदन में प्रवेश करने पर पाबंदी लगा दी थी. इससे राजनीतिक संकट गहराने लगा. अदालत के फैसले से इन विधायकों के राज्यसभा चुनाव में मतदान पर भी संशय पैदा हो गया था. इससे पहले मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने एक मंत्री टीएच श्यामकुमार को हटाने का आदेश दिया था. वे पिछली बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे. लेकिन नतीजों के तुरंत बाद उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया था और मंत्री बन गए थे.

अब ताजा समीकरण कांग्रेस के पक्ष में हैं. आठ विधायकों के अयोग्य घोषित होने की वजह से सदन की तादाद घट कर 52 रह गई है. ऐसे में बहुमत के लिए 27 विधायकों की जरूरत होगी. कांग्रेस के पास फिलहाल 20 विधायक हैं. बीरेन सिंह सरकार से इस्तीफा देने और समर्थ वापसे लेने वाले नौ विधायकों को लेकर उसके पास 29 विधायकों का समर्थन है जबकि बीजेपी के पास महज 23 विधायक ही बचे हैं. कांग्रेस के प्रवक्ता एन बूपेंदा माइती कहते हैं, "तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे ओ ईबोबी सिंह ही नए मुख्यमंत्री बनेंगे. मणिपुर में आज नई सुबह हुई है. यह वर्ष 2024 में मोदी युग के अंत की शुरुआत है." राजनीतिक पर्यवेक्षक ओ सुनील कहते हैं, "बीजेपी इतनी आसानी से हार नहीं मानेगी. पिछली बार तो बहुमत से कम सीटें होने के बावजूद उसने जोड़-तोड़ की राजनीति के जरिए सत्ता हथिया ली थी. अब वह फिर यहां ऐसी ही राजनीति पर उतर सकती है. लेकिन अबकी कांग्रेस की स्थिति मजबूत नजर आ रही है. ऐसे में राज्य में तख्तापलट लगभग तय नजर आ रहा है."

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